04 अप्रैल, 2012

यह इन्कलाब ज़रूरी है दोस्तों !



मैं जीवन का सत्य लिखना चाहती हूँ
बिल्कुल हँस की तरह
दूध अलग पानी अलग ...

पानी की मिलावट
यानि झूठ की मिलावट अधिक होती है
पर न ग्वाला मानता है न दुनिया
ग्वाले के स्वर में भी सख्ती
झूठे के स्वर में कभी तल्खी कभी बेचारगी
.......
रिकॉर्ड करो - कोई फर्क नहीं पड़ता
झूठ के पाँव बड़े मजबूत होते हैं
शोले के ठाकुर के जूतों जैसे - कील लगे !
यदि आपको अपनी इज्ज़त से प्यार है
तो कीलों से डर जाना पड़ता है ...
....
पर डर से सत्य मर तो नहीं जाता !!!
वह आत्मा को कुरेदता है
झूठ से हुए जघन्य अपराधों के बोझ तले
रात भर छटपटाता है !
छटपटाता है झूठ को तेज स्वर से कहनेवाले
वीभत्स चेहरों के स्मरण से !
....
ओह ! कितनी चालाकी से झूठ फुफकारता है !!
विषधर भी अवाक !!!
सोचता है - ' मेरा काटा तो बच भी जाता है
पर झूठे के नुकीले झूठ से काटा गया सत्य
दर दर भटकता है - न मौत , न जीवन ! '
.........
इस तकलीफ ने मेरे अन्दर से
मौत का खौफ मिटा दिया
रिश्तों की अहमियत मिटा दी
...... कितनी घुटन होती है ...
जब अपने झूठ का जाल बुनते हैं
और आत्मा से परे उसे सच बनाते हैं !
रिश्तों की भूख
रिश्तों के भय में परिवर्तित हो गई !

... इस भय से परे
हँस बनकर मैं सच लिखना चाहती हूँ
कम से कम सच तो मेरा सम्मान करेगा
और झूठ से ज़ख़्मी कई अबोले चेहरे
सच को सच कहने का साहस करेंगे
समय से पहले मरकर भी
खुद पर नाज करेंगे...


यह इन्कलाब ज़रूरी है दोस्तों !

37 टिप्‍पणियां:

  1. यह इन्कलाब ज़रूरी है दोस्तों !
    बिल्‍कुल जरूरी है ... खासतौर पर एक रचयिता के लिए जिसकी कलम हर सच को उज़ागर कर देती है ... आभार उत्‍कृष्‍ट रचना के लिए ..

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  2. यह इन्कलाब ज़रूरी है......
    आपके शब्दों ने आज फिर ये जंग छेड़ी है.नमन आपको और आपके विचारों को....

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  3. पर डर से सत्य मर तो नहीं जाता !!!
    वह आत्मा को कुरेदता है.......bahut hi badhiyan......thanks.

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  4. सत्य को लिखना ही...इन्कलाब है !
    शुभकामनाएँ!

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  5. bahut achche vichar jhooth bolkar koi apne ko kab tak chhal sakta hai.bahut sundar rachna.

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  6. अच्छी विचारपरक विवेचना बढ़िया रचना अंतस को खोलती सच को तौलती .सच पे सच कोई रंग नहीं चढ़ता .सच का अपना रंग है अपनी ताकत है .प्रशांति है .आश्था है ,आत्मा का टोनिक है सच .लेकिन इसकी शिनाख्त के लिए ईमान का ,चेतन ऊर्जा आत्मा का शरीर में बने रहना ज़रूरी है .स्थूल शरीर लिए जो घूम रहें हैं जिनकी आत्मा हाबर्नेशन में है उनके लिए सच का कोई मतलब नहीं है .सच उसी के लिए है जो ज़िंदा है पूरा का पूरा .मरे हुए नुमायन्दों,रहनुमाओं के लिए सच का कोई मतलब नहीं है .

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  7. सच तो वो चमकदार हीरा है जो कितनी ही गहरई में हो पर अपनी चमक नहीं छोड़ता.....सुन्दर भाव...

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  8. सच को सच कहने का साहस करेंगे
    समय से पहले मरकर भी
    खुद पर नाज करेंगे...
    सत्य से भरा वो लम्हा ....सशक्त होता है ...
    झूठ का चेहरा... घिनौना...
    और ..
    सत्य अमिट छाप छोड़ता है ...
    सुंदर बिम्ब ...सुंदर रचना ...दी ...

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  9. ... इस भय से परे
    हँस बनकर मैं सच लिखना चाहती हूँ
    कम से कम सच तो मेरा सम्मान करेगा
    और झूठ से ज़ख़्मी कई अबोले चेहरे
    सच को सच कहने का साहस करेंगे
    समय से पहले मरकर भी
    खुद पर नाज करेंगे...


    यह इन्कलाब ज़रूरी है दोस्तों !.................एक दम सही कहा हैं आपने रश्मि दीदी ......पर सच बोलने वाले की क्या दशा की जाती हैं ...ये हम सब जानते हैं ....एक लेखा ..सच लिख सकता हैं ...पर लिखने से डरता हैं ....ऐसा क्यूँ????

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  10. स्वयं से जूझने का माद्दा तो बना ही रहता है।

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  11. ...... कितनी घुटन होती है ...
    जब अपने झूठ का जाल बुनते हैं
    और आत्मा से परे उसे सच बनाते हैं !

    और कितना मुश्किल होता है
    इस जाल को काटना
    पंचतंत्र की कहानी में
    बहेलिए ने जाल बिछाया
    शांत कबूतर फँस गए
    उस जाल के साथ वे
    दोस्त चूहे के पास गए
    चूहों ने जाल को काट डाला
    सच्चे सीधे कबूतर आजाद हुए

    क्या होता यदि वही चूहे
    बहेलिए की हाँ में हाँ मिलाते

    फिर तो बहेलिया ही जीतता न!!!!!

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  12. .. इस भय से परे
    हँस बनकर मैं सच लिखना चाहती हूँ
    कम से कम सच तो मेरा सम्मान करेगा
    और झूठ से ज़ख़्मी कई अबोले चेहरे
    सच को सच कहने का साहस करेंगे
    समय से पहले मरकर भी
    खुद पर नाज करेंगे...

    ऐसा करने से स्वयं से नज़रें नहीं चुरानी पड़ेंगी ... सशक्त लेखन

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  13. इन्कलाबी आह्वान .. कोई कैसे न सुने..

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  14. जब अपने झूठ का जाल बुनते हैं
    और आत्मा से परे उसे सच बनाते हैं !
    रिश्तों की भूख
    रिश्तों के भय में परिवर्तित हो गई !....

    sach kaha aapne

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  15. हँस बनकर मैं सच लिखना चाहती हूँ
    कम से कम सच तो मेरा सम्मान करेगा
    और झूठ से ज़ख़्मी कई अबोले चेहरे
    सच को सच कहने का साहस करेंगे
    समय से पहले मरकर भी
    खुद पर नाज करेंगे...
    ..sach jhoot ka mukhauta ek n ek din utar hi jaata hai aur sach lakh partion mein ho wah ek n ek din baahar sabke samne aa hi jaata hai.. ...bahut badiya sarthak chaintan..

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  16. बहुत सुन्दर दी.............

    यह इन्कलाब ज़रूरी है .....

    मगर देखते हैं कितने आगे आते हैं....

    सादर

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  17. सच को सच कहने का साहस करेंगे
    समय से पहले मरकर भी
    खुद पर नाज करेंगे...
    यह इन्कलाब ज़रूरी है .....मगर कितने लोग
    साथ देते है,.....

    बहुत बढ़िया रचना,सुंदर अभिव्यक्ति,बेहतरीन पोस्ट,....

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  18. सच समझ लें मान लें इतना ही काफी है.

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  19. यकीनन यह इन्कलाब ज़रूरी है ....

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  20. कितनी घुटन होती है ...
    जब अपने झूठ का जाल बुनते हैं
    और आत्मा से परे उसे सच बनाते हैं !....

    कितना सच कहा है आपने ...कितना सुन्दर परिभाषित किया है ...इस अवस्थाको कोई भुक्तभोगी ही समझ सकता है.....

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  21. झूठ सौ बार बोला जाए तो सच लगने लगता है , अब तो मन ऐसा उकताया रहता है कि कौन जाए सच को सच साबित करने ...मानना चाहो तो ठीक वरना भाड़ में जाओ ! और क्या !

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  22. मुझे बचपन के दिन याद आ गए जब दूध वाला सामने खड़े होकर दूध में पानी मिला देता था

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  23. सत्य परेशान हो सकता है...पराजित नहीं...ट्रक के पीछे सी मिली एक सीख...

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  24. नेट के रुलाने के कारण थोड़ी विलम्ब(बस २४-३६ घंटे) से....

    .... कितनी घुटन होती है ...

    जब अपने झूठ का जाल बुनते हैं

    और आत्मा से परे उसे सच बनाते हैं !

    रिश्तों की भूख ....

    रिश्तों के भय में परिवर्तित हो गई ....

    कुछ दिनों से मैं ये सच्चाई से रूबरू हो रही थी या यूँ कहें जी रही थी .... लेकिन ... अभिव्यक्ति नहीं कर पा रही थी .... आपके शब्द मेरे दिल को शकुन पहुंचा गये ...

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  25. सच कहा सत्य का इन्कलाब बेहद ज़रूरी है. सार्थक और संदेशप्रद रचना, बधाई.

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  26. RASHMI JI , AAPKE MUNH MEIN
    GHEE - SHAKKAR . INQILAB ZAROOREE
    HAI DOSTO .

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  27. स तकलीफ ने मेरे अन्दर से
    मौत का खौफ मिटा दिया
    रिश्तों की अहमियत मिटा दी
    ...... कितनी घुटन होती है ...
    जब अपने झूठ का जाल बुनते हैं
    और आत्मा से परे उसे सच बनाते हैं !
    रिश्तों की भूख
    रिश्तों के भय में परिवर्तित हो गई !


    जिस तरह से आपने जीवन के हर पहलू को निचोड़ा है उसका जवाब नही........... लाजवाब .नि:शब्द कर दिया .

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  28. यह इन्कलाब ज़रूरी है दोस्तों !
    bilkul zaroori hai......

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  29. और झूठ से ज़ख़्मी कई अबोले चेहरे
    सच को सच कहने का साहस करेंगे
    समय से पहले मरकर भी
    खुद पर नाज करेंगे...

    काश यह सच हो जाए ....

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  30. ओह ! कितनी चालाकी से झूठ फुफकारता है !!
    विषधर भी अवाक !!!
    सोचता है - ' मेरा काटा तो बच भी जाता है
    पर झूठे के नुकीले झूठ से काटा गया सत्य
    दर दर भटकता है - न मौत , न जीवन !


    waah!

    haa, yah inkalaab bahu zaruri hai!

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  31. इंकलाब जरूरी है परिवर्तन हो कर रहेगा....
    जागिये सुबह होने वाली है....

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  32. परिवर्तन होकर रहेगा.... इंकलाब जरूरी है...

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