21 अप्रैल, 2012

चलता है न ...



हम लिखते कुछ और हैं
लोग बिना पढ़े
कहते कुछ और हैं ...
मूल्याँकन हम करने लगते हैं अपना
पढ़ने लगते हैं खुद से खुद को
कहाँ चूक हुई !

पढ़ते पढ़ते जाना कि
रचनाओं की सीढ़ियाँ तो मजबूत ही बनाई हमने
दरअसल वे चढ़े ही नहीं
एड़ी उचकाकर शब्द टांग गए ...
रचना हतप्रभ !
- हम हतप्रभ !
खामखाह होते रहे बेवजह -
....
कोर्स में जब कवियों को हम पढ़ते थे
तो बहुत स्पष्ट होने के लिए
कुंजिका साथ रखते थे
उसके बाद भी
कई कवितायेँ समझ में नहीं आती थी
तो एक पल में बिना कुंजिका
भीतर उमड़ते भावों को समझना ज़रा मुश्किल है
और कवि के मुख्य भावों की कुंजिका
कवि ही बना सकता है
और कभी वह भी लाचार हो सकता है !
....
याद आती है सूर की वे पंक्तियाँ -
" 'सूरदास'तब विहंसी यशोदा
ले उर कंठ लगायो ... "
एक लड़के ने इसका अर्थ कुछ यूँ लिखा
" कवि सूरदास ने हंसकर
तब यशोदा को गले से लगा लिया "
जानते थे अर्थ तो हँस पड़े बेसाख्ता
पर अगर नहीं जानते
तो इसे ही समझते !
.......
पढ़कर समझने में होती है कठिनाई
तो बिना पढ़े हे सखे
तूने बात कैसे बनाई ?
लिखने का शौक हो
तो बिना पढ़े बात नहीं बनती
और यदि यह बस रेस है घोड़े का
तब तो ....
सूरदास का यशोदा को गले लगाना
चलता है ...

42 टिप्‍पणियां:

  1. कई बार ऐसा होता है हम लिखते कुछ और हैं और लोग उसका ऐसा अर्थ लगाते हैं, कि हम हतप्रभ से देखते रह जाते हैं, मूल भाव से कोसो दूर के अर्थ...

    पढ़कर समझने में होती है कठिनाई तो बिना पढ़े हे सखे .... तब तो ....सूरदास का यशोदा को गले लगाना चलता है ...
    सच्चाई दिखा दी आपने शब्दों के द्वारा... आभार आपका

    जवाब देंहटाएं
  2. मूल्याँकन हम करने लगते हैं अपना
    पढ़ने लगते हैं खुद से खुद को
    रचना हतप्रभ !
    - हम हतप्रभ !
    खामखाह होते रहे बेवजह -
    कुछ कमेंट्स करने वाले ऐसे ही लग रहे .... !!
    लेकिन कमेंट्स की कमी देख अपने लिखे पर भी शक होने लगता है .... !!

    जवाब देंहटाएं
  3. और यदि यह बस रेस है घोड़े का
    तब तो ....
    सूरदास का यशोदा को गले लगाना
    चलता है ...

    हा हा हा...अर्थ का अनर्थ...ठीक से नहीं पढ़ने पर ऐसा ही होता है|

    जवाब देंहटाएं
  4. रचनाओं की सीढ़ियाँ तो मजबूत ही बनाई हमने
    दरअसल वे चढ़े ही नहीं
    एड़ी उचकाकर शब्द टांग गए ...
    रचना हतप्रभ !
    - हम हतप्रभ !
    खामखाह होते रहे बेवजह -
    क्‍या बात कही है इन पंक्तियों के माध्‍यम से आपने ... :) आप व आपका लेखन दोनों के लिए आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  5. जीवन में व्यवहार निभाना है, टिप्पणी का जबाव
    जब टिप्पणी से देना है, तब तो टिप्पणी लिखने
    की SPEED लगभग 45 टिप्पणी प्रति मिनट तो
    रखनी ही पड़ेगी। वरना खाना खाने का समय भी
    नहीं मिल पायेगा। ज्यादा तर COPY...PASTE
    ही करना पड़ता है।

    अरिषकेषु समक्ष मम कवित्त निवेदन, सिरषु मा
    लिख, मा लिख, मा लिख।

    कविता तो नहीं कहा जा सकता पर लोगों को
    सावघान करने का विचार अच्छा है।

    ....आनन्द विश्वास

    जवाब देंहटाएं
  6. हा हा हा .... सही कटाक्ष .... बिना पढे ....सब चलता है ...

    कभी कभी कुंजियाँ भी धोखा देती हैं ....
    केंद्रीय विद्यालय में आठवीं कक्षा में हिन्दी विषय मे कुरुक्षेत्र / रामधारी सिंह दिनकर की कुछ पंक्तियाँ ली गयी हैं ....असली संदर्भ है कि पितामह वो सब बातें युधिष्ठिर से कह रहे हैं पर कुंजियों में लिखा है की कृष्ण अर्जुन को समझा रहे हैं :):)

    ( मैंने स्वयं पढ़ाया हुआ है इस लिए बता रही हूँ )

    जवाब देंहटाएं
  7. आज तो सिर्फ़ ऐसा ही होता है ………अर्थ का अनर्थ ही ज्यादा होता है ……………बेहद सशक्त अभिव्यक्ति।

    जवाब देंहटाएं
  8. आज तो सिर्फ़ ऐसा ही होता है ………अर्थ का अनर्थ ही ज्यादा होता है ……………बेहद सशक्त अभिव्यक्ति।

    जवाब देंहटाएं
  9. meri bhi yahi samasya thi...so ab main kavita nahin seedhe seedhe jo man me ata jata hai likg deti hoon...tab bhi koi arth ka anarth samjhe to ...ishwar uska bhala kare:)

    जवाब देंहटाएं
  10. अच्छा पढ़ना भी अच्छे लिखने जैसा ही कठिन है।

    जवाब देंहटाएं
  11. टिप्पणी करना लेख लिखने से भी ज्यादा कठिन काम होता है । यह समझ / कला भी धीरे धीरे ही आती है । हम भी अभी सीख ही रहे हैं ।
    हालाँकि कविताओं पर दी गई ज्यादातर टिप्पणियां मुख्य रूप से कविता का ही भाग होती हैं - बस एक दो शब्द अपनी तरफ से लिख दिए तारीफ में और बन गई टिप्पणी।

    जवाब देंहटाएं
  12. ekdam samyik aur sachchi baaten kavita ke roop men.....bahot achcha laga.

    जवाब देंहटाएं
  13. कोर्स में जब कवियों को हम पढ़ते थे
    तो बहुत स्पष्ट होने के लिए
    कुंजिका साथ रखते थे
    उसके बाद भी
    कई कवितायेँ समझ में नहीं आती थी.

    .....गाँव में तो पहले गुरूजी ही सब पढ़ाते-समझाते थे कुंजी क्या होती है पता ही नहीं था ..लेकिन शहर में इसके बिना काम ही नहीं चलता आजकल ..
    बड़ा खींचतान का जमाना लगता है आज का ....
    बहुत बढ़िया प्रेरक प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  14. ही ही ही ..अरे दी ! कुंजियों में तो जाने क्या क्या चलता है :) गज़ब का कटाक्ष किया है आपने और सटीक एकदम.
    अब भी हँस रही हूँ .

    जवाब देंहटाएं
  15. पढ़ते पढ़ते जाना कि
    रचनाओं की सीढ़ियाँ तो मजबूत ही बनाई हमने
    दरअसल वे चढ़े ही नहीं
    एड़ी उचकाकर शब्द टांग गए ...


    कभी कभी तो कवि कहीं,
    गहरे गोते लगा लेता है
    पाठक हत्प्रभ
    उपर से डूबने का डर
    न धीर न पराई पीर
    रचता है जल्दबाजी के चिन्ह
    और लौट जाता है :)

    जवाब देंहटाएं
  16. "उसने पूछा नाम मेरा ,
    मैंने बताया रहीम,
    बड़ी शिद्दत से कहने लगा
    दिवाली कब मनाओगे "
    सही कहा आपने,कवी क्या कहना चाह रहा है,बिना ध्यान से पढ़े ,नहीं जाना जा सकता,पीठ पर थपकी देने की होड़ में विषय से हट कर ,या बिना पढ़े ही वाह ,सुन्दर रचना,बढ़िया भाव,बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति. जैसी टिप्पणियाँ करी जाती हैं,कभी सूरदास यशोदा को गले लगाता है,कभी महाराणा प्रताप मेवाड पर हमला करता है,

    जवाब देंहटाएं
  17. क्या कहूँ.......................

    हमारा हिंदी भाषा ज्ञान हमारी "कविताओं" से पता लग ही जाता है...
    कितना पढ़ी हूँ क्या बताऊँ
    :-)

    सादर
    अनु

    जवाब देंहटाएं
  18. मधुर हास्य में सुंदर कटाक्ष करना आसान नहीं होता.आपने सरलता से कर दिया.

    जवाब देंहटाएं
  19. gahri sacchayi mausi ji... jise hum sab mahsus karte hain ... lekin shabdon mei kabhi nahi dhaal paye... aabhar

    जवाब देंहटाएं
  20. बहुत सशक्त रचना ....अक्सर ऐसा ही होता है .....बिना पढे प्रतिक्रिया ....अर्थ का अनर्थ ....कर देती है ....हालाँकि ये तय है की कवि की वास्तविक कल्पना तक आप स्वयंम से नही पहुँच सकते फिर भी ....जो अर्थ करे ...कम से कम वो अर्थ ही रहे अनर्थ नही .....

    जवाब देंहटाएं
  21. पाटन कवि की बात तो मैं आपको बता ही चुका हूँ दीदी!! बस वही और हंसी!!

    जवाब देंहटाएं
  22. बिलकुल सही...... सही मायने तो समझने ही अर्थपूर्ण लगेंगें ,उसके लिए चलता है का ख्याल काम नहीं आ सकता .....

    जवाब देंहटाएं
  23. हा ....हा ...हा ...अच्छा लगा सच में ये बड़ी समस्या है

    जवाब देंहटाएं
  24. पढ़े लिखे गंवारों की तरफ इशारा है यह।

    जवाब देंहटाएं
  25. कभी कभी कुछ ब्लोग्स पर टिप्पणियों का यही हाल देखा जाता है ....इसीलिये आंकड़ों से ज्यादा गुणवत्ता महत्वपूर्ण है .....
    भला हो मोडरेशन फेसिलिटी का
    अच्छा विश्लेषण किया आपने

    जवाब देंहटाएं
  26. समझ नहीं आये तो अर्थ के अनर्थ होते ही हैं , सिर्फ कविताओं में ही क्या !!
    रोचक व्यंग्य !

    जवाब देंहटाएं
  27. सही विषय उठाया है. यह सत्य है कि कविता और कवि के भाव को समझने के लिये पर्याप्त समय देना पड़ेगा. टिप्पणियां बहुधा सतही तौर पर ही उनका आकलन कर पाती हैं या कभी कभी नहीं भी. हाँ लेकिन कविता का आनन्द फिर भी लिया जा सकता है.

    जवाब देंहटाएं
  28. भाई देखिये...आप अपना काम कीजिये...और समीक्षक को उसका...सूर-कबीर जब लिख रहे थे...तो शायद उन्हें ये भान नहीं था कि वो साहित्य लिख रहे हैं...और वो बच्चों को पढाया जायगा...और उसकी इतनी प्रकार से विवेचना होगी...सो लोगों को मतलब निकालने दीजिये...वैसे भी लोगों का तो काम ही है कहना...

    जवाब देंहटाएं
  29. पढ़कर समझने में होती है कठिनाई
    तो बिना पढ़े हे सखे
    तूने बात कैसे बनाई ?
    लिखने का शौक हो
    तो बिना पढ़े बात नहीं बनती
    और यदि यह बस रेस है घोड़े का
    तब तो ....
    सूरदास का यशोदा को गले लगाना
    चलता है ...
    वाह... कितना अनोखा उदाहरण दिया है आपने...बहुत सुंदर, हर कोई खुद को ही पढ़ता है खुद को ही लिखता है..बाकी तो सब बहाने हैं.

    जवाब देंहटाएं
  30. भक्तिकाल की कविता को यानी तुलसीदास को तो गाते ही थे,सूर को गाते थे, कबीर को गाते थे, इन कवियों को जीवित रखा, किताबें तब छपी नहीं थीं, तब भी जीवित थीं.....


    पढ़कर समझने में होती है कठिनाई
    तो बिना पढ़े हे सखे
    तूने बात कैसे बनाई ?
    लिखने का शौक हो
    तो बिना पढ़े बात नहीं बनती
    और यदि यह बस रेस है घोड़े का
    तब तो ....
    सूरदास का यशोदा को गले लगाना
    चलता है ...
    .........रोचक व्यंग्य....

    जवाब देंहटाएं
  31. is vishay par kayi bar likhne ka socha lekin vo kahte hain na bhaav jb umde tabhi unhe pakad lena chaahiye varna vo laut kar nahi aate..bas aisa hi kuchh hua apne sath...

    bahut sunder prastuti.

    जवाब देंहटाएं
  32. सच कहा अक्सर ऐसा होता है ..
    लेकिन कभी कभी लेखक भावनाओं की जिस ज़मीन, जिस माहौल.. जिस मूड में कविता लिख रहा होता है .. वह पाठकों के लिए सिक्के के दूसरे पहलू सा हो जाता है.. जो उनकी तरफ से दिखाई नहीं देता..
    सादर
    मंजु

    जवाब देंहटाएं
  33. sahi h....aksar hum logo ki baate sun kar khud ka analysis karna start kar deta h.... par ye bhul jate h ki logo ka to kaam hi h baate karna....hum kuch nai karenge tab bhi unki baaten khatam nai hogi

    जवाब देंहटाएं
  34. बहुत ही सटीक रचना ...समझने वाले समझ गए हैं ...न समझे........

    जवाब देंहटाएं
  35. लिखने का शौक हो
    तो बिना पढ़े बात नहीं बनती
    सटीक बात ..

    जवाब देंहटाएं
  36. "... दरअसल वे चढ़े ही नहीं !!"

    हा हा.. बहुत सच!! कई बार ख़याल आया था ऐसा ही कुछ व्यक्त करने को.. आपने उन भावों को साकार रूप दे दिया!

    जवाब देंहटाएं

दौड़ जारी है...

 कोई रेस तो है सामने !!! किसके साथ ? क्यों ? कब तक ? - पता नहीं ! पर सरपट दौड़ की तेज़, तीखी आवाज़ से बहुत घबराहट होती है ! प्रश्न डराता है,...