25 जून, 2012

कब , कहाँ , क्यूँ का उत्तर



धूप छाँव
दिन रात
सुख दुःख
हँसी उदासी ......... सब अपने अपने हिस्से को जीते हैं
कभी बारिश नहीं होती
कभी बेमौसम बरसात से
आँखें फटी की फटी रह जाती हैं !
संकरे रास्ते सुख के भी दुःख के भी
खुला मैदान हँसी के लिए भी उदासी के लिए भी
....
मिलना तो सब है
कब कहाँ क्यूँ - तय नहीं
पर वक़्त आता है
स्थान भी आता है
और क्यूँ ? ...... अंतरात्मा समझती है .
..........
कई बार हम सज़ा के हकदार नहीं होते
पर अत्यधिक अच्छाई भी कटघरे में होती है
जानने के लिए
कि अपनी अच्छाई में आपने जिनका साथ दिया है
वे उसके पात्र नहीं थे
तो गुण जाए न जाए संगत से
सज़ा मिलती ही मिलती है !
.......
पानी से भरा घड़ा ईश्वर थमाता है
उन प्यासों के लिए
जिनकी प्यास बुझाना धर्म है
पर जो एक एक जीवनदायिनी बूंद के लिए
बेमौत मारते हैं
उनकी प्यास मिटाना
उनकी आसुरी शक्ति को जिंदा रखना है
और - इसकी सजा मिलती है
मिलनी भी चाहिए !

श्रद्धा , विश्वास की कीमत
एकलव्य का अंगूठा नहीं
शिष्य की निष्ठा के आगे द्रोण की समझ थी
एकलव्य को ईश्वर ने सब दिया
पर एकलव्य ने अपनी भक्ति के अतिरेक में
द्रोण के इन्कार को भी श्रेष्ठ बना दिया ...
तो अंगूठा - कब , कहाँ , क्यूँ का उत्तर था
सिर्फ एकलव्य के लिए नहीं
हम सबके लिए !

35 टिप्‍पणियां:

  1. bahut khoob gahan bhaav aur sandesh dete shabd is sundar rachna hetu badhaai rashmi ji

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  2. श्रद्धा , विश्वास की कीमत
    सिर्फ एकलव्य के लिए नहीं
    हम सबके लिए !

    मन को प्रभावित करती अर्थपूर्ण सुंदर अभिव्यक्ति ,,,,,

    RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: आश्वासन,,,,,

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  3. पर एकलव्य ने अपनी भक्ति के अतिरेक में
    द्रोण के इन्कार को भी श्रेष्ठ बना दिया ...
    तो अंगूठा - कब , कहाँ , क्यूँ का उत्तर था
    सिर्फ एकलव्य के लिए नहीं
    हम सबके लिए !

    अद्भुत सोच ....

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  4. Rashmiji....sabhi panktiyaan sach se sarabor hai...mere mann ko atyadeek touch kiya in panktiyon ne- कई बार हम सज़ा के हकदार नहीं होते
    पर अत्यधिक अच्छाई भी कटघरे में होती है
    जानने के लिए
    कि अपनी अच्छाई में आपने जिनका साथ दिया है
    वे उसके पात्र नहीं थे
    तो गुण जाए न जाए संगत से
    सज़ा मिलती ही मिलती है !

    जवाब देंहटाएं
  5. ...पर अत्यधिक अच्छाई भी कटघरे में होती है
    जानने के लिए
    कि अपनी अच्छाई में आपने जिनका साथ दिया है
    वे उसके पात्र नहीं थे....

    ..तो अंगूठा - कब , कहाँ , क्यूँ का उत्तर था
    सिर्फ एकलव्य के लिए नहीं
    हम सबके लिए !

    सच है ...शुद्ध भावों से सजी रचना

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  6. कई बार सोच में पड़ जाते हैं . बुरे लोगों पर अच्छे लोगों की संगत का असर होता है या अच्छे लोंग बुरे की संगत में दोषी ठहराए जाते हैं ...

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  7. कई बार हम सज़ा के हकदार नहीं होते
    पर अत्यधिक अच्छाई भी कटघरे में होती है
    जानने के लिए
    कि अपनी अच्छाई में आपने जिनका साथ दिया है
    वे उसके पात्र नहीं थे
    तो गुण जाए न जाए संगत से
    सज़ा मिलती ही मिलती है !

    बहुत सुन्दर बात कही रश्मि जी ! कहीं लगता है कि भुगतभोगी हूँ इस मर्ज का !

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  8. मिलना तो सब है
    कब कहाँ क्यूँ - तय नहीं
    अनुपम भाव लिए उत्‍कृष्‍ट लेखन ... आभार

    कल 27/06/2012 को आपकी इस पोस्‍ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.

    आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!


    ''आज कुछ बातें कर लें''

    जवाब देंहटाएं
  9. कई बार हम सज़ा के हकदार नहीं होते
    पर अत्यधिक अच्छाई भी कटघरे में होती है
    जानने के लिए
    कि अपनी अच्छाई में आपने जिनका साथ दिया है
    वे उसके पात्र नहीं थे
    तो गुण जाए न जाए संगत से
    सज़ा मिलती ही मिलती है !

    बेहतरीन शब्दों में भावों को प्रस्तुत किया है आपने।

    जवाब देंहटाएं
  10. कई बार हम सज़ा के हकदार नहीं होते
    पर अत्यधिक अच्छाई भी कटघरे में होती है
    जानने के लिए
    कि अपनी अच्छाई में आपने जिनका साथ दिया है
    वे उसके पात्र नहीं थे
    तो गुण जाए न जाए संगत से
    सज़ा मिलती ही मिलती है !

    होता तो यही है सच में .

    जवाब देंहटाएं
  11. वाह: अद्भुत भाव अद्भुत रचना रश्मिजी...

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  12. एकलव्य वाली बात बिल्कुल सही है...
    किसी के दोष को भी श्रेष्ठ साबित कर देना एकलव्य जैसा श्रेष्ठ शिष्य ही कर सकता था...
    व्यक्ति की सोच सकारात्मक हो तो कई अनसुलझी बातें भी सुलझ जाती हैं वरना बनी बनाई बात भी बिगड़ जाती है नकारात्मक सोच वालों के कारण...

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  13. कई बार हम सज़ा के हकदार नहीं होते
    पर अत्यधिक अच्छाई भी कटघरे में होती है....

    सोचने के लिए प्रेरित करती खुबसुरत रचना दी...
    सादर.

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  14. श्रद्धा , विश्वास की कीमत
    एकलव्य का अंगूठा नहीं

    और फिर ये कटघरे बनाता कौन है यह भी विचारणीय है

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  15. कई बार हम सज़ा के हकदार नहीं होते
    पर अत्यधिक अच्छाई भी कटघरे में होती है
    waah ...bahut sahi ..

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  16. श्रद्धा , विश्वास की कीमत
    एकलव्य का अंगूठा नहीं
    शिष्य की निष्ठा के आगे द्रोण की समझ थी

    श्रद्धा और विश्वास अडिग है तो जीत होना स्वाभाविक है. श्रेष्ठ प्रेरणात्मक विचार.

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  17. प्रभावित करते विचार .....अति सुंदर

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  18. शताब्दियों के महान्तराल में इस प्रश्न के उत्तर न जाने कितने बार बदले होंगे..

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  19. आस्था और विश्वास पर ही इस जीवन की डोर थमी हुई हैं

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  20. इस कहाँ और क्यूँ को अंतरात्मा समझती है...
    प्रभावित करती रचना. आभार

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  21. अत्यधिक भलाई भी किसी काम की नहीं...

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  22. बहुत प्रभावशाली रचना

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  23. सिख देती बहुत ही बेहतरीन
    और प्रभावशाली रचना.
    :-)

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  24. कीमत की तो बात ही न करें..कितना चुकाना पड़ता है.. शायद एकलव्य भी पीछे छूट जाए..

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  25. श्रद्धा , विश्वास की कीमत
    सिर्फ एकलव्य के लिए नहीं
    हम सबके लिए !
    bahut sunder

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  26. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति दी....

    बहुत अच्छी रचना.....

    सादर

    जवाब देंहटाएं
  27. कल 04/07/2012 को आपकी किसी एक पोस्‍ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.

    आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!


    '' जुलाई का महीना ''

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  28. रद्धा , विश्वास की कीमत
    एकलव्य का अंगूठा नहीं
    शिष्य की निष्ठा के आगे द्रोण की समझ थी
    एकलव्य को ईश्वर ने सब दिया
    पर एकलव्य ने अपनी भक्ति के अतिरेक में
    द्रोण के इन्कार को भी श्रेष्ठ बना दिया ...
    तो अंगूठा - कब , कहाँ , क्यूँ का उत्तर था
    सिर्फ एकलव्य के लिए नहीं
    हम सबके लिए !

    बहुत खूब लिखा है आपने !!! आभार !

    जवाब देंहटाएं
  29. पर एकलव्य ने अपनी भक्ति के अतिरेक में
    द्रोण के इन्कार को भी श्रेष्ठ बना दिया ...
    तो अंगूठा - कब , कहाँ , क्यूँ का उत्तर था
    सिर्फ एकलव्य के लिए नहीं
    हम सबके लिए !...ji haan

    जवाब देंहटाएं

दौड़ जारी है...

 कोई रेस तो है सामने !!! किसके साथ ? क्यों ? कब तक ? - पता नहीं ! पर सरपट दौड़ की तेज़, तीखी आवाज़ से बहुत घबराहट होती है ! प्रश्न डराता है,...