12 अक्तूबर, 2012

और ज़िन्दगी रूकती नहीं !!!





क्यूँ नहीं होता वह सब-
जो हम खुली आँखों सपनाते हैं
क्यूँ होता है वह
 -जो हम नहीं चाहते हैं ...

कठिन प्रश्न-पत्र की तरह होनी
हमेशा आगे खड़ी होती है
सोच से परे
 ज़िन्दगी के हिसाब देती है
वह भी ऐसे हिसाब
जो कभी एक और एक मिलकर दो होते है
कभी एक रह जाते हैं
तो कभी शून्य !
मुझे नहीं आता है हिसाब -
वह जानती है
फिर भी - सिखा जाती है फॉर्मूला !

यूँ किसी के भी प्रश्न पत्र सरल नहीं होते
चाहे गरीब के हों
या अमीर के ...
होनी सा गुरु भला कौन
जो प्रश्नों में जकड़ कर जीना सिखाये !

जब हम समझते हैं
कि सूरज अपनी मुट्ठी में है
नया सवेरा रिसने को है
तब गहरा अन्धकार होता है आगे
जिसमें हाथ को हाथ नहीं मिलता
तो प्रश्नों को कोई क्या पढ़ेगा !
पर वाह रे प्रभु की बाजीगरी
बढ़ने को विवश करता है
और हम बढ़ते भी हैं ...
मृत्यु पाठ्य पुस्तक का समापन पृष्ठ नहीं
अगली परीक्षा का फॉर्म होता है
......
कई बार नहीं अनेक बार
हम कॉलम सही नहीं भरते
कभी उम्र झूठ
कभी अंक,कभी उपलब्धियां
कभी लक्ष्य...
हम सोचते हैं - कोई क्या समझेगा भला !
यहीं पर हम गोता खाते हैं
और भंवर में पड़ते हैं
पानी में उजबुजाती स्थिति
और सामने खड़ी होनी
प्रश्न पत्र की भयावहता के संग
नए सबक सिखाती है !
.......
होनी होनी है,हम हम-
वह सिखाने से बाज नहीं आती
हम चाल चलने से बाज नहीं आते
कभी नहीं सोचते हम
कि सारे फसाद की जड़ हम
और हमारी मूर्खता है
जिसे हम बुद्धिमानी कहते थकते नहीं ...
..... और ज़िन्दगी रूकती नहीं !!!



40 टिप्‍पणियां:

  1. कभी नहीं सोचते हम
    कि सारे फसाद की जड़ हम
    और हमारी मूर्खता है
    जिसे हम बुद्धिमानी कहते थकते नहीं ...
    ..... और ज़िन्दगी रूकती नहीं !!!
    कितनी सच्‍ची बात कह‍ी है आपने ... बेहद सशक्‍त लेखन ... आभार

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  2. जब हम समझते हैं
    कि सूरज अपनी मुट्ठी में है
    नया सवेरा रिसने को है
    तब गहरा अन्धकार होता है आगे
    जिसमें हाथ को हाथ नहीं मिलता
    ......ओर हम देख नही पाते .....देख भी ले तो आँखें भींच अनदेखा करने का प्रयास करते हैं ....बहुत व्यवहारिक बात ...सादर ...

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  3. आँखें भींच लेने से सच्चाई बदल नहीं जाती...उसे अनदेखी कर हम खुद को भुलावे में रखते हैं...शायद ऐसा करना जरूरी भी है, क्योंकि जावन तो जीना है न!!

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  4. कभी नहीं सोचते हम
    कि सारे फसाद की जड़ हम
    और हमारी मूर्खता है
    जिसे हम बुद्धिमानी कहते थकते नहीं ...
    ..... और ज़िन्दगी रूकती नहीं !!!

    वाह ! मैंने भी सुना है की इस जगत में दो ही चीजें असीम हैं एक आकाश दूसरी मनुष्य की मूढ़ता..

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  5. होनी होनी है,हम हम-
    वह सिखाने से बाज नहीं आती
    हम चाल चलने से बाज नहीं आते
    कभी नहीं सोचते हम
    कि सारे फसाद की जड़ हम
    और हमारी मूर्खता है
    जिसे हम बुद्धिमानी कहते थकते नहीं ...
    ..... और ज़िन्दगी रूकती नहीं !!!..ji sahi hai

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  6. एक बहुत छोटा सा शब्द है ..सत्य ...लेकिन इसमें बड़ी ताक़त है .....हम इसे स्वीकार लें ...तो हमें हमारे सभी उत्तर मिल जायेंगे .......जटिल से जटिल बाधाएं कट जाएँगी ....दुर्गम से दुर्गम झाड़ियाँ छंट जाएँगी और एक सहज ..सीधी राह सामने निकल आयेगी ....जो हर प्रश्न का सीधा सीधा हल बता जाएगी

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  7. क्यूँ नहीं होता वह सब-
    जो हम खुली आँखों सपनाते हैं
    क्यूँ होता है वह
    -जो हम नहीं चाहते हैं ...
    क्योंकि जो हम चाहते हैं उसमे इतनी भलाई छुपी नहीं होती जितनी उसके चाहने मे और जिस दिन हम ये बात समझ जाते हैं और उसकी मर्ज़ी मे अपनी मर्ज़ी मिला देते हैं जीवन धार के साथ बहने लगते हैं ………सुगमता आ जाती है, सरलता आ जाती है फिर ज़िन्दगी रुकती नही है

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  8. बेहद गहन अभिव्यक्ति किन्तु सत्य, यही फितरत है जो बदलती नहीं... प्रेरनादायी रचना रची है आपने बधाई स्वीकारें
    होनी होनी है,हम हम-
    वह सिखाने से बाज नहीं आती
    हम चाल चलने से बाज नहीं आते
    कभी नहीं सोचते हम
    कि सारे फसाद की जड़ हम
    और हमारी मूर्खता है
    जिसे हम बुद्धिमानी कहते थकते नहीं ...
    ..... और ज़िन्दगी रूकती नहीं !!!

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  9. वह सिखाने से बाज नहीं आती
    हम चाल चलने से बाज नहीं आते
    कभी नहीं सोचते हम
    कि सारे फसाद की जड़ हम
    और हमारी मूर्खता है
    जिसे हम बुद्धिमानी कहते थकते नहीं ...
    ..... और ज़िन्दगी रूकती नहीं !!! ,वाह: गहन बात कह दी..आभार

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  10. जीवन कठिन है .....तो प्रश्नपत्र भी कठिन ,उत्तर भी कठिन ....कर्म करना ,कर्तव्य से बंधे रहना ...कर्मण्येवाधिकारसते .....
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति दी .....!!!!!

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  11. होनी होनी है,हम हम-
    वह सिखाने से बाज नहीं आती
    हम चाल चलने से बाज नहीं आते
    कभी नहीं सोचते हम
    कि सारे फसाद की जड़ हम
    और हमारी मूर्खता है
    जिसे हम बुद्धिमानी कहते थकते नहीं ...
    ..... और ज़िन्दगी रूकती नहीं !!!
    बेहद सटीक एवं गहन भाव को बड़ी खूबसूरती के साथ इन अंतिम पंक्तियों में लिख दिया है आपने बहुत बढ़िया रश्मि जी....:)आभार

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  12. वह सिखाने से बाज नहीं आती
    हम चाल चलने से बाज नहीं आते
    कभी नहीं सोचते हम
    कि सारे फसाद की जड़ हम
    और हमारी मूर्खता है
    जिसे हम बुद्धिमानी कहते थकते नहीं ...
    हमें अपने को बेबहा(अमूल्य) बनाना जो रहता है

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  13. सच अपने को समझ लिया तो सबकुछ समझ लिया ..जाने कितना कुछ जाने-अनजाने हम करते जाते हैं ...
    बहुत सुन्दर आत्मबोध कराती रचना ..आभार

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  14. बेहद गहन अभिव्यक्ति,आत्मबोध कराती

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  15. कभी नहीं सोचते हम
    कि सारे फसाद की जड़ हम
    और हमारी मूर्खता है ।

    और जिन्दगी ररुकती नही और होनी ... वह कठिन से कठिन प्रश्नपत्र तैयार करती जाती है हमारे लिये ।

    बहुत बढिया रश्मिप्रभा जी ।

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  16. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (13-10-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  17. होनी होनी है,हम हम-
    वह सिखाने से बाज नहीं आती
    सत्य है

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  18. jeevan kahan rukta hai sach hai hai
    bahut sunder bhavon se saja sunder lekhan
    rachana

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  19. सच है जीवन तो हर हाल में चलता रहता है.....

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  20. बेहतरीन भाव....मिटटी जब तक ना अपनाए ...जाएँ तो कहाँ जाएँ.

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  21. di
    bahut hi behatareen .subah -subah aapki is sashakt rachna ne mujh bahut hi sambal diya hai.har shabd gahan bhavanao se bharpur v saty ka avlokan karate hain.
    sach me jivah ik sangharsh hai par hame aage ka marg bhi vahi dikhati hai-------.
    sadr namaskaar
    poonam

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  22. हम चाल चलने से बाज नहीं आते
    कभी नहीं सोचते हम
    कि सारे फसाद की जड़ हम
    और हमारी मूर्खता है
    जिसे हम बुद्धिमानी कहते थकते नहीं ...
    ..... और ज़िन्दगी रूकती नहीं !!!


    सच है

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  23. दूसरे को मूर्ख बनाने के चक्कर में खुद ही धोखा खाते हैं .... सटीक लेखन

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  24. जीवन के प्रश्नों का पर्त-दर-पर्त उधार देती हैं आप जो अन्दर तक हिला देता है.

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  25. कभी नहीं सोचते हम
    कि सारे फसाद की जड़ हम
    और हमारी मूर्खता है
    जिसे हम बुद्धिमानी कहते थकते नहीं ...
    ..... और ज़िन्दगी रूकती नहीं !!!
    vakai sundar ...

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  26. और ज़िन्दगी हमारे आगे
    रोज़ एक नया प्रश्न उठाती
    और बिना पूर्व तैयारी के ही
    उतर पड़ते हैं मैदान में
    हर क्षण अनुत्तीर्ण होने की
    आशंका लिए
    करते जाते हैं हल
    ज़िन्दगी के अनोखे
    अनुत्तरित पल ........
    kitane hi savalon ko uthati zindagi roz hmari pareeksha leti hai.... bahut sundar kavita...
    sabhar..

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  27. होनी सा गुरु भला कौन
    जो प्रश्नों में जकड़ कर जीना सिखाये....सत्य यही है

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  28. मृत्यु पाठ्य पुस्तक का समापन पृष्ठ नहीं
    अगली परीक्षा का फॉर्म होता है

    ...अद्भुत पंक्तियाँ...गहन जीवन दर्शन का उत्कृष्ट चित्रण...आभार

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  29. हम क्यों बार बार अपनी ही मूर्खता का बखान करते नहीं थकते अजब है ये दुनिया और हम उसके प्राणी

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  30. कि सारे फसाद की जड़ हम
    और हमारी मूर्खता है
    जिसे हम बुद्धिमानी कहते थकते नहीं ...
    ..... और ज़िन्दगी रूकती नहीं !!!
    yahi sach hai......

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  31. सार्थक और सुंदर रचना रश्मि जी
    सादर

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  32. मृत्यु पाठ्य पुस्तक का समापन पृष्ठ नहीं
    अगली परीक्षा का फॉर्म होता है.

    आप जितनी सहजता से हर पहलू को रखती है रश्मि जी उसकी जितनी तारीफ़ की जाय कम है.

    सुंदर प्रस्तुति.

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  33. "वह सिखाने से बाज नहीं आती
    हम चाल चलने से बाज नहीं आते"
    और फिर होता वही है जो जिंदगी चाहती है |

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  34. मुझे नहीं आता है हिसाब -
    वह जानती है
    फिर भी - सिखा जाती है फॉर्मूला !

    Waah !!! Bahut pasand aayi formula wali baat:-)

    "वह सिखाने से बाज नहीं आती
    हम चाल चलने से बाज नहीं आते"
    और फिर होता वही है जो जिंदगी चाहती है |

    Bahut sundar...

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  35. वाह,.... बहुत ही सुन्दर लगी पोस्ट । जीवन एक प्रश्नपत्र की तरह ही तो है तैयारी कितनी ही कर लो परीक्षा में क्या आ जाए कुछ नहीं पता होता ।

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  36. ज़िन्दगी हमें बड़ा कुछ सिखाती है ......!
    शुभकामनाएँ!

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  37. ज़िंदगी को हिसाब और प्रश्न पत्र के संदर्भ में बखूबी उकेरा है.

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