मैं' अहम् नहीं
आरंभ है
मैं से ही तुम और हम की उत्पत्ति है
मैं ही नहीं तो कुछ नहीं !
प्रेम,परिवर्तन,ईर्ष्या,हिंसा.. ..
सबके पीछे मैं
इस मैं को प्रेम ना दो
तो वह हिंसात्मक हो जाता है
ईर्ष्या की अग्नि में जलता है
परिवर्तन के नाम पर उपदेशक बन जाता है ...
तो सर्वप्रथम मैं की अहमियत जानो !
प्राकृतिक सम्पूर्णता में
मैं के अनगिनत बीज लगे हैं
उनका सिंचन मैं ही करता है
मैं ही वेद,मैं ही उपनिषद
मैं ही ग्रन्थ,मैं ही महाग्रंथ
मैं का विलय एक सूक्ष्म प्रक्रिया है
जो मैं अपनी दृष्टिगत क्षमता
और प्राप्य के हिसाब से करता है !
ईश्वर एक
अर्थात मैं का स्वरुप
ईश्वर सबमें
अर्थात मैं ही ब्रह्म
अब यदि मैं सकारात्मक है तो निश्चित रूप से देव है
नकारात्मक है तो असुर !
मैं ही माँ
मैं ही पिता
संतान मैं के कार्य का परिणाम
परिणाम - सिर्फ मैं
या मैं की प्राणवायु शक्ति
जो मैं से तुम
और दोनों के संयोग से हम बने ...
मैं के योग से दैविक समूह बनता है
तो इसी योग से असुर समूह भी
समूह सृष्टिकर्ता है
तो विनाशक भी
इसलिए समूह से परे
पहले मैं को जानो
सत्य और असत्य
मैं के मुख्य द्वार पर ही मिलते हैं
और दिशा -
उस मैं से ही विभक्त होती है तुम्हारे लिए
कि तुम्हारा मैं किस दिशा का चयन करता है
....
अतः मैं को समझो
मैं को जानो
मैं को सजग और मजबूत करो...
आगत मैं में है
मैं ही नहीं तो कुछ नहीं
कुछ भी नहीं !!!
मैं के अनगिनत बीज लगे हैं
जवाब देंहटाएंउनका सिंचन मैं ही करता है
मैं ही वेद,मैं ही उपनिषद
मैं ही ग्रन्थ,मैं ही महाग्रंथ
कितनी गहनता है इन शब्दों में ... उत्कृष्ट अभिव्यक्ति के लिए आभार
अरे वाह बहुत खूबसूरत विश्लेषण किया है और कमाल है आज मैने भी एक रचना "मैं" पर ही लिखी है …………क्य विचार और् भाव भी समस्तर पर आते हैं हमारे पास :)
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट अभिव्यक्ति, गहन शब्द.
जवाब देंहटाएंसच है मैं मे ही सारा ब्रह्मांड़ छिपा हुआ है...अनुपम..
जवाब देंहटाएंमैं को सजग और मजबूत करो...
आगत मैं में है
मैं ही नहीं तो कुछ नहीं
कुछ भी नहीं !!!
अद्धभुत वर्णन ! सचमुच कुछ भी नहीं !!
अहम् ब्रह्मा ! मैं ब्रह्मा हूँ अर्थात श्रृष्टि करता करता हूँ .सभी "मैं " से ही है .सही कहा आपने.
जवाब देंहटाएंमैं से ही तुम और हम की उत्पत्ति है
जवाब देंहटाएंमैं ही नहीं तो कुछ नहीं !,,,,,,,
उत्कृष्ट प्रस्तुति,,,
मैं में सबकुछ समाया..कोशिश अक्रते हैं समझने की ...मैं को.
जवाब देंहटाएंमैं अहं नहीं.....
जवाब देंहटाएंऔर मैं नहीं तो कुछ नहीं......
ये यकीन ही तो मेरे होने को सार्थक करता है....
बेहद सुन्दर भाव दी
सादर
अनु
अतः मैं को समझो
जवाब देंहटाएंमैं को जानो
मैं को सजग और मजबूत करो...
आगत मैं में है
मैं ही नहीं तो कुछ नहीं
gahan vishleshan kamal
rachana
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (06-10-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
' अहम् ब्रह्मास्मि ' को कहती अद्भुत रचना.
जवाब देंहटाएं'मैं'...सकारात्मक भी नकारात्मक भी...कहीं उन्नति कहीं अवनति...यह सच है बिना मैं के कुछ भी नहीं|
जवाब देंहटाएंअहम रहित स्नेह युक्त मैं ..जीवन का सकारात्मक आलंबन और आधार...अनूठी भाव युक्त अभिव्यक्ति....सादर !!!
जवाब देंहटाएंहर बार की तरह एक गंभीर दर्शन.. यह मैं जो सभी नकारात्मक शक्तियों की जड़ है उसके हर रूप दिखा दिए आपने!!
जवाब देंहटाएंमै अगर नकारात्मक है तो अहंकार
जवाब देंहटाएंसकारात्मक है तो "अहं ब्रह्मास्मि"
सुंदर रचना है .....सारे झगडे फसाद इस मै की वजह से है !
बड़ा गहन और सूक्ष्म विश्लेषण किया है रश्मिप्रभा जी ! इस अद्भुत रचना के लिये बधाई एवं अभिनन्दन !
जवाब देंहटाएंमैं की सार्थकता...दर्शन को समझाती उत्कृष्ट रचना
जवाब देंहटाएंमैं से ही हम की उत्पत्ति होती है ... बहुत गहन विचार ...
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब! वाह!
जवाब देंहटाएंकृपया इसे भी देखें-
नाहक़ ही प्यार आया
आज 06-10-12 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
जवाब देंहटाएं.... आज की वार्ता में ... उधार की ज़िंदगी ...... फिर एक चौराहा ...........ब्लॉग 4 वार्ता ... संगीता स्वरूप.
मैं स्वनिर्माण, उत्थान के लिए है तो सत्य है , मगर सिर्फ अपनी प्रशंसा के लिए है तो व्यर्थ है !
जवाब देंहटाएंमैं ही सर्वस्व,
जवाब देंहटाएंमैं ही सर्वत्र !!
मैं से ही हम है ......उत्कृष्ट अभिव्यक्ति,
जवाब देंहटाएंमैं के अनगिनत बीज लगे हैं
जवाब देंहटाएंउनका सिंचन मैं ही करता है
मैं ही वेद,मैं ही उपनिषद
मैं ही ग्रन्थ,मैं ही महाग्रंथ
कितनी गहनता है इन शब्दों में ...bhaut dino baad apko padh rahi hun...jab padhti hun har ek shabd roshni ki or le jaate hai...
मैं में सब कुछ....और मैं में कुछ भी नहीं.
जवाब देंहटाएंमैं से प्रस्फुटित कितने ही प्रश्न और उत्तर।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सार्थक और उत्कृष्ट प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएं:-)
मैं के अनगिनत बीज लगे हैं
जवाब देंहटाएंउनका सिंचन मैं ही करता है
कितनी सार्थक बात ...
मैं ...के साथ ...डूबते उभरते इस जीवन के विचार ...पर मैं को स्थिर करना जरुरी भी हैं .......
जवाब देंहटाएंमैं को समझो
जवाब देंहटाएंमैं को जानो
मैं को सजग और मजबूत करो...
आगत मैं में है
मैं ही नहीं तो कुछ नहीं
उत्कृष्ट जीवनसार, उत्कृष्ट प्रस्तुति.
मैं को सजग और मजबूत करो....zaroori hai,main ki bahot achchi vyakhya ki hain.
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन!!
जवाब देंहटाएंबिलकुल सहमत हूँ इससे....इस 'मैं' से ही सब कुछ है ।
जवाब देंहटाएंमै हूँ क्यूं कि मै सोचती हूँ, लिखती हूँ ।
जवाब देंहटाएंमै का सकारात्मक होना बहुत जरूरी ।
अतः मैं को समझो
जवाब देंहटाएंमैं को जानो
मैं को सजग और मजबूत करो...
आगत मैं में है
मैं ही नहीं तो कुछ नहीं
कुछ भी नहीं !!!bahut khub
मै से हम तक की यात्रा में जो शब्द संधान किया गया है वह जीवन का दार्शनिक निष्कर्ष है ...आप को पढ़ कर मेरे सूक्ष्म जगत को एक नयी रश्मि मिली ......शुभकामनाएं .....
जवाब देंहटाएं