उंच नीच
अमीर गरीब
महल झोपडी
इसके फर्क से व्यक्ति का आकलन नहीं होता ...
करने को कितना भी कर लो
पर वह मायने नहीं रखता .
संस्कार से गुण होते और जाते हैं
छोटे घरों से भी कुलीन विचार आते हैं !
ऊँचे घरों की खिडकियों से
जब चीखने चिल्लाने की
आवाजें आती हैं
बेबाक गालियाँ सुनाई देती हैं
तो लोग कहते हैं
'झोपड़पट्टी जैसे हालात हैं'
!!!
झोपड़ी में तो कोई नहीं कहता
'बड़े घरों की भाषा मत बोलो'
झोपड़ी अपने अभावों से लड़ती है
थककर चीखती है
सस्ती शराब पीकर फुटपाथ पर ढेर हो जाती है
पर ऊँचे लोग,बड़े लोग
सम्पन्नता के नशे में
एक दूसरे को छोटा बताते हैं
महँगी शराब पीकर
अपनी अहमियत
अपनी शान
अपना रूतबा
अपने संस्कार
गालियों से सिद्ध करते हैं
आपस में आइना दिखाते हुए
वे अपने बाथरूम के टब में ढेर हो जाते हैं
उनके घरों में आये मेहमान
उनके कंधे थपथपाते
अपना हिसाब किताब देखने अपने घर चल देते हैं
सुबह की अंगड़ाइयों में
झोपडी से आती आवाज़ पर
मुंह बिचकाते कहते हैं
'बेशहूर हैं सब'
!!!
अपने शहूर पर उन्हें नाज है
इस सत्य से परे
कि .... झोपडी के खाने में आज भी स्वाद है
उनके आगे
उनकी किसी टिप्पणी के बगैर
उनका रहन सहन बेस्वाद है !
तो लोग कहते हैं
जवाब देंहटाएं'झोपड़पट्टी जैसे हालात हैं'
!!!
झोपड़ी में तो कोई नहीं कहता
'बड़े घरों की भाषा मत बोलो'
bhut hi steek ..aur hqiqt ....
अपने शहूर पर उन्हें नाज है
जवाब देंहटाएंइस सत्य से परे
कि .... झोपडी के खाने में आज भी स्वाद है
एक सच जिसे शुरू से लेकर अंत तक बखूबी बयान करती आपकी कलम ... जब सच की भाषा कहती है तो हमें भी फख्र होता है आपको पढ़ने का ...
सादर
संस्कार से गुण होते और जाते हैं
जवाब देंहटाएंछोटे घरों से भी कुलीन विचार आते हैं !
ऊँचे घरों की खिडकियों से
जब चीखने चिल्लाने की
आवाजें आती हैं
बेबाक गालियाँ सुनाई देती हैं
तो लोग कहते हैं
'झोपड़पट्टी जैसे हालात हैं'
!!!
झोपड़ी में तो कोई नहीं कहता
'बड़े घरों की भाषा मत बोलो',,,,,,,,,,,,,,,Abhijatya varg par ek tamacha .............. speechless post
सही बात है... झोपडी के खाने में आज भी स्वाद है, संस्कार,गुण और कुलीन विचार छोटे घरों से भी आते हैं...
जवाब देंहटाएंऊँचे घरों की खिडकियों से जब चीखने चिल्लाने की आवाजें आती हैं बेबाक गालियाँ सुनाई देती हैं तो लोग कहते हैं 'झोपड़पट्टी जैसे हालात हैं'!!!झोपड़ी में तो कोई नहीं कहता 'बड़े घरों की भाषा मत बोलो'
जवाब देंहटाएंBahut umdaa kavita
महलों से चीखने की आवाजें आतीं तो सब कहते हैं-बड़े घर की बड़ी बात
जवाब देंहटाएंछोटे घरों से आती है तो सब कहते हैं - वे अशिक्षित हैं
महल और झोपड़ी का फर्क दिखने लगता है!
बेहद सशक्त रचना है, आदरेया आपकी रचनायें सदैव प्रभावित करती हैं, आपकी कलम को नतमस्तक हो प्रणाम करता हूँ. स्वीकार करें.
जवाब देंहटाएंसुबह की अंगड़ाइयों में
झोपडी से आती आवाज़ पर
मुंह बिचकाते कहते हैं
'बेशहूर हैं सब'
तो लोग कहते हैं
जवाब देंहटाएं'झोपड़पट्टी जैसे हालात हैं'
!!!
झोपड़ी में तो कोई नहीं कहता
'बड़े घरों की भाषा मत बोलो'sachchayee ka sahi bayan......
सटीक बात!!!!!
जवाब देंहटाएंमानसिकता पैसे से तय नहीं होती....डिग्रियों से भी नहीं.....
सादर
अनु
सुबह की अंगड़ाइयों में
जवाब देंहटाएंझोपडी से आती आवाज़ पर
मुंह बिचकाते कहते हैं
'बेशहूर हैं सब'
अपने शहूर का नमूना पहले दिखला तो दिए होते हैं
कई बार नहीं समझ में आते घुमावदार वाक्य। दिल में उतर जाती हैं..सीधी, खरी बातें।
जवाब देंहटाएंआदमी के घर पैदा होना जितना आसान है...उतना ही कठिन है आदमी बनना...मुद्दतें लगतीं हैं आदमी को इंसान होने में...
जवाब देंहटाएंयथार्थ कहती बहुत ही बेहतरीन रचना....
जवाब देंहटाएं:-)
गरीबी और अमीरी का फर्क सिर्फ रहन सहन से ही नहीं बल्कि भाषा से होता है और जब ये ही फर्क मिट जाए तो आम लोग सोचने पर मजबूर हो जाते हैं .......सटीक रचना रश्मि दी
जवाब देंहटाएंपने शहूर पर उन्हें नाज है
जवाब देंहटाएंइस सत्य से परे
कि .... झोपडी के खाने में आज भी स्वाद है
आदमी विचारों से बड़ा होता है सही कहा आपने
छोटी छोटी बातें करके बड़े कहां हो जाओगे,
जवाब देंहटाएंपतली गलियो से निकलो तो खुली सड़क पर आओगे
आज की सच्चाई वयां करती बहुत सुंदर रचना
हकीकत को शब्द और आवाज दिया आपने
शब्द और व्यवहार ही तय करता है उंच -नीच !
जवाब देंहटाएंbilkool sahi ,jyadatar aisa hi hota hai ,maano sanskari log naami khandano / badi badi haveliyon aur unche apartment me hi rahte hain :(
जवाब देंहटाएंयथार्थ के करीब
जवाब देंहटाएंshayad mahal walo ko jhopadi walo par tippani karne ka adhikar hai lekin insaniyat nahi mili un mahal walo ko.
जवाब देंहटाएंआपकी भावनाओं को सलाम .....
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएँ!
आपकी भावनाओं को सलाम .....
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएँ!
सही कहा है, धन से नही सलीके से ही आंक सकते हैं हैसियत को..
जवाब देंहटाएंझोपड़ी हो या महल..जहां प्यार है वहीं सुख है..
अब तो संस्कार छोटे घरों में बचे हैं....
जवाब देंहटाएंआजकल तो बच्चों के लिए संस्कार भी स्कूलों को ही आउटसोर्स कर दिए दिखते हैं
जवाब देंहटाएंव्यवहार इन सब पर निर्भर नहीं करता, केवल संस्कारों पर निर्भर करता है।
जवाब देंहटाएंसही है ! अपने अपने संस्कार , अपनी अपनी मानसिकता...
जवाब देंहटाएं~सादर !
संस्कार से गुण होते और जाते हैं
जवाब देंहटाएंछोटे घरों से भी कुलीन विचार आते हैं !
सही बात कही है ....सटीक रचना !
आचार व्यवहार झोपड़ी में खराब और महलों में अच्छे बिलकुल जरुरी नहीं. नजदीक से अंतर समझने का सार्थक प्रयास.
जवाब देंहटाएंअपने शहूर पर उन्हें नाज है
जवाब देंहटाएंइस सत्य से परे
कि .... झोपडी के खाने में आज भी स्वाद है
भौतिकता की इस दौड में आत्मीय संवेदनाएं
और सरलता ..दंभ और बड़प्पन के आगे कितने
बौने हो गए हैं...बेहद ही शशक्त अभिव्यक्ति....आभार ...
सादर !!!
ऊँचे घरों की खिडकियों से
जवाब देंहटाएंजब चीखने चिल्लाने की
आवाजें आती हैं
बेबाक गालियाँ सुनाई देती हैं
तो लोग कहते हैं
'झोपड़पट्टी जैसे हालात हैं'
!!!
झोपड़ी में तो कोई नहीं कहता
'बड़े घरों की भाषा मत बोलो'
....बहुत खूब! बहुत सार्थक चिंतन...
झोपड़ी में तो कोई नहीं कहता
जवाब देंहटाएं'बड़े घरों की भाषा मत बोलो'
सब पैसे के नशे में चूर स्वयं को सभ्य कहते हैं ... आपने झोपड़ी और महल के अंतर को बखूबी कहा है .... सार्थक रचना
amazing, speechless.
जवाब देंहटाएंस्पष्ट रूप से प्रहार करती आपकी बातें प्रभावित करती है..
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