माँ दुर्गा
असुर संहारक
उनके आगमन का तात्पर्य
हम अपने भीतर की नकारात्मकता
आसुरी प्रवृति को खत्म करें !
नकारात्मक सोच
सहज प्रवृति है
पर कल्पना के कई स्रोत होते हैं
एक जो हर हाल में सकारात्मक हो
दूसरा मर्यादित
तीसरा हिंसात्मक ....
......
संस्कार और पालन-पोषण
भावभंगिमा
शब्दों के उचित -अनुचित प्रयोग से
स्पष्ट उजागर होते हैं !
मातृत्व की गरिमा लिए
सौन्दर्य,जय,यश लिए
माँ दुर्गा जयकार सुनने नहीं आतीं
नहीं आतीं यह देखने
कि कितने फलों से उन्हें पूजा गया है
दाता को कमी किस बात की ...
वह तो सिर्फ मन से अर्पित भावों को देखती हैं
और उसके आधार पर लेती और देती हैं !
अनुचित शब्दों के प्रयोगमात्र से
हम शक्तिविहीन होते हैं
किसी को रुलाना
किसी के उपहास से शान्ति पाना
किसी की हत्या
.... शक्तिद्योतक नहीं
शक्ति है
एक रोटी को आधी कर
आधी भूख आधी नींद को बांटना
शक्ति है
होठों पर हंसी देना
भय से मुक्त करना
विषम परिस्थियों में साथ होना
.....
इससे बड़ी पूजा
इससे बड़ा ज्ञान
इससे बड़ी शक्ति
इससे अलग कोई मुक्ति नहीं ....
माँ एक नहीं - पूरी नवरात्री तक
अखंड दिए की ज्योत में
अंधकार से भरी मूढ़ता को
ज्ञान की रौशनी देती हैं ....
पर तथाकथित भक्तगण
लाने से लेकर विसर्जित करने तक
तन्द्रा में होते हैं
ऐसे में कैसा आगमन
किसका आगमन ....
और विसर्जन यानि विदाई !!!
शक्ति है
जवाब देंहटाएंएक रोटी को आधी कर
आधी भूख आधी नींद को बांटना
शक्ति है
होठों पर हंसी देना
भय से मुक्त करना
विषम परिस्थियों में साथ होना
सच्ची भक्ति ... सच्ची शक्ति ... गहन चिंतन
प्रेरणात्मक पंक्तियां
सादर
बहुत सु्न्दर भाव समायोजन
जवाब देंहटाएंपर कल्पना के कई स्रोत होते हैं
जवाब देंहटाएंएक जो हर हाल में सकारात्मक हो
दूसरा मर्यादित
तीसरा हिंसात्मक ....
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तथाकथित भक्तगण
लाने से लेकर विसर्जित करने तक
तन्द्रा में होते हैं
ऐसे में कैसा आगमन
किसका आगमन ....
और विसर्जन यानि विदाई !!!
..................... एक दम सही कहा आपने ........ दुर्गा का आगमन और विसर्जन ...........मन की आसुरी शक्ति का विसर्जन और सात्विकता का आगमन होना चाहिए ... पर हम बस एक त्यौहार मन कर खुश हो लेते हैं ........... एक सार्थक रचना
इतनी शक्ति हमें देना माता, कभी कमजोर हम पड़ें ना
जवाब देंहटाएंज्ञान की लौ इस तरह से जलाना, कभी राह में वो बुझे ना
ऐसी वाणी हमें देना माता, कभी दिल किसी का दुखे ना
सच्चे अर्थों में आराधना वही तो है.....
जवाब देंहटाएंसच्ची भक्ती से ही मिलेगी सच्ची शक्ति...
सुन्दर दी!!!
सादर
अनु
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबढिया भाव
माँ दुर्गा जयकार सुनने नहीं आतीं
नहीं आतीं यह देखने
कि कितने फलों से उन्हें पूजा गया है
दाता को कमी किस बात की ...
वह तो सिर्फ मन से अर्पित भावों को देखती हैं
और उसके आधार पर लेती और देती हैं !
अनुचित शब्दों के प्रयोगमात्र से
हम शक्तिविहीन होते हैं
पर तथाकथित भक्तगण
जवाब देंहटाएंलाने से लेकर विसर्जित करने तक
तन्द्रा में होते हैं
और यह तंद्रा टूटती भी नहीं .... सशक्त रचना
अनुचित शब्दों के प्रयोगमात्र से
जवाब देंहटाएंहम शक्तिविहीन होते हैं
किसी को रुलाना
किसी के उपहास से शान्ति पाना
किसी की हत्या
.... शक्तिद्योतक नहीं ....
सभी ऐसा कहाँ समझ पाते है ....
जो नहीं समझ पाते ,ज्यादा फूल-फल चढ़ाते हैं ....
अच्छे विचार और अच्छे संस्कार देती बेहतरीन रचना...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर.....
नवरात्री की शुभकामनाएँ....
:-)
बहुत खूब...प्रेरणात्मक रचना |
जवाब देंहटाएंसादर |
शक्ति है
जवाब देंहटाएंएक रोटी को आधी कर
आधी भूख आधी नींद को बांटना
शक्ति है
होठों पर हंसी देना
भय से मुक्त करना
विषम परिस्थियों में साथ होना
...लाज़वाब अहसास...कटु सत्य को दर्शाती भावपूर्ण रचना..आभार
शक्ति है
जवाब देंहटाएंएक रोटी को आधी कर
आधी भूख आधी नींद को बांटना
शक्ति है
होठों पर हंसी देना
भय से मुक्त करना
विषम परिस्थियों में साथ होना
बहुत बहुत सुन्दर रश्मिप्रभा जी ! कितनी सहजता से इतनी गूढ़ बातें आप कह जाती हैं ! सच माँ के आगमन से विसर्जन तक हर विधि, हर काम जैसे लकीर पीटने की तरह किया जाता है ! माँ की इच्छा क्या है, माँ की अपेक्षा क्या है, माँ की स्वीकृति किसमें है इसे कौन समझ पाता है ! यहाँ भी प्रदर्शन को ही प्राथमिकता दी जाती है संस्कारों को नहीं ! नवरात्र की हार्दिक शुभकामनाएं !
अच्छी रचना रश्मि जी !:)
जवाब देंहटाएंकर्म अच्छे होने चाहिए ....वही सच्ची आराधना, वही उपासना.... ! किसी भी देवी-देवता को इससे ज़्यादा और कुछ नहीं चाहिए...~ऐसा मेरा मानना है.. :)
~सादर !
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 18-10 -2012 को यहाँ भी है
जवाब देंहटाएं.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....
मलाला तुम इतनी मासूम लगीं मुझे कि तुम्हारे भीतर बुद्ध दिखते हैं ....। .
ये तन्द्रा टूटे तो ही माँ की पूजा सार्थक हो......
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर विवेचन
जवाब देंहटाएंशक्ति है
जवाब देंहटाएंहोठों पर हंसी देना
भय से मुक्त करना
विषम परिस्थियों में साथ होना
सत्य!
आराधना का सही अर्थ तो यही होना था ....होता मगर कम है ! हम सब अपनी आदत से मजबूर !!
जवाब देंहटाएंसार्थक विचार !
बहुत सकारात्मक सोच - उस सर्व मंगला की सच्ची आराधना यही होगी !
जवाब देंहटाएंपर तथाकथित भक्तगण
जवाब देंहटाएंलाने से लेकर विसर्जित करने तक
तन्द्रा में होते हैं
ऐसे में कैसा आगमन
किसका आगमन ....
और विसर्जन यानि विदाई !
sarthak rachna .....
मन को झकझोरती रचना
जवाब देंहटाएंदुर्गा पूजा का बहुत सुंदर आकलन...आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी ...
जवाब देंहटाएंबेह्तरीन अभिव्यक्ति ...!!
शुभकामनायें.
.आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी ...
जवाब देंहटाएंबेह्तरीन अभिव्यक्ति ...!!
शुभकामनायें.
.आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
शक्ति है
जवाब देंहटाएंएक रोटी को आधी कर
आधी भूख आधी नींद को बांटना
शक्ति है
होठों पर हंसी देना
भय से मुक्त करना
विषम परिस्थियों में साथ होना ....असली पूजा यही है..आभार
सुन्दर कविता, नवरात्रि की शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंनकारात्मक सोच का विसर्जन सही है .
जवाब देंहटाएंमूर्तियों का विसर्जन यमुना को प्रदूषित किये हुए है.
इस पर भी विचार होना चाहिए .
दीदी, हर बार की तरह हर कथानक और परम्परा को एक नया पहलू प्रदान करता है.. एक नयी सोच को जन्म देता है और विचार के लिए उकसाता है!! बहुत सुन्दर!!
जवाब देंहटाएंदेखा जाए तो आडम्बर पसार कर माँ का अपमान करना ही आज का फैशन हो गया है .
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर,ज्ञानवर्धक और प्रेरक प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंआभार.
नवरात्रि की शुभकामनाएँ.
समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईएगा.
MUJHE BHI SAMJH NAHIN AATI YE BAAT,SAARE SAAL ULTA SEEDHA KAAM KARENGE AUR NAU DIN DHAKOSALA .MANDIRON ME MAA KI MOORAT SHAYAD YAHI SAB DEKH KAR HANSTI HOOGI ,INJAISE LOGON PAR ...AUR SHAYAD KABHI KABHI MUJH PAR BHI :(
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सार्थक विचार ...कर्म अच्छे होने चाहिए ....कर्म अच्छा है तो सबकुछ अच्छा होता चला जाता है ...देवी की पूजा के लिए सिर्फ आठ ही दिन क्यों ......जो पहले से ही मौजूद है उसकी स्थापना क्या करना ........जो कभी नष्ट नहीं होता उसे विसर्जित क्या करना .... स्थापना तो अच्छाई की व विसर्जन तो बुराई की होनी चाहिए ....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंनवरात्रि की शुभकामनायें।