(माँ ने कहा - बित्ते भर की थी सच की जमीन .... और भाव उमड़ते गए मेरे अन्दर)
पर झूठ की ईमारत बड़ी ऊँची बनी !
एक एक कमरा शातिर
और रहनेवाले लोग धुएं के छल्लों से
जो होकर भी गुम हैं !
कहते हैं बुद्धिजीवी की शक्ल में सभी
कि बिना आग के धुंआ नहीं
एक हाथ से ताली नहीं ...
बित्ते भर की शक्ल में आम लोगों से पूछो
कि किस तरह बिना आग के वे बुरी तरह झुलस गए
किस तरह रेकॉर्डेड तालियाँ गूंजती रहीं
और वे ...............
न खुद पर बर्फ़ रख सके
न कुछ बोल सके
एक ही प्रश्न एक लगातार होते रहे
जवाब सुनने के लिए कोई था ही नहीं
तो चुप का धुंआ फैलता रहा !!!
बित्ते भर की जमीन
अपनी सच्चाई किस कमरे में पहुंचाए
आलिशान फ्लैटों में तो ताले जड़े होते हैं
लिफ्ट से नीचे उतर
सारे चेहरे
लम्बी सी कार के स्याह शीशों में छुप जाते हैं
आम चेहरे उन्हें रास ही नहीं आते !
बित्ते भर की जमीन की सच्चाई
दिखाए कौन ?
वह .... जिसने बेटी की शादी के लिए
कौड़ियों के भाव उसे बेच दिया
कौन करेगा उस पर विश्वास ?
वे .... जो शक से ही आरम्भ करते हैं !
करें भी कैसे नहीं -
मिलावट उनका ऐशो आराम है
सबकुछ के बाद भी रोना उनका टोटका है
सच के साए तक से उन्हें नफरत है
तभी तो .....
बित्ते भर जमीन की सच्ची हैसियत
उन्होंने झूठ की मिटटी में मिला दी
और नशे में तर्पण अर्पण कर दिया ....
चलो इतना तो साथ निभाया
मारा तो संस्कार भी कर दिया
नशे में धुत्त ही सही ............
...................
बड़े लोगों की बड़ी बात
सच की क्या बात !
छोटी सी औकात
और विश्वास -
आखिर में सत्य की ही जीत होती है !
जाने कहाँ है यह आखिरी सीमा
बित्ते भर सच की ?????????
बेहतरीन , लाजवाब
जवाब देंहटाएंहम्म्म्म...सच की जात होती तो है...पर इतने संघर्षों के बाद कि थके चेहरे खुशी प्रदर्शित भी नहीं कर पाते|
जवाब देंहटाएंएकदम सटीक .... :)
जवाब देंहटाएंयह सच शब्द न बड़े-बड़ों की बोलती बंद कर देता है,
जवाब देंहटाएंवैसे ही यह अभिव्यक्ति ...
आखिर में सत्य की ही जीत होती है !
जाने कहाँ है यह आखिरी सीमा
बित्ते भर सच की ?????????
बेहद गहन भाव ... सशक्त लेखन
सादर
बित्ते भर सच की ज़मीन झूठ की बड़ी बड़ी इमारत ढहा देता है ..... पर उसे ढहाने में वक़्त लगता है ... सुंदर विचारणीय रचना
जवाब देंहटाएंसच तो बित्ते भर का ही होता है। झूठ का होता है पुलिंदा।
जवाब देंहटाएंबीते भर सच की जमीं बहु मंजिला झूट को धराशायी कर सकता है..अंत में सत्य की जीत होती है
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंबित्ते भर की थी सच की जमीन ...
पर झूठ की ईमारत बड़ी ऊँची बनी !!
नीव खोखली है ,भरभरा के गिरेगी झूठ की ईमारत !!
आखिर में सत्य की ही जीत होती है !
जवाब देंहटाएंजाने कहाँ है यह आखिरी सीमा
बित्ते भर सच की,,,,
सच छोटा होता है,झूठ का पुलिंदा,,,,
विजयादशमी की हादिक शुभकामनाये,,,
RECENT POST...: विजयादशमी,,,
आखिरी सीमा झूठ के क्षितिज से बहुत छोटी है, दिखती ही नहीं।
जवाब देंहटाएंbitte bhar me sab sama gaya:)
जवाब देंहटाएंवाह ...इतनी आसानी से इतना सच कैसे कह देती हो आप.
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया रचना, आज का सच बयां करती ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ....
जवाब देंहटाएंबित्ते भर की जमीन
अपनी सच्चाई किस कमरे में पहुंचाए ...
बित्ते भर की जमीन की सच्चाई
दिखाए कौन ?
प्रश्न हैं...उत्तर नदारद....
सादर
अनु
पर बित्ते सा सच पहाड़ सी प्रतीक्षा कराता है।
जवाब देंहटाएंबित्ते भर का सच इतना गहन है कि इसने सभी झूठों को बेनकाब कर दिया है... बहुत प्रभावी रचना !
जवाब देंहटाएंएक दिन ज़रूर आयेगा जब यही बित्ते भर सच .....अपने ऊपर जमीं सारी सतहों को तोड़कर ....ऊपर उठ आयेगा ...और अपना ताक़त से सबका परिचय करवाएगा ....वोह होगी सीमा उस बित्ते भर सच की ....जब इंसान उसकी सच्चाई के आगे शर्म से ज़मींदोज़ हो जायेगा .....और वह दिन आयेगा यह पूर्ण विश्वास है....!
जवाब देंहटाएंखतावार समझेगी दुनिया तुझे,
जवाब देंहटाएंअब इतनी भी ज़्यादा सफाई न दे!
बस इसी वज़ह से सच बेचारा बित्ते भर का चार हाथ के झूठ तले पिसता है..
भले ही सच बित्ते भर का हो पर इसका प्रभाव इसकी शक्ति सर्वोपरि होती है इसी लिए अंत में इसकी जीत होती है aut झूठ का राक्षस इसके सम्मुख दम तोड़ देता है ,बहुत उत्कृष्ट रचना शुभकामनाये आपको रश्मि जी
जवाब देंहटाएंबहुत बड़े झूठ के लिए बित्ते भर का सच ही काफी होता है..सुंदर विचारणीय रचना..आभार
जवाब देंहटाएंआज भी हर सच्चाई ....झूठ के पहाड़ से ऊँची है
जवाब देंहटाएंबित्ते भर की थी सच की जमीन ...
जवाब देंहटाएंपर झूठ की ईमारत बड़ी ऊँची बनी !
एक एक कमरा शातिर
और रहनेवाले लोग धुएं के छल्लों से
जो होकर भी गुम हैं !wah....adbhud soch.
निशब्द करते सपष्ट भाव
जवाब देंहटाएंआँखों में आंसू हैं, और जिह्वा शब्दहीन है... कालजयी रचना
जवाब देंहटाएंबहुत आभार!!
समाज को आइना दिखाती बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसबकुछ के बाद भी रोना उनका टोटका है
जवाब देंहटाएंसटीक रचना
बित्ते भर का कहते ही कुछ नामचीन याद आ जाते हैं जिन्होंने उच्चतम मानक स्थापित किये !
जवाब देंहटाएंन खुद पर बर्फ़ रख सके
जवाब देंहटाएंन कुछ बोल सके
एक ही प्रश्न एक लगातार होते रहे
जवाब सुनने के लिए कोई था ही नहीं
तो चुप का धुंआ फैलता रहा !!!लाजवाब
सबकुछ के बाद भी रोना उनका टोटका है
जवाब देंहटाएंसच के साए तक से उन्हें नफरत है
तभी तो .....
बित्ते भर जमीन की सच्ची हैसियत
उन्होंने झूठ की मिटटी में मिला दी
और नशे में तर्पण अर्पण कर दिया ....
सारे सच के परदे खोल दिये।
आखिर में सत्य की ही जीत होती है !
जवाब देंहटाएंजाने कहाँ है यह आखिरी सीमा
बित्ते भर सच की ?????????
शायद खुद को मिले सुकूँन और स्वाभिमान में... :)
bitte bhar sach ko sabit hone me kitane bade bade papad belane hote hai.lekin ant me jeet usi ki hoti hai..sundar.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति. इसे पढ़ कर कृष्ण बिहारी नूर का एक शेर याद आ गया कि-
जवाब देंहटाएंसच घटे या बढे, तो सच ना रहे
झूठ कि कोई इन्तेहा ही नहीं.
उत्कृष्ट और अदभुत भावपूर्ण प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंबित्ते भर की जमीन
जवाब देंहटाएंअपनी सच्चाई किस कमरे में पहुंचाए
आलिशान फ्लैटों में तो ताले जड़े होते हैं
लिफ्ट से नीचे उतर
सारे चेहरे
लम्बी सी कार के स्याह शीशों में छुप जाते हैं
आम चेहरे उन्हें रास ही नहीं आते ! nice
वाह! ..निशब्द..
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