खुद को ढूंढना,तौलना...
पाकर खुद से खुद को खोना,
असली जीवन है- और ख़ुशी भी .
पा लो खुद को
रख लो संजो के
फिर खोज ख़त्म हो जाती है
विराम हो जाए
तो जो प्राप्य है
वह एकबारगी अधूरी हो जाती है !
लम्हा लम्हा कोई पाता है खुद को
फिर अचानक उस पर
डाल देता है एक झूठा आवरण
तो वहाँ से उत्पन्न होता है
एक और सत्य -
जिसकी परिधि में
विस्तार में
स्व और स्व की छाया
घटती बढ़ती रहती है ...
छाया घटे या बढे
है तो असत्य और अपूर्ण ही
और पूर्णता के लिए निरंतरता तब तक ज़रूरी है
जब तक साँसें हैं !
न प्रश्न, न उत्तर
स्व की क्रिया प्रतिक्रिया
आतंरिक होती है
जो अर्धमुर्छावस्था में भी सक्रिय है
मृत दिमाग
यदि साँसें ले रहा है
तो वह
निःसंदेह -
एक अकथनीय जीवन जी रहा है
व्यक्तिविशेष और उसका शरीर
भले ही उत्तर ना दें
पर उसके अर्थ उसके साक्ष्य मृत दिमाग में
असाक्ष्य भाव से गतिशील होते हैं
और जब तक गति है
पाना है
खोना है
घड़े के पानी की तरह !
घड़ा यदि भरा रह जाए
तो कोई प्यासा रह गया - तय है
कालांतर में जल पीने योग्य नहीं रहा
तो सहज भाव से रिक्त होना है
ताकि फिर भर सकें !
................
सूर्य के अस्त होने में ही उदय भाव है
और प्रकृति की नवीन गतिशीलता .......
बेहद गहन रचना दी......
जवाब देंहटाएंसमझ रही हूँ....गहरे उतर रही हूँ....और डूबती जा रही हूँ.........
सादर
अनु
एक अकथनीय सूक्ष्मता को प्रगाढ़ शब्द देती अति प्रभावी रचना..
जवाब देंहटाएंवाह... वाकई घड़ा का खाली होना जरुरी है प्यास बुझाने के लिए.... अस्त में उदय का भाव... बेहतरीन...
जवाब देंहटाएंपूरा ही जीवन ...गति पर निर्धारित है ...
जवाब देंहटाएंएक और खूबसूरत रचना
सच है गति पर ही हमारा आज कल और खोना पाना छुपा है..गहन रचना..आभार
जवाब देंहटाएंगहन और उत्तम रचना...हमेशा की तरह
जवाब देंहटाएंजीवन क्रम है चलते जाना है.बहुत सुन्दर.
जवाब देंहटाएंघड़े के पानी की तरह !
जवाब देंहटाएंघड़ा यदि भरा रह जाए
तो कोई प्यासा रह गया - तय है
कालांतर में जल पीने योग्य नहीं रहा
तो सहज भाव से रिक्त होना है
ताकि फिर भर सकें !
सटीक उदाहरण .... कितनी गहन बात काही है इन पंक्तियों में.... खुद को पाना भी कहाँ सहज है ?
और पूर्णता के लिए निरंतरता तब तक ज़रूरी है
जवाब देंहटाएंजब तक साँसें हैं !
न प्रश्न, न उत्तर
स्व की क्रिया प्रतिक्रिया
आतंरिक होती है,,,,,
उत्कृष्ट प्रभावी रचना..,,,,,
बहुत गहन विचार, स्वयं को पहचानने का खोज आध्यात्मिकता का प्रथम सोपान है.
जवाब देंहटाएंबहुत गहन विचार, स्वयं को पहचानने का खोज आध्यात्मिकता का प्रथम सोपान है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर शब्दों में गहन पोस्ट....शानदार ।
जवाब देंहटाएंसूर्य के अस्त होने में ही उदय भाव है
जवाब देंहटाएंऔर प्रकृति की नवीन गतिशीलता ..
क्योंकि ठहराव तो मौत है
सूर्य के अस्त होने में ही उदय भाव है
जवाब देंहटाएंऔर प्रकृति की नवीन गतिशीलता .......yahi sty hai
आपकी इस उत्कृष्ट प्रस्तुति की चर्चा कल मंगलवार ९/१०/१२ को चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा चर्चामंच पर की जायेगी
जवाब देंहटाएंनवीनता के लिए पुरातन को त्यागना जरूरी है...नई काया के लिए जीर्ण का त्याग...खोना पाना गति ...सब तभी है जब तक जीवन है|
जवाब देंहटाएंहम भी थोड़ा-थोड़ा दार्शनिकता की ओर बढ़ रहे हैः)
घड़े के पानी की तरह !
जवाब देंहटाएंघड़ा यदि भरा रह जाए
तो कोई प्यासा रह गया - तय है
कालांतर में जल पीने योग्य नहीं रहा
तो सहज भाव से रिक्त होना है
ताकि फिर भर सकें !
गहन भाव
उदयास्त, अस्तोदय, जीवन के सत्य।
जवाब देंहटाएंपाना है
जवाब देंहटाएंखोना है
घड़े के पानी की तरह !
घड़ा यदि भरा रह जाए
तो कोई प्यासा रह गया - तय है
कितनी गहरी सोच
आपकी लेखनी को सादर नमन
rashmi ji nmskar , aapki rchna bahut bhavprn hoti hai ,
जवाब देंहटाएंसूर्य के अस्त होने में ही उदय भाव है
जवाब देंहटाएंऔर प्रकृति की नवीन गतिशीलता ......
यही ज़िंदगी है.परिवर्तन ही सच है.
गहन भाव लिए अति उत्तम रचना ..
जवाब देंहटाएं:-)
बहुत अच्छी रचना। आभार।
जवाब देंहटाएंयही जद्दोज़हद जीवन को चलाती है ....
जवाब देंहटाएंगहन आत्म-मंथन!
जवाब देंहटाएंअनुपम श्रेष्ठ रचना..
रिक्त होना भरना जीवन झरना !
जवाब देंहटाएंघड़े के पानी की तरह !
जवाब देंहटाएंघड़ा यदि भरा रह जाए
तो कोई प्यासा रह गया - तय है
कालांतर में जल पीने योग्य नहीं रहा
तो सहज भाव से रिक्त होना है
ताकि फिर भर सकें !
................
सूर्य के अस्त होने में ही उदय भाव है
और प्रकृति की नवीन गतिशीलता .......
बहुत गहन अभिव्यक्ति दी ....!!
घड़ा यदि भरा रह जाए
जवाब देंहटाएंतो कोई प्यासा रह गया - तय है
कालांतर में जल पीने योग्य नहीं रहा
तो सहज भाव से रिक्त होना है
ताकि फिर भर सकें !
गहरे पानी पैठ के लिखा है रश्मि जी ।
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