03 फ़रवरी, 2017

बहुत ही मासूम बचपन था !




लू से बेखबर
सबकी नज़रों से बचकर
कच्चे आम
और लीचियों की खटास में
जो मिठास थी
उस स्वाद को भला कौन भूलता है !

नाक से खून बहे
लू लग जाए
बड़ों की आँखें गुस्से से लाल हो जाएँ
उस गर्म हवा की शीतलता गजब की थी !

अमरुद की फुनगी से
कच्चे अमरुद तोडना
गिरकर घुटने फोड़ लेना
मलहम लगाकर
छिले घुटने को फूँककर
फिर फुनगी तक जाना
बचपन का सुनहरा लक्ष्य था !

कितनी बार फिसलकर गिरे
दूसरों पर हँसे
खुद पर रोये
यारा
बहुत ही मासूम बचपन था !

बालपोथी
चन्दामामा
पराग
नन्दन  ...
पंचतंत्र की कहानियों का
अद्भुत आकर्षण था
बेसुरा ही सही
देशभक्ति के गाने गाकर
एक सपना आँखों में पलता था  ...

बड़े होने की ख्वाहिश थी इसलिए
कि किताबों से छुट्टी मिलेगी
परीक्षा नहीं देनी होगी
हर वक़्त सुनना नहीं होगा
-"पढ़ने बैठ जाओ"
...
कोई कहे ना कहे
 बहुत पढ़ना होता है
परीक्षाएँ तो कभी ख़त्म ही नहीं होतीं
कागज़ की नाव बनाने का मन
आज भी करता है
लाचार होकर भी
फुनगी याद आता है
वो अमरुद
वो कच्चे आम
लिच्चियाँ
गर्म हवा
और उसमें भागते कदम
खिलखिलाते हम

लू से बेखबर
सबकी नज़रों से बचकर
कच्चे आम
और लीचियों की खटास में
जो मिठास थी
उस स्वाद को भला कौन भूलता है !

8 टिप्‍पणियां:

  1. हमारे उन सुन्दर अनुभवों से हमारे बच्चे वंचित ही रहे .

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  2. बहुत सुन्दर । एक था बचपन एक था बचपन ....

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  3. बचपन के दिन भी क्या दिन थे..

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  4. बचपन के लम्हे हिलोडे लेने लगे ।।।।बहुत सुंदर ।।।

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  5. बहुत सुन्दर. बचपन की बात ही कुछ और है.

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  6. आपकी रचना बहुत सुन्दर है। हम चाहते हैं की आपकी इस पोस्ट को ओर भी लोग पढे । इसलिए आपकी पोस्ट को "पाँच लिंको का आनंद पर लिंक कर रहे है आप भी कल रविवार 5 फरवरी 2017 को ब्लाग पर जरूर पधारे ।

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  7. बचपन की कई यादें ताज़ी हो चली ..
    बहुत सुन्दर

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  8. बहुत ही सुन्दर बचपन का प्रस्तुतीकरण।

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