रूठते हुए
वचन माँगते हुए
कैकेई ने सोचा ही नहीं
कि सपनों की तदबीर का रुख बदल जायेगा
दशरथ की मृत्यु होगी
भरत महल छोड़
सरयू किनारे चले जायेंगे
माँ से बात करना बंद कर देंगे ... !
राजमाता होने के ख्वाब
अश्रु में धुल जायेंगे !!
मंथरा की आड़ में छुपी होनी को
बड़े बड़े ऋषि मुनि नहीं समझ पाए
तीर्थों के जल
माँ कौशल्या का विष्णु जाप
राम की विदाई बने !!!
एक हठ के आगे
राम हुए वनवासी
सीता हुई अनुगामिनी
लक्षमण उनकी छाया बने ...
उर्मिला के पाजेब मूक हुए
मांडवी की आँखें सजल हुईं
श्रुतकीर्ति स्तब्ध हुई ...
कौशल्या पत्थर हुई
सुमित्रा निष्प्राण
कैकेई निरुपाय सी
कर न सकी विलाप
इस कारण
और उस कारण
रामायण है इतनी
होनी के आगे
क्या धरती क्या आकाश
क्या जल है क्या अग्नि
हवा भी रुख है बदलती
पाँच तत्वों पर भारी
होनी की चाह के आगे
किसी की न चलती ...