दुर्भाग्य प्रबल था
जब काली अंधेरी रात में
कृष्ण को लेकर
वसुदेव गोकुल चले थे
.... मूसलाधार बारिश का कहर
जिसके आगे
अनोखा सौभाग्य खड़ा था
माँ यशोदा के आंगन में
यमुना किनारे
गोपियों के जीवन में
राधा की आंखों में ..
दुर्भाग्य प्रबल था
जब 14 वर्ष बिताकर
गोकुल को छोड़कर
कृष्ण मथुरा चले
पर अद्भुत सौभाग्य खड़ा था
माँ देवकी के आगे
सात बच्चों को अपने आगे गंवाकर
आठवें को दूर भेजकर
उन्होंने जो पीड़ा सही थी
वह युवा खुशी बन उनकी आंखों से बह रहा था
मथुरा का उद्धार निकट था
कंस का विनाश
....
दुर्भाग्य प्रबल था
जब दुर्योधन ने भरी सभा में सबके आगे
कृष्ण का अपमान किया
बाँध लेने की धृष्टता दिखाई
और बुज़ुर्गों से सुसज्जित सभा चुप रही
मन ही मन क्षुब्ध होती रही
लेकिन सौभाग्य
न्याय का सुदर्शन चक्र लिए
कुरुक्षेत्र में खड़ा था
प्रत्येक छल,झूठ का उचित जवाब लिए
....
दुर्भाग्य प्रबल था जब राम वनवास हुआ
लेकिन सौभाग्य खड़ा था
केवट के आगे
अहिल्या के आगे
शबरी के आगे
...
दुर्भाग्य प्रबल था सीता हरण में
सौभाग्य खड़ा था
हनुमान के आगे
सुग्रीव के आगे ...
अर्थात
जब भी दुर्भाग्य प्रबल हुआ है
प्रभु की लीला सौभाग्य बनकर आगे रही है