16 अप्रैल, 2019

हमें भगवान के नाम पर बेचारा मत बनाओ !



भगवान ने कहा,
मुझको कहाँ ढूंढे - मैं तो तेरे पास हूँ ।
बन गया एक पूजा घर,
मंदिर तो होते ही हैं जगह जगह ।
अपनी इच्छा के लिए
लोगों ने मन्नत मांगी
किया रुद्राभिषेक,
किलो किलो दूध, गुड़,शहद इत्यादि से
नहलाते गए रुद्र को,
दूध डालने से पहले
बेलपत्र, धतूरा, दही, फूल से उनको ढंक दिया
फिर दूध ...
दूध सारा उड़ेलकर फिर पानी लिया,
अब दूध-दही से सने हुए तो नहीं रहेंगे न !
फिर अच्छे से स्नान,
फिर रोली, चंदन
फूल माला, बेलपत्र, ....
कोई एक व्यक्ति एक दिन करे,
ऐसा होता नहीं,
भगवान भयभीत,
ये फिर मेरी गति करेगा !!!

गणपति से तो हर पूजा ही आरम्भ होती है,
धूप हो या छाया,
वर्षा हो या आँधी,
गणपति को सर्दी लगी हो
या लहर,
उनको दूब से ढंककर,
भांति भांति के मोदक चढ़ाकर
घण्टों आरती गाकर,
हम गणपति को खुश करने की बजाए,
रुला ही देते हैं,
मूषक मुस्काता है,
आखिरी आरती के बाद,
पट बन्द होते
गणपति माँ पार्वती की गोद में
बिलख बिलख के रोते हैं,
"क्या माँ,
ये कोई तरीका है पूजा करने का,
भोग लगाने का !
कितना चिल्लाते हैं सब
"गणपति बप्पा मौर्या,
अगले बरस तू जल्दी आ"...
सुबह पट खुलते सारे भगवान
सिहर उठते हैं ।

माँ दुर्गा कहती हैं,
ये नौ दिन की पूजा मैं समझती हूँ,
लेकिन यह भ्रम कहाँ से शुरू हुआ
कि मैं सातवें दिन आँख खोलती हूँ,
वाहन बदलती हूँ,
या बलि चाहती हूँ ?
मैं पहले दिन से नहीं,
पूरे वर्ष अपने मायके पर दृष्टि रखती हूँ,
किसकी मंशा सही है,
किसकी ग़लत
- सब देखती और समझती हूँ ।
मुझे क्या बलि चढ़ाकर खुश करोगे ?
समय आने पर
मैं हर उस व्यक्ति को मौत के घाट उतारती हूँ,
जिसके भीतर महिषासुर ,शुम्भ-निशुम्भ है,
मेरे नाम पर कन्या पूजन का क्या अर्थ,
पूजना ही है
तो हर दिन उसे स्नेह और सम्मान दो ।
मेरे श्रृंगार से पूर्व,
अपने घर की स्त्रियों के श्रृंगार पर विचारो ।

और कृष्ण !
हताश कृष्ण ने माखन और बांसुरी से
मुँह फेर लिया है ।
इतने सवाल,
इतनी गलत सोच,
और मेरे जन्म पर जश्न !!!
मेरा नाम लो, यही काफ़ी है,
लेकिन उस दिन मुझे पालने में मत झुलाओ,
भूलो मत,
उस दिन मैं अपनी माँ देवकी से
दूर हो गया था,
वह अंधेरी रात एक बहुत बड़ी परीक्षा थी,
पिता वासुदेव के हृदय की धड़कनें,
यमुना की लहरों से अधिक तेज
और तीव्र थीं !
माँ देवकी कारागृह में
आँसुओं में डूबी
रक्षा मन्त्र का जाप कर रही थीं,
माता यशोदा के पास पहुँचने के लिए,
गोकुल को उल्लास से भरने के लिए,
एक देवी ने जन्म लिया
और विलीन हो गईं ।
प्रत्येक भयानक सत्य से अवगत मैं,
बाल लीलाएं दिखाकर,
मनुष्य रूप में खुद को हिम्मत दे रहा था ।
और तुम सब,
अलग अलग नाम से,
मुझसे सवाल करते हो,
धिक्कारते हो
और कृष्ण जन्म पर बधईया गाते हो !
क्या है यह सब ?
मैंने राधा को क्यों छोड़ा,
रुक्मिणी से क्यों ब्याह किया,
मेरी  सहस्रों पटरानियाँ थीं...
तुम मिले हो क्या सबसे ?
और इन सारे प्रश्नों में
यह प्रश्न क्यों नहीं उठाते,
कि कारागृह में ही मुझे माँ देवकी
और पिता वासुदेव ने क्यों नहीं रखा ?
मेरी खातिर तो भविष्यवाणी थी
कि मैं कंस की मृत्यु का कारण बनूँगा,
फिर कैसा भय !
तब तो अधर्म के आगे
मैं अवतार मान लिया गया ....
पूजा करो,
मेरे नाम पर बकवास मत करो,
आये दिन तथाकथित प्रेम करके
खुद को कृष्ण मत मान बैठो ।
यदि इतना ही शौक है मुझसा होने का,
तो उस अधर्म का नाश करो,
जो तुमने ही फैला रखा है . .
है आस्था गर भगवान में,
तो पूजा के नाम पर
ना ही दिखावा करो,
ना ढकोसला !
हम सारे भगवान प्रेम का भोग
स्वयं ले लेते हैं ,
साई कहो या जय बजरंगबली
सब अपने आप में सम्पूर्ण हैं,
भोग-विलास से दूर हैं,
हमें इतना बेचारा मत समझो
कि हमको ही दान करने लगो,
महल बनाओ,
धक्के देकर हमारे दर्शन करो,
टोना-टोटका में इस्तेमाल करो ...
अरे मन से पुकारो,
फिर देखो,
हम तुम्हारे पास हैं,
साथ हैं ।।।

4 टिप्‍पणियां:

  1. अभी तो भगवान ही भगवान है हर तरफ भगवान है
    मन्दिर के अन्दर तक जाने तैतीस कोटि वाले पर कहाँ किसी का ध्यान है?

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  2. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 16/04/2019 की बुलेटिन, " सभी ठग हैं - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  3. बहुत सुन्दर ! देवी-देवताओं की व्यथा को कौन समझता है? भक्ति के पाखण्ड में उन के मन की थाह लेने का किसे अवकाश है? लगता है इसीलिए भगवान ऐसे भक्तों से दूर भागते हैं और किसी शबरी के झूठे बेर अथवा विदुर-पत्नी का प्रेमपूर्वक परोसा गया रूखा-सूखा भोजन खाने के लिए आतुर रहते हैं.

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  4. This is Very very nice article. Everyone should read. Thanks for sharing and I found it very helpful. Don't miss WORLD'S BEST CARGAMES

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