( १)
हारकर चलना,
मज़बूरी नहीं,
ताकत होती है,
कोई माने या न माने
दुनिया उसी की होती है............
(२)
जब थी थकान,
चाह थी एक प्याले की,
भावनाओं का आदान-प्रदान था,
आंखों में कशिश थी,
स्पर्श में गर्माहट थी,
पलक झपके
भावनाओं के शब्दकोष खाली हुए,
व्यवहारिकता की बातें चलीं-
सारे संबंध ठंडे हुए.......
(३)
क्षणांश को ज़िंदगी मिली,
क्षणांश में जाना
भ्रम था,
क्षणांश में जाना यायावर था,
क्षणांश में समझा
वृक्ष बनाया
क्षणांश में
वृक्ष फर्निचर में बदला
क्षणांश में-
यायावर जीत गया.........
(४)
कहानी,कविता की सार्थकता वहीं है,
जहाँ दिल है,
पैसे की मेज़ पर
यह कूड़े का ढेर है,
आधुनिकता के आडम्बर में,
सजाते हैं किताबें करीने से,
पर एक शब्द का मर्म समझना
-मुश्किल है!
(५)
नहीं जानते जो तारीखों को,
तोतली भाषा को,
पहली मुस्कान,निर्झर हँसी को,
वे क्या जानेंगे प्यार को?!
उन्हें तो प्यारी है,
सिक्कों की खनक,
जहाँ नन्हें जूते नहीं होते
होती हैं अपनी कमजोरियाँ,
प्रयोजन के पीछे
तथाकथित मजबूरियाँ...........
हारकर चलना,
मज़बूरी नहीं,
ताकत होती है,
कोई माने या न माने
दुनिया उसी की होती है............
(२)
जब थी थकान,
चाह थी एक प्याले की,
भावनाओं का आदान-प्रदान था,
आंखों में कशिश थी,
स्पर्श में गर्माहट थी,
पलक झपके
भावनाओं के शब्दकोष खाली हुए,
व्यवहारिकता की बातें चलीं-
सारे संबंध ठंडे हुए.......
(३)
क्षणांश को ज़िंदगी मिली,
क्षणांश में जाना
भ्रम था,
क्षणांश में जाना यायावर था,
क्षणांश में समझा
वृक्ष बनाया
क्षणांश में
वृक्ष फर्निचर में बदला
क्षणांश में-
यायावर जीत गया.........
(४)
कहानी,कविता की सार्थकता वहीं है,
जहाँ दिल है,
पैसे की मेज़ पर
यह कूड़े का ढेर है,
आधुनिकता के आडम्बर में,
सजाते हैं किताबें करीने से,
पर एक शब्द का मर्म समझना
-मुश्किल है!
(५)
नहीं जानते जो तारीखों को,
तोतली भाषा को,
पहली मुस्कान,निर्झर हँसी को,
वे क्या जानेंगे प्यार को?!
उन्हें तो प्यारी है,
सिक्कों की खनक,
जहाँ नन्हें जूते नहीं होते
होती हैं अपनी कमजोरियाँ,
प्रयोजन के पीछे
तथाकथित मजबूरियाँ...........
saree kavitayen bahut vishal hai sach kahtee hain tumahre sach ko pranam
जवाब देंहटाएंAnil
नहीं जानते जो तारीखों को,
जवाब देंहटाएंतोतली भाषा को,
पहली मुस्कान,निर्झर हँसी को,
वे क्या जानेंगे प्यार को?!
उन्हें तो प्यारी है,
सिक्कों की खनक,
जहाँ नन्हें जूते नहीं होते
होती हैं अपनी कमजोरियाँ,
प्रयोजन के पीछे
तथाकथित मजबूरियाँ...........
ye bahut bahut achha laga,
har pankti mein alag alag bhavna ke roop bhi dekhe,gehre kuch chanchal bhi,kuch dard bhi,bahut badhai.
har rachna kuch alag kahti hai..
जवाब देंहटाएंjivan ko dekhne ki aisee darshti sabke paas nahi hoti..
badhai aapko
रश्मि जी पांचो कवितायें एक से बढ़कर एक है॰॰॰॰॰ पहली रचना तो मन का विश्वास बढ़ाती है॰॰॰॰॰॰ शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंwaah....u have written such beautiful poems....bahut achcha laga padhkar. all the best.
जवाब देंहटाएंरश्मि प्रभा जी,
जवाब देंहटाएंप्रत्येक क्षणिका प्रभावित करती है, बेहतरीन रचनायें।
*** राजीव रंजन प्रसाद
नहीं जानते जो तारीखों को,
जवाब देंहटाएंतोतली भाषा को,
पहली मुस्कान,निर्झर हँसी को,
वे क्या जानेंगे प्यार को?!
उन्हें तो प्यारी है,
सिक्कों की खनक,
जहाँ नन्हें जूते नहीं होते
होती हैं अपनी कमजोरियाँ,
प्रयोजन के पीछे
तथाकथित मजबूरियाँ...........
क्या बात है. बहुत खूब. सारी रचनाएं बहुत ही खूबसूरत हैं.
आपकी पहली कविता जहाँ आशावादी है ,आखिरी सत्य के निकट है......शब्द कई बार अक्स बन जाते है .....
जवाब देंहटाएं( १)
जवाब देंहटाएं{हारकर चलना,
मज़बूरी नहीं,
ताकत होती है,
कोई माने या न माने
दुनिया उसी की होती है}
*-क्या लिखूं, इसकी बाबत: मुकम्मल है और बहुत ही उम्दा-ये वो लौ है जो आमजन की प्रेरणा बन सकती. बहुत बहुत शुक्रिया व वधाई मेरी ओर से.
---
{(३)
वृक्ष फर्निचर में बदला
क्षणांश में-
यायावर जीत गया}*- अति उत्तम.
---
(४)
कहानी,कविता की सार्थकता वहीं है,
जहाँ दिल है,
पैसे की मेज़ पर
यह कूड़े का ढेर है,
आधुनिकता के आडम्बर में,
सजाते हैं किताबें करीने से,
पर एक शब्द का मर्म समझना
मुश्किल है!
*-बहुत खूब लिखा है 'रश्मि जी आपने-ये इक़ येसा यथार्थ है-जिसका गर भ्रम भी दिल में पल जाए तो न जाने-कौन-कौन सी कयामतें गुज़र जाएं.
---
सादर;
अमित के. सागर
सभी बहुत बहुत अच्छी लगी बिल्कुल दिल की बात कहती हुई सी ,..कविता वही मन भाती है जो दिल को छु जाए यह विशेष रूप से पसन्द आई ..
जवाब देंहटाएंकहानी,कविता की सार्थकता वहीं है,
जहाँ दिल है,
पैसे की मेज़ पर
यह कूड़े का ढेर है,
आधुनिकता के आडम्बर में,
सजाते हैं किताबें करीने से,
पर एक शब्द का मर्म समझना
-मुश्किल है!
kya kavita hai.....ya najariya hai....jabardast.....
जवाब देंहटाएं'व्यवहारिकता की बातें चलीं-
जवाब देंहटाएंसारे संबंध ठंडे हुए.......'
आज के बिखरते -उलझते रिश्तों को सही परिपेक्ष में शब्दान्कित किया है ,आपने..
Harek rachna apne me alag hai,aur badai ke layak. bahut khub..
जवाब देंहटाएंपलक झपके
जवाब देंहटाएंभावनाओं के शब्दकोष खाली हुए,
व्यवहारिकता की बातें चलीं-
सारे संबंध ठंडे हुए.......
बेहद भावपूर्ण अभिव्यक्ति..
सादर.
नहीं जानते जो तारीखों को,
जवाब देंहटाएंतोतली भाषा को,
पहली मुस्कान,निर्झर हँसी को,
वे क्या जानेंगे प्यार को?!
सच कहा है ..बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
यथार्थ के दर्पण में हर इंसान का बिलकुल सही चेहरा दिखातीं बहुत ही सशक्त रचनाएं ! अपना चेहरा पहचानने में बहुत मदद मिलती है ! आभार आपका !
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली रचनाएं..
जवाब देंहटाएंबहुत ही गंभीरता और गहनता लिए हुए है ये सभी रचनाये ,
जवाब देंहटाएंबेहद सुन्दर , प्रभावी और बेहतरीन रचना है ..
बहुत ही गंभीरता और गहनता लिए हुए है ये सभी रचनाये ,
जवाब देंहटाएंबेहद सुन्दर , प्रभावी और बेहतरीन रचना है ..
रश्मि जी , आपकी प्रत्येक अभिव्यक्ति स्वयम में इतनी सम्पूर्णता लिए हुए है ..... जीवन का वास्तविक अर्थ समझाती हुई सी प्रतीत होती है ... इन सुन्दर रचनाओं के लिए बधाई !
जवाब देंहटाएंओढ़ी हुई मजबूरियों का सही रूप प्रस्तुत किया है -आज की अंधी दौड़ का आँखों देखा हाल जैसा ! -
जवाब देंहटाएंजब थी थकान,
जवाब देंहटाएंचाह थी एक प्याले की,
भावनाओं का आदान-प्रदान था,
आंखों में कशिश थी,
स्पर्श में गर्माहट थी,
पलक झपके
भावनाओं के शब्दकोष खाली हुए,
व्यवहारिकता की बातें चलीं-
सारे संबंध ठंडे हुए.......
..sach samay ke sath kitna kuch badal jaata hai, yah bahut der baad akele mein samjh aata hai..
bahut hi badiya yatharthparak rachnyen..aabhar!