'स्व' नज़रिया का मामला पेचीदा है,
प्रस्तुतीकरण दिखाई देती है,
जिनके पास कई हाथ होते हैं,
उनकी बात जुदा होती है....
"मत पूछो,मैं क्या?
मेरे बच्चे भी बर्दाश्त नहीं करते
कि,उनकी चीजें इधर-से-उधर हों!
धूल का एक कतरा,
ओह!my god
मेरा बच्चा उठते ही(नो मैटर 11 am )
अपने सामने सबकुछ रखवाता है,
यहाँ तक कि अपने खिलौनों के भी,
एक-एक करके धूल झड़वाता है......"
अब जो विश्वास करते हैं
"ये हाथ ही अपनी दौलत है,
ये हाथ ही अपनी ताकत है ..."
प्रसन्न विस्मय के साथ
सुनते हैं उनकी बात,
साथ-साथ देखते हैं,
अपने बच्चों को -
इस भाव के साथ,
"देखा इनके बच्चों को...."
बच्चे आँखें झुका लेते हैं,
क्योंकि वे अपना काम ख़ुद करते हैं
और भरी महफ़िल में अपने अभिभावकों को
आत्मप्रशस्ति में शामिल नहीं पाते हैं!!!!!!!!
शोर से अधिक एकांत का असर होता है, शोर में एकांत नहीं सुनाई देता -पर एकांत मे काल,शोर,रिश्ते,प्रेम, दुश्मनी,मित्रता, लोभ,क्रोध, बेईमानी,चालाकी … सबके अस्तित्व मुखर हो सत्य कहते हैं ! शोर में मन जिन तत्वों को अस्वीकार करता है - एकांत में स्वीकार करना ही होता है
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hamari roj ki zindgi ke bahut kareeb hai yeh kavita....dekhte hum sab hai per isko samjhna sab ke vash ki baat nahi...lekin aapne ye bakhubi kiya hai........aapko badhai ho di
जवाब देंहटाएंhar wishay alag har prastutee karan juda sahbd jadoo se bhar jate hain bhav jee uthte hain baat asar le aatee hai bahut khoob
जवाब देंहटाएंAnil
ekdam waastvikta ka chitran di....bahut khubsurat
जवाब देंहटाएंआदरणीय रश्मि जी आपके द्वारा रचित ''नजरिया'' बहुत ही भावनापूर्ण कविता है .......मन को ठंडक तो देती ही है साथ ही चिंतन मनन भी करवाती है ... बहुत शानदार....... शुभकामनाएं...
जवाब देंहटाएंbachhe hai prabha ji......aap maa bani rahiye ....
जवाब देंहटाएं"नज़रिया....." के माध्यम से आपने एक कड़वी सच्चाई को दर्शाया है की दूसरो के जरिये जब हम कोई कार्य होते हुए देखना चाहते है तो उस सोच और यदि वही कार्य के स्व क्रियान्वन की बात आती है तो आप जो सोचते है, उसमे अक्सर जमीन-आसमान का अंतर होता है | जहा तक बच्चों के लापरबाही पूर्ण व्यबहार का प्रश्न है तो ये समस्या आज लगभग हर घर की हो गयी है और इस तरह की समस्याओ के बहुत हद तक जिम्मेवार हम माता-पिता ही होते है | हम बच्चों की जरूरतों का ज्यादा से ज्यादा ख्याल रखने के चक्कर में, उनमे आत्मनिर्भरता के संस्कार देने में कही न कही चुक जाते है |
जवाब देंहटाएंअच्छा हुआ जो एक टिप्पणी में आपको देखकर यहा चला आया.. बहुत ही सुंदर रचना.. कई गिरह खोलती सी.. बधाई स्वीकार कर
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