10 मई, 2011

निष्पक्ष हिसाब



कीचड़ के मध्य कमल
न कीचड़ का सौभाग्य न कमल का
कमल निर्विकार अपने सौन्दर्य के साथ
एक मिसाल बनता है
कीचड़ अपने होने का दंभ भरता है
कमल के अस्तित्व को
खुद से जोड़ता है
और कमल को एहसानफरामोश कहता है !
नाली के सारे कीड़े हाँ में हाँ मिलाते हैं
क्योंकि उनकी भूख तो कीचड़ से मिटती है
कमल का मान
कि लक्ष्मी आसीन होती हैं
देवी के चरणों में समर्पित कमल
पूजा की पूर्णता बनता है !
सीख कमल की दी जाती है
कीचड़ की नहीं
प्रकृति जीवन के परिलक्षित सत्य को
अपनी गोद में लिए चलती है
सहनशीलता के मायने
हर क्रंदन पर सिखाती है !
क्या होगा कीचड़ उछाल कर
आईने में सत्य से साक्षात्कार करो
अपनी मानसिक फटेहाली पर
झूठ का पैबंद न लगाओ
स्वर्ग उसी को मिलता है
जो उसका उत्तराधिकारी होता है
ईश्वर के तराजू का पलड़ा
कभी नहीं डगमगाता है
दूध का दूध
और पानी का पानी
वह निष्पक्ष करता है !

41 टिप्‍पणियां:

  1. कमल का मान
    कि लक्ष्मी आसीन होती हैं
    देवी के चरणों में समर्पित कमल
    पूजा की पूर्णता बनता है !
    सीख कमल की दी जाती है
    कीचड़ की नहीं ....

    कमल के अस्तित्व को खुद से जोड़ने वाले भूल जाते कैसे हैं की कमल कीचड के बीच भी पवित्र ही रहता है ..
    दुआ है की ईश्वर का न्याय हमेशा निष्पक्ष हो !

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  2. स्वर्ग उसी को मिलता है
    जो उसका उत्तराधिकारी होता है
    ईश्वर के तराजू का पलड़ा
    कभी नहीं डगमगाता है
    दूध का दूध
    और पानी का पानी
    वह निष्पक्ष करता है !

    अक्षरक्ष: सत्य कहा है।

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  3. अपनी मानसिक फटेहाली पर
    झूठ का पैबंद न लगाओ
    स्वर्ग उसी को मिलता है
    जो उसका उत्तराधिकारी होता है
    ईश्वर के तराजू का पलड़ा
    कभी नहीं डगमगाता है ...।


    बिल्‍कुल सच कहा है ...।

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  4. आदरणीय रशिम प्रभा माँ
    नमस्कार !
    ईश्वर के तराजू का पलड़ा
    कभी नहीं डगमगाता है
    दूध का दूध
    और पानी का पानी
    ....बिलकुल सही लिख है आपने

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  5. "ईश्वर के तराजू का पलड़ा
    कभी नहीं डगमगाता है
    दूध का दूध
    और पानी का पानी
    वह निष्पक्ष करता है ! "
    पर समस्या यह है कि भारतीय न्यायालयों की तरह भी ईश्वर भी बहुत देर लगता है.जल्दी न्याय हो तो अच्छा .बहुत अच्छी बात कही है आपने.

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  6. ईश्वर के न्याय में बढा हम ही डालते हैं , वह इन्गित करता जाता है और हम बेवजह घबराते हैं

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  7. कीचड़ अपने होने का दंभ भरता है
    कमल के अस्तित्व को
    खुद से जोड़ता है
    और कमल को एहसानफरामोश कहता है !
    नाली के सारे कीड़े हाँ में हाँ मिलाते हैं
    क्योंकि उनकी भूख तो कीचड़ से मिटती है

    हम्म, जीवन का कटु सत्य !

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  8. आईने में सत्य से साक्षात्कार करो
    अपनी मानसिक फटेहाली पर
    झूठ का पैबंद न लगाओ
    स्वर्ग उसी को मिलता है
    जो उसका उत्तराधिकारी होता है
    ईश्वर के तराजू का पलड़ा
    कभी नहीं डगमगाता है
    दूध का दूध
    और पानी का पानी
    वह निष्पक्ष करता है !

    बहुत अच्छी और सच्ची बात कही है आपने, ईश्वर के घर देर है पर अंधेर नहीं वह न्याय अवश्य करता है.. कमल कमल होता है और कीचड़ कीचड़...

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  9. अति सुन्दर,,,

    आदरणीया रश्मिप्रभा जी ,

    कीचड़ और कमल के माध्यम से आपने जिस जीवन दर्शन को चित्रायित किया है ,वास्तव में प्रशंसनीय है |

    कविता की सार्थकता स्वयंसिद्ध हो रही है | भाव और शिल्प दोनों से परिपूर्ण है रचना |

    प्रणाम है लेखनी को ...

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  10. कीचड और कमाल के उदहारण से बहुत ही सच्ची बात कही है आपने.कुछ भी हो सत्य और अच्छाई की ही जीत होती है आखिर में.
    बहुत सुन्दर.

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  11. कीचड़ अपने होने का दंभ भरता है
    कमल के अस्तित्व को
    खुद से जोड़ता है
    और कमल को एहसानफरामोश कहता है !
    नाली के सारे कीड़े हाँ में हाँ मिलाते हैं
    क्योंकि उनकी भूख तो कीचड़ से मिटती है
    रश्मिप्रभा जी .........आपकी ये पंक्तियाँ आज के सन्दर्भ में बिलकुल सटीक बैठती हैं .
    ...आजकल जिसे देखो वो अपने से अच्छे से जुडने को आतुर रहता है ........जबकि चाहें दोनों में सम्बन्ध कुछ भी न हो ........

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  12. MAM SACH PAR CHALNE WALA MANUSAY KICHAD SAMAN BURAIYON KI PARWAH NAHI KARTA . . . . . . . . . . SUNDAR RACHNA. . . . . . . . . . JAI HIND JAI BHARAT

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  13. दार्शनिक प्रस्तुति, बहुत सुन्दर।

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  14. wah ... bahut hi achchhi rachna ...

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  15. कमल और कीचड़ का साथ हमें बहुत कुछ सिखाता है । प्रेरणादायक रचना ।

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  16. ईश्वर के न्याय की बात से विश्वास उठ रहा है क्योंकि कलियुग में पापी ही पुण्यात्मा दिखलाई देता है क्योंकि पाप की कमाई ही दान कर सकते हैं नहीं तो मेहनत कि कमाई करने वाले तो अपना ही पेट भर पाते हैं.

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  17. बहुत ही सटीक तुलना की आपने...

    भावपूर्ण मनोहारी बहुत ही सुन्दर रचना...

    आभार.

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  18. आपकी ईश्वर में आस्था अभी तक डगमगाई नहीं...भारत में ही ईश्वर की सबसे ज्यादा जरुरत क्यों है...क्योंकि यहाँ ना न्याय है ना व्यवस्था...ऐसे में आम आदमी के पास ईश्वर का ही संबल है...कीचड़ ने कमल को निगल लिया है...अब सब भगवान भरोसे ही तो है...आपकी ईश्वर में आस्था अभी तक डगमगाई नहीं...भारत में ही ईश्वर की सबसे ज्यादा जरुरत क्यों है...क्योंकि यहाँ ना न्याय है ना व्यवस्था...ऐसे में आम आदमी के पास ईश्वर का ही संबल है...कीचड़ ने कमल को निगल लिया है...अब सब भगवान भरोसे ही तो है...पर जिद है...तो...इक ना इक शम्मा अँधेरे में जलाये रखिये...सुबह होने को है माहौल बनाये रखिये...

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  19. bhut hi nispaksh apne bhi likha hai... shabd nhi hai mere pas kuch kahne ke liye...

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  20. Prerna se paripurna rachna,sunder ehsaas hua padh kar....a very creative writing.

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  21. रश्मि जी ,

    कमल और कीचड़ के बिम्ब से आपने सहजता से कह दी है बात ...कीचड़ उछलने वालों के हाथ भी कीचड़ में ही सनते हैं ....
    आईने में सत्य से साक्षात्कार करो
    अपनी मानसिक फटेहाली पर
    झूठ का पैबंद न लगाओ
    स्वर्ग उसी को मिलता है
    जो उसका उत्तराधिकारी होता है

    आईने की तरह साफ़ बात ... बहुत सुन्दर

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  22. kavita men jab darshan kaa samavesh ho jaye to uski mahatta barh jatee hai. vah sarthak ho jatee hai. aapke lekhan men dam hai....shubhkamanaen..

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  23. बहुत सुंदर उदाहरण दिया आप ने, अति सुंदर रचना धन्यवाद

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  24. haan ,ishwar sarvatha nyay karega ,hame apne netr kamal se khud ko man ke darpan me jhaankar dekhte rahna chahiye........

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  25. कीचड़ अपने होने का दंभ भरता है
    कमल के अस्तित्व को
    खुद से जोड़ता है
    kya baat hai......

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  26. ईश्वर के तराजू का पलड़ा
    कभी नहीं डगमगाता है
    दूध का दूध
    और पानी का पानी
    वह निष्पक्ष करता है !

    गहन अभिव्यक्ति..... सुंदर सन्देश लिए

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  27. एक अलग सोच और बिम्ब और प्रतीक के उत्तम प्रयोग के साथ रचना अच्छी लगी।

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  28. आईने में सत्य से साक्षात्कार करो
    अपनी मानसिक फटेहाली पर
    झूठ का पैबंद न लगाओ


    hummm bahut kuch sikhne jaisa hai ye bato me se...

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  29. ईश्वर के तराजू का पलड़ा
    कभी नहीं डगमगाता है
    दूध का दूध
    और पानी का पानी
    वह निष्पक्ष करता है !

    bahut sunder sarthak rachna -kamal aur keechad me bhed batati hui ...!!

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  30. इस कविता की अनेक खूबियों के अतिरिक्त एक खूबी जो मुझे विशेष लगी कि यह कविता कमल की तरह निरंतर खिलते हुए समापन पर एक खिले हुए कमल के मानिंद हो गयी. कीचड़ ना जाने कहाँ रह गया.

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  31. कीचड़ के मध्य कमल
    न कीचड़ का सौभाग्य न कमल का
    कमल निर्विकार अपने सौन्दर्य के साथ
    एक मिसाल बनता है
    कीचड़ अपने होने का दंभ भरता है
    कमल के अस्तित्व को
    खुद से जोड़ता है
    और कमल को एहसानफरामोश कहता है !
    kamal aur keechad per likhi gai aek anoothi rachanaa.itani achchi soch ke liye aapko bahut-bahut badhaai.
    plese visit my blog and leave the comments.thanks

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  32. काबिले तारीफ़ है --कमल की साफ गोई और कीचड़ की मासूमियत

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  33. सच है नाम तो कमल का ही होता है ... प्रवृति की सामने आती है ... दूर तक रहती है ...

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  34. दी,
    पूर्णत: सहमत हूं ...बहुत सरल और सरस अंदाज़ मे...सादर!

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  35. क्या होगा कीचड़ उछाल कर
    आईने में सत्य से साक्षात्कार करो
    अपनी मानसिक फटेहाली पर
    झूठ का पैबंद न लगाओ....

    बहुत सच कहा है...गहन जीवन दर्शन को कमल और कीचड़ के माध्यम से बहुत सुंदरता और सहजता से उकेरा है..बहुत सुन्दर..आभार

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  36. निर्झर की तरह कल-कल करती सुन्दर रचना....

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दौड़ जारी है...

 कोई रेस तो है सामने !!! किसके साथ ? क्यों ? कब तक ? - पता नहीं ! पर सरपट दौड़ की तेज़, तीखी आवाज़ से बहुत घबराहट होती है ! प्रश्न डराता है,...