समझौतों के तपते रेगिस्तान में
सबके चेहरे झुलसे हैं
अपनों के न्याय की तलाश में
साँसें दम्मे सी उखड़ी हैं ......
कहीं जाकर क्या मिलेगा भला ?
झूठी हँसी हंसने से
क्या ज़िन्दगी पुख्ता लगती है
या हो जाती है ?
बाह्य प्रसाधन प्रचार में ही फर्क लाते हैं
सूखे बेबस होठ
जिन्हें पानी की तलाश हो
उनकी भाषा रंगकर नहीं बदली जा सकती
जिन आँखों के आगे
खून की नदी बही हो
उनमें काजल डाल देने से
उजबुजाता भय छुप नहीं जाता !
क्यूँ बेवजह भाषणों से उनके दिल दिमाग को रेत रहे
थोड़ी ज़मीर बची हो
तो ...... पानी लाओ
और उनके हाथ तोड़ डालो
जो बेशर्मी से खून की होली खेलते हैं
कभी अपनों को जलाकर
कभी अपनों को काटकर ....
अखबारी समाचार तो खटाई हो जाते हैं
मधुमक्खी सी भीड़ जहाँ देखो
समझ लो
कोई पीटा जा रहा है
या कोई मर गया है ....
भीड़ न बचाती है
न किसी को खबर देती है
बस मज़े लूटती है
और अफवाह फैलाती है !
इन अफवाहों में किसी की बेटी अपनी लगी है
तड़पते शरीर में कोई अपना दिखा है
पंखे से लटके प्रतिभाशाली लड़के में
मृत व्यवस्था की दुर्गन्ध आई है
.... जिस दिन ऐसी घटनाओं से हमारी तुम्हारी नींद उड़ेगी
रोटी में अवाक लड़की नज़र आएगी
हल्की हवा में किसी युवा की सिसकी सुनाई देगी
उस दिन
परिवर्तन के लिए कोई मशाल नहीं जलाई जाएगी
ना ही कोई भीड़ होगी
बल्कि परिवर्तन की आहट अपने अपने दिलों से निकलेगी
प्यास बुझेगी
आँखों में ज़िन्दगी उतरेगी ....
एक बार
बस एक बार
खुद को रखो वहाँ
दिल से सोचो
दिमाग से काम लो ....
खुद को खुद की ताकत दो
क्योंकि मसीहा हमारे ही भीतर है
वह जब भी आएगा
अपने भीतर से ही आएगा
तो ....... इंतज़ार कैसा ?
क्योंकि मसीहा हमारे ही भीतर है
जवाब देंहटाएंवह जब भी आएगा
अपने भीतर से ही आएगा
शायद सबसे बड़ी सच्चाई यही है.
खुद को खुद की ताकत दो
जवाब देंहटाएंक्योंकि मसीहा हमारे ही भीतर है
वह जब भी आएगा
अपने भीतर से ही आएगा
.....बिलकुल सच...बहुत प्रेरक और सशक्त अभिव्यक्ति...आभार
"एक बार
जवाब देंहटाएंबस एक बार
खुद को रखो वहाँ
दिल से सोचो
दिमाग से काम लो ....
खुद को खुद की ताकत दो
क्योंकि मसीहा हमारे ही भीतर है
वह जब भी आएगा
अपने भीतर से ही आएगा
तो ....... इंतज़ार कैसा ?"
सच मसीहा तो हमारे ही भीतर है हमें जिसे सचेत और सजग रखना होगा।
बहुत सुंदर!
बिलकुल सच ! खुद पर ही यकीन और खुद से ही पहल करनी होगी |
जवाब देंहटाएंपरिवर्तन के लिए कोई मशाल नहीं जलाई जाएगी
जवाब देंहटाएंना ही कोई भीड़ होगी
बल्कि परिवर्तन की आहट अपने अपने दिलों से निकलेगी
बस यही होना चाहिए
बहुत ही सार्थक एवं संवेदनशील कविता
दिल से सोचो
जवाब देंहटाएंदिमाग से काम लो ....
खुद को खुद की ताकत दो
क्योंकि मसीहा हमारे ही भीतर है...सही कहा सुन्दर भाव अनुपम अभिव्यक्ति..
खुद को रखो वहाँ
जवाब देंहटाएंदिल से सोचो
दिमाग से काम लो ....
खुद को खुद की ताकत दो
क्योंकि मसीहा हमारे ही भीतर है
सही बात है...हमें आगे आना होगा|
बहुत सशक्त कविता
जवाब देंहटाएंक्योंकि मसीहा हमारे ही भीतर है
जवाब देंहटाएंवह जब भी आएगा
अपने भीतर से ही आएगा
सच को दर्शाती अभिव्यक्ति .... !!
बहुत सुंदर दी.....
जवाब देंहटाएंभीतर तक कसमसाहट महसूस हो रही है....
सादर.
इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - कहीं छुट्टियाँ ... छुट्टी न कर दें ... ज़रा गौर करें - ब्लॉग बुलेटिन
जवाब देंहटाएंपंखे से लटके प्रतिभाशाली लड़के में
जवाब देंहटाएंमृत व्यवस्था की दुर्गन्ध आई है ...
हाँ, मसीहा हमारे ही भीतर है.. पहचानने भर की देर है.. और सब मिल जाएँ और पहचान लें.. बस! ये मृत व्यवस्था जीवंत हो उठेगी..
सादर
परिवर्तन की आहट जब तक दिल से ना निकले , परिवर्तन की चाहत जब तक हमारे मनों में साकार नहीं, तब तक महज भाषणबाजी से क्या !!
जवाब देंहटाएंयदि सिर्फ प्रवचन से कुछ होता तो आज के दौर में प्रभावी प्रचारकों और मंदिरों , धर्मस्थलों पर भरी भीड़ के बावजूद अपराध इतने ना बढ़ते !!
बाहर की तपन में मेरा मन शीतलता देता है, अकेले रहना शीतलता देता है।
जवाब देंहटाएं...बस उस दिन का इंतज़ार है,
जवाब देंहटाएंजब किसी और के बजाय
हम आगे होंगे
खुद से जागे होंगे !
करेंगे वह सब खुद
जो चाहते हैं औरों से !!
भीड़ न बचाती है
जवाब देंहटाएंन किसी को खबर देती है
बस मज़े लूटती है
और अफवाह फैलाती है !
एक कड़वी सच्चाई है इन शब्दों में जो अंतर्मन को झंझोड़ती सी है ... सशक्त लेखन के साथ उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ... आभार ।
Very nice post.....
जवाब देंहटाएंAabhar!
Mere blog pr padhare.
एक बार
जवाब देंहटाएंबस एक बार
खुद को रखो वहाँ
दिल से सोचो
दिमाग से काम लो ....
खुद को खुद की ताकत दो
क्योंकि मसीहा हमारे ही भीतर है
वह जब भी आएगा
अपने भीतर से ही आएगा
तो ....... इंतज़ार कैसा ?
bilkul sahi ....
स्व की ताक़त का अंदाज़ा खुद को ही नहीं होता,
जवाब देंहटाएंकाश किसी के जगाने से नींद खुल जाती.
परिवर्तन की आहट अपने अपने दिलों से निकलेगी......tabhi nai subah hogi......
जवाब देंहटाएंमसीहा और शैतान अपने अंदर ही हैं ... बस उसे बाहर लाना पढता है ... शैतान तो आ जाता है पर मसीहे कों लाना पढता है ...
जवाब देंहटाएंखुद को खुद की ताकत दो
जवाब देंहटाएंक्योंकि मसीहा हमारे ही भीतर है
वह जब भी आएगा
अपने भीतर से ही आएगा...ek baar phir khade ho kar jindgui ka samna karne ke liye prerit karti behtreen rachna.....
क्योंकि मसीहा हमारे ही भीतर है
जवाब देंहटाएंवह जब भी आएगा
अपने भीतर से ही आएगा.
सच है ।
बिलकुल सच कहा आपने ...अगर समाज में बदलाव देखना है ...तो पहले खुद को बदलो ...अपनी सोच तो टटोलो ....सुधारो ....और फिर किसी और से अपेक्षा रखो
जवाब देंहटाएंसाधु-साधु
जवाब देंहटाएंइन्तज़ार बहुत हो चुका ,व्यवस्था- हीनता इस स्थिति को मानवीय-भावनाओं का आधार दे कर लाइन पर लाना आज की सबसे बड़ी ज़रूरत है .
जवाब देंहटाएंकोई मसीहा नहीं आता, खुद में आत्मबल चाहिए.
जवाब देंहटाएंखुद को खुद की ताकत दो
जवाब देंहटाएंक्योंकि मसीहा हमारे ही भीतर है
वह जब भी आएगा
अपने भीतर से ही आएगा
निशब्द हूँ इस शानदार अभिव्यक्ति पर।
अपनी राहें खुद ...बनाता चल ..कोई आए ना आए ...ये जीवन अपनी गति से चलता चलेगा
जवाब देंहटाएं