नहीं हो सकते मुक्त
जब तक हो खामोश
जीतने की प्रखरता हो
और हो हार स्वीकार
.... नहीं हो सकते मुक्त
सत्य असत्य का फर्क मालूम है
पर हों जुबां पर ताले
नहीं हो सकते मुक्त
भय की आगोश में भी
किसी उम्मीद की मुस्कान हो
नहीं हो सकते मुक्त
.......
मुक्त होना चाहते हो
ऐसे में
यदि जीत नहीं सकते
तो खेलो ही मत
धरती पर हिकारत से फेंके गए
अधिकार और कर्तव्य के टुकड़े उठाने से बेहतर है
चोरी करो ....
यूँ भी तुम चोर कहे जाते हो
तुम्हारी हर बात झूठ है
तो झूठ बोलो ....
देखना लोग विश्वास करने लगेंगे
और तुम अपनी जकड़न से मुक्त
खिलखिलाकर हँस सकोगे ..... इस मुक्ति को आजमा कर देखो
मुक्त होना चाहते हो
जवाब देंहटाएंऐसे में
यदि जीत नहीं सकते
तो खेलो ही मत
शानदार और सटीक पोस्ट।
बेहतरीन शब्द संयोजन , सुन्दर कविता, प्रेरणादायक
जवाब देंहटाएंसत्य कहा दी... ये खामोशी मुक्ति नहीं दे सकती....
जवाब देंहटाएंअपनी आल्हा का एक पद याद आ गया इस रचना को पढ़कर....
"चीखें चलो चलें सब दम भर, ऐसा भीषण कर दें शोर.
छोड़ लंगोटी को भी अपने, भागें सारे हलकट चोर."
सुन्दर रचना दी....
सादर
और तुम अपनी जकड़न से मुक्त
जवाब देंहटाएंखिलखिलाकर हँस सकोगे .....
इस मुक्ति को आजमा कर देखो,,,
बहुत सुंदर प्रस्तुति,,,बेहतरीन सटीक प्रेरणादायक रचना,,,,,,
बात तो सही है ....
जवाब देंहटाएंमुक्त होने के लिए पहले शब्दों को आजाद होना होगा...!
जवाब देंहटाएंमुक्त होने के लिए पहले शब्दों को आजाद होना होगा...!
जवाब देंहटाएंतुम अपनी जकड़न से मुक्त
जवाब देंहटाएंखिलखिलाकर हँस सकोगे ....
अक्षरश: सही कहा आपने ... सार्थकता लिए हुए सटीक अभिव्यक्ति ... आभार
मुक्ति का बहुत अच्छा रास्ता सुझाया है , हालात के अनुरुप ही होना चाहिए.
जवाब देंहटाएं--
कमल ले नुख्सें दिए हैं आपने..आजमाना ही चाहिए..आज के अनुरूप..
जवाब देंहटाएंशायद यही है आज का सच्।
जवाब देंहटाएंजुबान पर जब पड़ जाएँ ताले
जवाब देंहटाएंदेश को तब लूटते हैं घोटाले !
बहुत सुन्दर कविता .
बहुत बढ़िया दी...............
जवाब देंहटाएंअमल करूँ या नहीं सोच में हूँ :-)
सादर.
नूतन अंदाज़
जवाब देंहटाएंमुक्ति का यह तरीका
कोशिश करेंगे हम भी...!
जवाब देंहटाएंधरती पर हिकारत से फेंके गए
जवाब देंहटाएंअधिकार और कर्तव्य के टुकड़े उठाने से बेहतर है
चोरी करो ....
बात तो यह सही है पर सम्भव नहीं...
आक्रोशित होना और आक्रोश प्रकट करना-दो अलग अलग बातें हैं...सलाह विचारणीय है:)
बहुत ही सुन्दर गहन अहसास कराती
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना...
बहुत ही सुन्दर...
:-)
धरती पर हिकारत से फेंके गए
जवाब देंहटाएंअधिकार और कर्तव्य के टुकड़े उठाने से बेहतर है
चोरी करो ....
आज ये आक्रोश भला क्यों ?
विचारणीय रचना
बहुत ही खूबसूरत रचना...
जवाब देंहटाएंमुक्त होना चाहते हो
जवाब देंहटाएंऐसे में
यदि जीत नहीं सकते
तो खेलो ही मत
....बहुत गहन विचारणीय रचना....
सत्य असत्य का फर्क मालूम है
जवाब देंहटाएंपर हों जुबां पर ताले
नहीं हो सकते मुक्त....beraham sachchayee.
कुछ न कहना न जाने किन गर्तों में ले जायेगा..
जवाब देंहटाएंनहीं हो सकते मुक्त
जवाब देंहटाएंजब तक हो खामोश
और तुम अपनी जकड़न से मुक्त
खिलखिलाकर हँस सकोगे ..... इस मुक्ति को आजमा कर देखो
आजमाने की कोशिश जारी है .... आभार .... !!
हम्म...विचारणीय.
जवाब देंहटाएंयदि जीत नहीं सकते
जवाब देंहटाएंतो खेलो ही मत
धरती पर हिकारत से फेंके गए
अधिकार और कर्तव्य के टुकड़े उठाने से बेहतर है
चोरी करो ....
मुक्ति का यह पैमाना इंसानी मजबूरियों को व्यक्त करने के लिए काफी है. पोस्ट दिल को छू गयी
क्या करें क्या न करें ये कैसी मुश्किल हाय!!
जवाब देंहटाएंUnlearning is an even more difficult process.
क्या बात है! वाह!
जवाब देंहटाएंयह भी देखें प्लीज शायद पसन्द आए
छुपा खंजर नही देखा
व्यंग अच्छा है
जवाब देंहटाएंनहीं हो सकते मुक्त
जवाब देंहटाएंजब तक हो खामोश.........बहुत सही