14 जून, 2012

आजमा कर देखो



नहीं हो सकते मुक्त
जब तक हो खामोश
जीतने की प्रखरता हो
और हो हार स्वीकार
.... नहीं हो सकते मुक्त
सत्य असत्य का फर्क मालूम है
पर हों जुबां पर ताले
नहीं हो सकते मुक्त
भय की आगोश में भी
किसी उम्मीद की मुस्कान हो
नहीं हो सकते मुक्त
.......
मुक्त होना चाहते हो
ऐसे में
यदि जीत नहीं सकते
तो खेलो ही मत
धरती पर हिकारत से फेंके गए
अधिकार और कर्तव्य के टुकड़े उठाने से बेहतर है
चोरी करो ....
यूँ भी तुम चोर कहे जाते हो
तुम्हारी हर बात झूठ है
तो झूठ बोलो ....
देखना लोग विश्वास करने लगेंगे
और तुम अपनी जकड़न से मुक्त
खिलखिलाकर हँस सकोगे ..... इस मुक्ति को आजमा कर देखो

29 टिप्‍पणियां:

  1. मुक्त होना चाहते हो
    ऐसे में
    यदि जीत नहीं सकते
    तो खेलो ही मत

    शानदार और सटीक पोस्ट।

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  2. बेहतरीन शब्द संयोजन , सुन्दर कविता, प्रेरणादायक

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  3. सत्य कहा दी... ये खामोशी मुक्ति नहीं दे सकती....
    अपनी आल्हा का एक पद याद आ गया इस रचना को पढ़कर....
    "चीखें चलो चलें सब दम भर, ऐसा भीषण कर दें शोर.
    छोड़ लंगोटी को भी अपने, भागें सारे हलकट चोर."


    सुन्दर रचना दी....
    सादर

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  4. और तुम अपनी जकड़न से मुक्त
    खिलखिलाकर हँस सकोगे .....
    इस मुक्ति को आजमा कर देखो,,,

    बहुत सुंदर प्रस्तुति,,,बेहतरीन सटीक प्रेरणादायक रचना,,,,,,

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  5. मुक्त होने के लिए पहले शब्दों को आजाद होना होगा...!

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  6. मुक्त होने के लिए पहले शब्दों को आजाद होना होगा...!

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  7. तुम अपनी जकड़न से मुक्त
    खिलखिलाकर हँस सकोगे ....

    अक्षरश: सही कहा आपने ... सार्थकता लिए हुए सटीक अभिव्‍यक्ति ... आभार

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  8. मुक्ति का बहुत अच्छा रास्ता सुझाया है , हालात के अनुरुप ही होना चाहिए.
    --

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  9. कमल ले नुख्सें दिए हैं आपने..आजमाना ही चाहिए..आज के अनुरूप..

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  10. जुबान पर जब पड़ जाएँ ताले
    देश को तब लूटते हैं घोटाले !

    बहुत सुन्दर कविता .

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  11. बहुत बढ़िया दी...............
    अमल करूँ या नहीं सोच में हूँ :-)

    सादर.

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  12. नूतन अंदाज़
    मुक्ति का यह तरीका

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  13. धरती पर हिकारत से फेंके गए
    अधिकार और कर्तव्य के टुकड़े उठाने से बेहतर है
    चोरी करो ....

    बात तो यह सही है पर सम्भव नहीं...
    आक्रोशित होना और आक्रोश प्रकट करना-दो अलग अलग बातें हैं...सलाह विचारणीय है:)

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  14. बहुत ही सुन्दर गहन अहसास कराती
    बेहतरीन रचना...
    बहुत ही सुन्दर...
    :-)

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  15. धरती पर हिकारत से फेंके गए
    अधिकार और कर्तव्य के टुकड़े उठाने से बेहतर है
    चोरी करो ....

    आज ये आक्रोश भला क्यों ?

    विचारणीय रचना

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  16. मुक्त होना चाहते हो
    ऐसे में
    यदि जीत नहीं सकते
    तो खेलो ही मत

    ....बहुत गहन विचारणीय रचना....

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  17. सत्य असत्य का फर्क मालूम है
    पर हों जुबां पर ताले
    नहीं हो सकते मुक्त....beraham sachchayee.

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  18. कुछ न कहना न जाने किन गर्तों में ले जायेगा..

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  19. नहीं हो सकते मुक्त
    जब तक हो खामोश
    और तुम अपनी जकड़न से मुक्त
    खिलखिलाकर हँस सकोगे ..... इस मुक्ति को आजमा कर देखो
    आजमाने की कोशिश जारी है .... आभार .... !!

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  20. यदि जीत नहीं सकते
    तो खेलो ही मत
    धरती पर हिकारत से फेंके गए
    अधिकार और कर्तव्य के टुकड़े उठाने से बेहतर है
    चोरी करो ....
    मुक्ति का यह पैमाना इंसानी मजबूरियों को व्यक्त करने के लिए काफी है. पोस्ट दिल को छू गयी

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  21. क्या करें क्या न करें ये कैसी मुश्किल हाय!!

    Unlearning is an even more difficult process.

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  22. नहीं हो सकते मुक्त
    जब तक हो खामोश.........बहुत सही

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