सज्जनता , शालीनता , संस्कार
इसके साथ भी यदि होनी है
तो दुर्जन , संस्कारहीन .... सुनना पड़ता है
ईश्वर की मर्ज़ी !
और इस होनी का उत्सव ठीकरे भी मनाते हैं
खुले आसमां के नीचे मौत आ जाए
तो गिद्धों की भी पार्टी हो जाती है !....
होनी का विधान भी यूँ ही नहीं होता
सच को देखते हुए भी
यदि आँखों पर मोह की पट्टी है
जिह्वा पर शालीनता के ताले लगे हैं
तो ईश्वर अग्नि के मध्य कर देता है
और मौन भाव से कहता है -
या तो संस्कारगत फफोलों की पीड़ा सहो
या फिर थोड़ी सज्जनता , शालीनता .... कम करो !
अधिक नमक भी नुकसानदेह है
मिठास भी
तीता , खट्टा .... सबकुछ !
यदि सज्जनता ही सही होती
तो प्रभु का विराट स्वरुप नहीं होता
सत्य की राह पर जयद्रथ के लिए सूर्यग्रहण नहीं होता
नहीं आता शिखंडी
नहीं मारे जाते द्रोण शिष्यों के शब्द व्यूह में !
........ जाने अनजाने हम गलती करते हैं
पाप करते हैं
बिना सोचे समझे भी
जघन्य अपराध के भागी होते हैं
सारे संस्कार क्षण भर में आरोपी हो जाते हैं ...
विधि का विधान
या होनी का खेल
जो भी हो - होता है !
जब जब अकस्मात् राजा रंक होता है
तो राजा से सबकुछ पानेवाला भी
उसकी तौहीन करने से नहीं चुकता !
सच है ,
हार से संस्कार की परिभाषा नहीं बदलती
पर .... जो अपशब्द बोलते हैं
उनका चेहरा इन्सान सा नहीं होता
ना ही प्रभु उसके लिए आते हैं
वे तो बस मंद मंद मुस्कुराते हैं
जब एक अदना सा भिखारी कहता है
- घसीट कर निकालो राजा को महल से
और......
राजा के बल पर जो भिखारी पेट भरता है
वह डकार लेकर अपनी नियत बताता है ...
वह क्या समझेगा
कि होनी के खेल से महाराणा प्रताप का सामर्थ्य नहीं घटता
राजकोष खाली होने पर भी झाँसी की रानी
अपना वजूद नहीं खोती ...
क्योंकि
होनी होनी है
सच सच है ...
हृदयस्पर्शी नज़्म उत्कृष्ट
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3. गुलाबी कोंपलें
होनी के प्रमाद में पुरूषार्थ कभी लाचार नहीं होता।
जवाब देंहटाएंदी आपकी रचनाएँ निःशब्द कर देती हैं...टिप्पणी सिर्फ ये जताने को कर जाती हूँ कि हां...मैं पढ़ रही हूँ...कतरा कतरा समेत कर कुछ पा सकूँ...
जवाब देंहटाएंसादर
अनु
एक गंभीर सत्य को रूबरू कराती रचना
जवाब देंहटाएंकितनी गहरी बातों को किस सहज ढंग से कह डाला , होनी और सच में - होनी के आगे सच हार जाता है और झूठ तक मुस्कराता है लेकिन कुछ भवितव्यता और कुछ कर्मों का खेल होता है जो इस जन्म से लेकर विगत जन्मों तक से जुड़े होते हें. हम जिसको झांक नहीं पाते तो फिर ईश्वर को दोष देते हें लेकिन वह सब कभी न कभी हमारे द्वारा किया गया हो होता है . फिर चाहे भिखारी राजा को निकाले या फिर राजा हरिश्चंद्र पत्नी से ही पुत्र के लिए कर मांगे. होनी हमारे वश में नहीं होती लेकिन सच हमारे वश में है कि हम अपने को उस पर अडिग रखें. सच कभी झूठ नहीं बन सकता है, वह अग्निपरीक्षा से भले ही गुजरे लेकिन उसी रूप में और निखर कर बाहर आता है.
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना,
जवाब देंहटाएंव्यवहारिक और सच
जब जब अकस्मात् राजा रंक होता है
तो राजा से सबकुछ पानेवाला भी
उसकी तौहीन करने से नहीं चुकता !
हार से संस्कार की परिभाषा नहीं बदलती...
जवाब देंहटाएंपूर्ण सहमति, यही भाव मौन रहने के लिए विवश करता है|
कुछ कमेन्ट करने के लिए शब्द की खोज में हूँ ....
जवाब देंहटाएंआप ही कुछ छोड़ दी होतीं .... या नए मिलते हैं ....
निशब्द करती रचना बहुत-बहुत बार लिख चुकी .... !!
....केवल सच है जिसे होना है !
जवाब देंहटाएंराजा के बल पर जो भिखारी पेट भरता है
जवाब देंहटाएंवह डकार लेकर अपनी नियत बताता है ...
अच्छा लगा पढ़कर
जब एक अदना सा भिखारी कहता है
जवाब देंहटाएं- घसीट कर निकालो राजा को महल से
और......
राजा के बल पर जो भिखारी पेट भरता है
वह डकार लेकर अपनी नियत बताता है
गहन भाव लिए अक्षरश: सच कहा है आपने ... बेहद सशक्त लेखन ...आभार आपका
सत्य से परिचय कराती सशक्त रचना के लिए बधाई रश्मी जी,,,,,
जवाब देंहटाएंAapko padhna hameshaa aanand detaa hai... Sundar rachnaa.
जवाब देंहटाएंगहन व सशक्त अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएं--
इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (19-08-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
हार से संस्कार की परिभाषा नहीं बदलती
जवाब देंहटाएंपर .... जो अपशब्द बोलते हैं
उनका चेहरा इन्सान सा नहीं होता
ना ही प्रभु उसके लिए आते हैं
वे तो बस मंद मंद मुस्कुराते हैं
..सच कहा आपने प्रभु सबकुछ देख मुस्कुरता है .... हमारी नादानियों, नासमझी का दंड खुद ही हमें भुक्ताना होता है ..
बहुत सुन्दर सार्थक प्रस्तुति /...आभार
रश्मि दीदी ...आपने सही कहा ...रानी रानी होती हैं...आप बड़ी हैं और बड़ी ही रहेंगी और जो आदर करना नहीं जानते वो एक बात अच्छे से जान ले की वो आदर की उम्मीद भी ना रखे ..होनी तो होनी हैं ...वो होकर ही रहेगी ..
जवाब देंहटाएंसच है...हार से संस्कार की परिभाषा नहीं बदलती और ना ही होनी से कभी सामर्थ्य घटता है...
जवाब देंहटाएंसशक्त और विचारणीय.....
जवाब देंहटाएंराजा को राजा सिर्फ धन या रुतबा नहीं बनाता , विनम्रता , पौरुष जनता का प्रेम ही व्यक्ति को राजा बना देता है , जिसमे यह गुण नहीं , वह सिर्फ राजा कहला सकता है , होता नहीं ...
जवाब देंहटाएंलाजवाब !
सशक्त रचना... हमेशा की तरह !
जवाब देंहटाएंआभार !
विधि का विधान ही आखिरी सत्य होता है..बहुत सुन्दर..
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन रचना..
जवाब देंहटाएंआपकी रचना में गहनता होती है...
जो बहुत कुछ सीख देती है..
:-):-) :-)
जो होना है वही सच है... हमेशा की तरह सशक्त रचना.
जवाब देंहटाएंहार से संस्कार की परिभाषा नहीं बदलती
जवाब देंहटाएंपर .... जो अपशब्द बोलते हैं
उनका चेहरा इन्सान सा नहीं होता...
रश्मि जी, दिल को छूने वाली रचना है.
वैसे एक साथी कहते हैं-
भूख की शिद्दत बदल देती है फ़ितरत सब्र की...
बहुत ही सुन्दर...लाजबाब प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंगहन अर्थ समेटे..बेहतरीन!!!
सहमत, सच सच है, होनी होनी है..
जवाब देंहटाएंदीदी,
जवाब देंहटाएंआपकी कवितायें सोच से आगे की सोच तक ले जाती हैं.. विचारों को सीमाओं से परे ले जाती है और एक ऐसी मानसिक स्थिति में छोड़ जाति है. जहाँ सवाल खुद एक जवाब बन जाता है!!
जब जब अकस्मात् राजा रंक होता है
जवाब देंहटाएंतो राजा से सबकुछ पानेवाला भी
उसकी तौहीन करने से नहीं चुकता !
सच है... और यही होनी है.. जो विवश करती है सोचने को कि सच में और होनी में कितना बड़ा फासला-सा बनता जा रहा है...
सादर
होनी आपक़े हाथ नहीं है...पर उसका निराकरण है...और ये ही सच है...
जवाब देंहटाएंसशक्त रचना
जवाब देंहटाएंबेहद सुन्दर
जवाब देंहटाएंजाने अनजाने हम गलती करते हैं
जवाब देंहटाएंपाप करते हैं
बिना सोचे समझे भी
जघन्य अपराध के भागी होते हैं
सारे संस्कार क्षण भर में आरोपी हो जाते हैं ...
विधि का विधान
या होनी का खेल
जो भी हो - होता है !
यही तो एकमात्र सत्य है....अत्यंत प्रभावशाली एवं सशक्त रचना