कवि पन्त के दिए नाम रश्मि से मैं भावों की प्रकृति से जुड़ी . बड़ी सहजता से कवि पन्त ने मुझे सूर्य से जोड़ दिया और अपने आशीर्वचनों की पाण्डुलिपि मुझे दी - जिसके हर पृष्ठ मेरे लिए द्वार खोलते गए . रश्मि - यानि सूर्य की किरणें एक जगह नहीं होतीं और निःसंदेह उसकी प्रखरता तब जानी जाती है , जब वह धरती से जुड़ती है . मैंने धरती से ऊपर अपने पाँव कभी नहीं किये ..... और प्रकृति के हर कणों से दोस्ती की . मेरे शब्द भावों ने मुझे रक्त से परे कई रिश्ते दिए , और यह मेरी कलम का सम्मान ही नहीं , मेरी माँ , मेरे पापा .... मेरे बच्चों का भी सम्मान है और मेरा सौभाग्य कि मैं यह सम्मान दे सकी . नाम लिखने लगूँ तो ........ फिर शब्द भावों के लिए कुछ शेष नहीं रह जायेगा ! तो एक आलेख उनके नाम ही सही ....
एक काव्य के रूप में मुझे सबसे पहले मिलीं - रंजना भाटिया , कुछ मेरी कलम से वे मुझे अपनी पंक्तियों सी लगीं - " जीवन खुद ही एक गीत है, गज़ल है, नज़्म है. बस उसको रूह से महसूस करने की ज़रूरत है. उसके हर पहलु को नये ढंग से छू लेने की ज़रूरत है." मैंने इनको पढ़ना - समझना कभी नहीं छोड़ा , क्योंकि न मैं झील से दूर हो सकती हूँ , न लम्हों से , न पंखों की उड़ान से ,न शब्दों से होनेवाली प्राण प्रतिष्ठा से !
फिर मैंने पढ़ा समीर लाल जी को यानि आकाश पर गई नज़र - ओह ! उड़न तश्तरी ....
क्या नहीं मिला इनकी लेखनी में - हर शैली , हर अंदाज - सबकुछ ख़ास पर खुद सरल - बिल्कुल प्राकृतिक ! इनकी सलाह पर अमल कीजिये तो लाभ ही लाभ है , नुकसान कत्तई नहीं -
"टिप्पणियों और तारीफों का ख्याल दिल से निकाल दो,
बस अच्छा लिखते जाओ... फिर देखो-
तुम चिट्ठाजगत के हो और यह चिट्ठाजगत तुम्हारा है."
"वेदना तो हूँ पर संवेदना नहीं, सह तो हूँ पर अनुभूति नहीं, मौजूद तो हूँ पर एहसास नहीं, ज़िन्दगी तो हूँ पर जिंदादिल नहीं, मनुष्य तो हूँ पर मनुष्यता नहीं , विचार तो हूँ पर अभिव्यक्ति नहीं .... " अपने इन एहसासों की गरिमा के साथ मुझे मिलीं शोभना चौरे अपनी अभिव्यक्ति के साथ .
मुलाकातों के मध्य शब्दों के अरण्य में , जिसे लोग ब्लॉग कहते हैं फख्र से - उसमें मैं एक अनजान चिड़िया सी आई . ओह ! कितने प्यारे प्यारे घोंसले हैं यहाँ , मैं कैसा बनाऊं - चिंता थी भारी ...
तब मेरी बिटिया यानि नन्हीं गौरैया खुशबू ने कहा - इसमें क्या है भारी ? और एक डाली पर तिनकों से निर्माण कार्य शुरू किया .... शब्द भाव मेरे , चोंच सी कलम उसकी , पर रोमन दाने मिले -उसी में मैं खुश कि बया की तरह संजीव तिवारी जी मिले और हिंदी में लिखने का आरंभ हुआ . कई लोगों के मध्य मेरी पहचान यानि मेरे नीड़ ( ब्लॉग ) की पहचान इन्होंने दी - इस सीख के साथ -
हिन्दी एग्रीगेटर पंजीयन प्रक्रिया इस प्रकार है :-
1 http://blogvani.com/logo.aspxइस पेज पर जाए और अपने ब्लाग का पता डालें वहां एक एचटीएमएल कोड जनरेट होगा उसे अपने ब्लाग के टेम्पलेट में एचटीएमएल कोड के रूप में डाल देवें यह ब्लागवाणी का पंजीकरण होगा
2 चिट्ठाजगत : http://www.chitthajagat.in/panjikaran.php
3 नारद : http://narad.akshargram.com/
4 हिन्दी की समस्त कडी अपने कम्यूटर में हर एक्सप्लोरर के ओपनिंग के साथ ही देखने के लिए
हिंदी के साथ मैं अपने घोंसले में उतरी 28 अक्तूबर 2007 को रचना अद्भुत शिक्षा ! के साथ , जिसके पहले टिप्पणीकार हुए मुकेश कुमार सिन्हा , मेरे छोटे भाई ! सोच की अदभुत ताकत ने उनके हाथों में कलम दी ताकि आसान हो जाएँ जिंदगी की राहें
" जो कभी लगती है, बहुत लम्बी! तो कभी दिखती है बहुत छोटी!! निर्भर करता है पथिक पर, वो कैसे इसको पार करना चाहता है........."
किताबों की दुनिया में व्याख्या, समीक्षा के साथ मिले नीरज गोस्वामी
कुछ नाम ब्लॉग से परे आत्मीय होते गए - अच्छा लगा मुझे रश्मि जी से निकलकर कुछ संबोधनों से जुड़ना - किसी ने माँ कहा , किसी ने मासी , आंटी ......... जो संबोधन मेरे दिल के बेहद करीब आया , वह है - दीदी . कहने को कई लोगों ने दीदी पुकारा , लिखा .... पर कुछ की पुकार में संस्कार मिले और स्वतः मेरे भीतर से अपनत्व का आशीष निकला . भावनाओं को गंगा की तरह पाने के लिए पुकार का आह्वान संस्कारजनित होता है . नाम तो मिलने के क्रम में आते जायेंगे , पर ऐसे नहीं बताऊंगी - अच्छी , गहरी बातों को नज़र लगते देर नहीं लगती .
2007 से 2009 की यात्रा में मैंने इन ब्लोगरों को जाना , उनको पढ़ा -
अमिताभ मीत कबाड़खाना
महेन्द्र मिश्र समयचक्र जिन्होंने कहा है
31.7.12 को
अच्छा तो हम चलते हैं ,,,
अच्छा तो हम चलते हैं ...
फिर कब मिलोगे .... ?
अब कभी नहीं ...
आज से बंद ....
परमजीत सिहँ बाली दिशाएं
प्रीति महेता Antrang - The InnerSoul !
किशोर कुमार खोरेन्द्र barakha -gyanii
महक की महक जो कहती है -
समंदर किनारे बैठकर
सूरज की किरणो से
कुछ ख्वाब बुने थे परदेसी
आज शाम रंगीन आसमां के नीचे
जब रेत हाथों में ली
.लहेरें उन्हे आकर बहा ले गयी
अचरज में है मन तब से
क्या तुम तक
पहुँच पाएंगे वो…….." नहीं पहुँचती एक आभासी परिवार सा आभासी ब्लॉग की दुनिया कैसे बनती ! आश्चर्य होगा कि परिवार को कैसे आभासी कह सकते हैं ... सोच के देखिये . परिवार , समाज, ब्लॉग .... सब एक ही सिक्के के पहलू हैं - मन चंगा तो कठौती में गंगा - क्यूँ ?
बालकिशन बालकिशन का ब्लॉग
जिन्होंने 2010 में कहा था -
अदालतों के दरवाजे पर हथौड़ा चलाते हुए
हड्डियों के बुखार से लोहा गलाते हुए
मौसम को अपने कांख में दबाये हुए
गले की फ़सान में अकुलाये हुए
आयेंगे और रह जायेंगे, छाएंगे
और वापस नहीं जायेंगे....
अनीता कुमार कुछ हम कहें
एहसास नाम लिए !! एहसासों का सागर !!
अमिय प्रसून मल्लिक निहारिका- मेरा असीम संभाव्य...
कंचन सिंह चौहान हृदय गवाक्ष
मासूम शायर यानि अनिल जी शायर परिवार - शायरों की जान॰॰॰
किसी को नहीं भूली ............. खाली क्षणों में जो साथ रहे उनको भी पढ़ा , जो कुछ समय तक आकर नहीं आए उन्हें भी कभी पढ़ती हूँ .... जो मुझे नहीं जानते मैं उनको भी ढूंढकर पढ़ती हूँ , क्योंकि अच्छे लेखन में संजीवनी शक्ति होती है !
आज के दौर में वाणी शर्मा , निर्मला कपिला ,संगीता स्वरुप , वंदना गुप्ता , शिखा वार्ष्णेय , रश्मि रविजा , साधना वैद , दीपिका रानी , अनुपमा त्रिपाठी , ऋता शेखर मधु , गुंजन अग्रवाल, अनुपमा पाठक , जेन्नी शबनम , दिव्या शुक्ला ,सदा , अंजू चौधरी, अंजू अनन्या, पल्लवी सक्सेना , डॉ गायत्री गुप्ता गुंजन , अनु, पूजा उपध्याय , प्रतिभा सक्सेना , प्रतिभा कटियार , गुंजन अग्रवाल, विभा रानी श्रीवास्तव , डॉ निधि टंडन , डॉ मोनिका शर्मा , हरकीरत हीर , अनीता निहलानी , सरस दरबारी, रेखा श्रीवास्तव , अमृता तन्मय, डॉ संध्या तिवारी, कविता रावत , संध्या शर्मा , प्रियंका राठौड़ , नीलिमा शर्मा , नीलू नीलम , गुंजन श्रीवास्तव , सुनीता शानू , साधना सिंह , सुशीला शिवरण , माहेश्वरी कनेरी , गीता पंडित , असीमा भट्ट , मीनाक्षी धन्वन्तरी, सुधा धींगडा , संगीता पूरी, मीनाक्षी पन्त , निवेदिता श्रीवास्तव , राजेश कुमारी , सुधा भार्गव , डॉ निशा महाराणा , अपर्णा मनोज , वंदना अवस्थी, इस्मत जैदी, बाबुशा कोहली , सुशीला पूरी, सुषमा वर्मा , दीप्ति शर्मा , सोनल रस्तोगी, शैफाली गुप्ता , कविता विकास, कनुप्रिया, रागिनी, तुलिका शर्मा, वंदना शुक्ला , रचना , सुमन, पल्लवी त्रिवेदी ,सौम्य , माधुरी शर्मा गुलेरी , रीना मौर्या ,रचना, रचना दीक्षित , मृदुला प्रधान , अर्चना चाव जी ........ अब अपील है कि जिनके नाम रह गए वे मुझसे कहें -
हिम्मत कैसे हुई मुझे भूलने की ???
अब पुरुष ब्लॉगर ----
सलिल वर्मा , महेंद्र श्रीवास्तव , राजेश उत्साही , शिवम् मिश्रा , अजय झा , मनोज कुमार, देव कुमार झा , पाबला जी , अरुण साथी , मधुरेश , प्रवीण पाण्डेय , सतीश सक्सेना ( जिनकी चेतावनी ने मुझे मायूस किया , फिर हम खूब हँसे ) , रवीन्द्र प्रभात , सुशील, संतोष त्रिवेदी, अतुल श्रीवास्तव , वाणभट , ओंकार , धीरेन्द्र जी, काजल कुमार, मार्कंडेय राय , एम् वर्मा , शाहिद मिर्ज़ा , शैलेश भारतवासी , अरुण चन्द्र राय , नरेन्द्र व्यास, पंकज त्रिवेदी, राजीव चतुर्वेदी, इमरान अंसारी, महफूज़, अलोक खरे , आशुतोष मिश्रा, मुकेश तिवारी, राजेंद्र तेला , कैलाश शर्मा , ज्योति खरे , अनिल कान्त, नित्यानंद गायन , संतोष कुमार, हेमंत कुमार दुबे, आनंद द्विवेदी , रूपचंद शास्त्री मयंक , हंसराज सुज्ञ , दिगम्बर नासवा , गिरिजेश राव , अनुराग आर्य, सागर शेख, अपूर्व ,राज भाटिया , अमित कुमार श्रीवास्तव , जीतेन्द्र जौहर , सतीश पंचम , कुश्वंश, अशोक सलूजा , अरुण कुमार निगम , श्याम कोरी उदय , नीलांश, रमाकांत सिंह, डॉ टी एस दराल , शिवनाथ कुमार , एस एम् हबीब , देवेन्द्र पाण्डेय , अमरेन्द्र शुक्ल, राजेंद्र अवस्थी , पी सी गोदियाल, विमलेन्दु जी , डॉ जाकिर अली रजनीश , अनवर जमाल , .................... कई नाम हैं ख़ास कलम के , पर अभी ब्रह्मांड की सैर में हैं .... खैर !
दो नाम विशेष रूप से लूँगी - क्योंकि वे देश से जुड़े हैं
गौतम राजरिशी
पाल ले इक रोग नादां...
कुश शर्मा का
"सच में!" ................. इनकी कलम ही नहीं , इनकी वर्दी भी मेरा आकर्षण है ...
और अभी जीना है
लिखना है पढ़ना है
नाम और जुड़ेंगे
शब्दों के रिश्ते और जुड़ेंगे ....
:-) love you
जवाब देंहटाएंइस अंतरजाल की दुनिया से जुड कर ढ़ेरों रिश्ते बने और जुड़े जो अब जीवन का हिस्सा भी हैं और आनंदमय अनुभूति भी. आपकी फेहरिस्त में मैं भी शामिल हूँ और आपने मुझे सदैव याद रखा ये मेरे लिए सुखद है. तमाम ब्लॉगर्स को बधाई और आपको शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंआपकी आत्मीयता ...आपका स्नेह ...ही है जो हम सब को जोड़े है ....वरना हम में से कौन किसे जानता था ...और आपकी उपस्थिति हर ब्लॉग पर ....ये भी तय है ....आप किसी को नही भूल सकते दी !....
जवाब देंहटाएंऔर अभी जीना है
जवाब देंहटाएंलिखना है पढ़ना है
नाम और जुड़ेंगे
शब्दों के रिश्ते और जुड़ेंगे ....
आमीन ! ईद मुबारक !
आपकी इस सुन्दर प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलवार२१/८/१२ को http://charchamanch.blogspot.in/2012/08/977.html पर चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका स्वागत है
जवाब देंहटाएंरश्मि जी ,
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ याद रखती हैं आप .... इस आभासी दुनिया ने सच ही बहुत कुछ दिया है .... पढ़ने लिखने की संजीवनी के साथ साथ ऐसे रिश्ते जो कहीं से भी आभासी नहीं लगते ... और जब इन लोगों से मुलाक़ात होती है तो बहुत आत्मीय लगने लगते हैं ...आभार
आज की पोस्ट बहुत अच्छी है...इसमें मेरा भी नाम है न...इसलिएः)
जवाब देंहटाएंसबको याद रखना बहुत अच्छा लगता है दी...हमने भी ब्लॉग जगत पर आपकी यात्रा को जाना !!
क्या बात है रश्मि जी, कितना लम्बा सफर और कितने सारे लोग सब को एक आलेख में समेट लिया . आदि से अंत तक सब कुछ कह डाला. अब समझ आया उस दिन आपकी कही बात का "तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई?" लेकिन अब मौका ही नहीं दिया. एक अपनत्व भरे आलेख ने बहुत कुछ कह दिया. कलम से लेकर दिल तक जाने वाले रिश्तों की गरिमा और उससे मिले प्रेम और विश्वास का महत्व. वैसे तो हर कलम कुछ कहती है और उसमें कुछ न कुछ छिपा होता है.
जवाब देंहटाएं"टिप्पणियों और तारीफों का ख्याल दिल से निकाल दो,
जवाब देंहटाएंबस अच्छा लिखते जाओ... फिर देखो-
तुम चिट्ठाजगत के हो और यह चिट्ठाजगत तुम्हारा है.",,,,,,
समीर लाल जी की सभी ब्लोगरों लिए सही सलाह ,,,,
RECENT POST ...: जिला अनुपपुर अपना,,,
ब्लॉग की अंतर्यात्रा साझा करने के लिए...धन्यवाद...खूबसूरत प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंरश्मि दीदी....आप हमको याद रखती हैं ...आभार आपका ....अच्छा लगा यहाँ सबके साथ खुद को पढ़ना
जवाब देंहटाएंप्रबुद्धों की जमात में शामिल करने का शुक्रिया!
जवाब देंहटाएंआभार हमें याद रखने का..
जवाब देंहटाएंअरे इतनी भीड़ में दी नन्हा सा नाम अनु दिखा....मान के चलती हूँ कि वो मैं ही हूँ..क्यूंकि मुझे आप छोडेंगी मैं मान नहीं सकती :-)
जवाब देंहटाएंखूब सा प्यार और आदर ...
अनु
इस आभासी दुनिया ने सच ही बहुत कुछ दिया है ..इसने एक खुशहाल परिवार का निजात किया है जिससे हम सब एक रिश्ते में जुड़े हुए हैं ...... रश्मिजी आप मुझसे बड़ी है या छॊटी , मुझे पता नहीं लेकिन एक बहन का रिश्ता तो बना ही है न.. अनुभव मे तो निश्चय ही बड़ी है..इसी लिए आप हमेशा ही मेरी प्रेरणा रही है अभी तो आप से बहुत कुछ सीखना है.. आभार..
जवाब देंहटाएंमेरा कमेन्ट गायब!!!!!!!!
जवाब देंहटाएंबाप रे!! कमाल की याददाश्त है आपकी.. आधे दशक की यात्रा का हर एक लम्हा, हर एक साथी को आपने याद किया और सबसे बड़ी बात कि मेरा भी शुमार है इसमें.. दीदी, सचमुच आपका हर अन्दाज़ निराला है!!
जवाब देंहटाएंकितना कुछ समेट लिया आपने..... मुझे याद रखा हृदय से आभार .....
जवाब देंहटाएंआंटी जी..
जवाब देंहटाएंआपकी स्मृतियों में मै भी शामिल हूँ...
यह जानकर बहुत अच्छा लगा...
आभार,,,,,
और ढ़ेर सारा प्यार...
:-) :-) :-) :-) :-):-)
कुछ रिश्ते हमेशा के लिए जुड़ जाते हैं... खुद को यहाँ पाकर अच्छा लगा... आभार
जवाब देंहटाएंवाकई यहाँ हमें बहुत कुछ मिला है, कई रिश्ते आभासी होने के बावजूद असली से लगते हैं ! कई रिश्ते, जिनसे कभी ना मिलते हुए भी लगता है सदियों से जानते हों !
जवाब देंहटाएंब्लॉग जगत अद्भुत है ...
आभार आपका !
इतना सब कुछ एक आलेख में....मज़ा आ गया.
जवाब देंहटाएंआप ग्रेट हैं.
उम्दा आलेख बधाई रश्मि जी
जवाब देंहटाएंआपकी शब्द यात्रा के साथियों से मिलना अच्छा लगा .
जवाब देंहटाएंनजर लगने की बात मानने लगी हैं ना आप भी :)
गजब लिख दिया
जवाब देंहटाएंदेखो सब लिख दिया
क्या क्या लिख दिया
बहुत अच्छा लिख दिया
कुछ उसका लिख दिया
थोड़ा मेरा भी लिख दिया
मैने तो बस आभार लिख दिया !
अपने एहसासों अनुभूतियों को आपने कलम की ऊंची परवाज़ दी ,उपकृत हुए पढ़कर .शुक्रिया इस बिंदास अंदाज़ के लिए . कृपया यहाँ भी पधारें -
जवाब देंहटाएंमंगलवार, 21 अगस्त 2012
सशक्त (तगड़ा )और तंदरुस्त परिवार रहिए
सशक्त (तगड़ा )और तंदरुस्त परिवार रहिए
आपकी रचनाएँ प्रशंसनीय हैं !
जवाब देंहटाएंअकेले चले थे हम कदम दर कदम हाथ जुड़ते गए कारवाँ बनता गया ---वहीँ किसी पड़ाव पर हम भी साथ हो लिए ------वाह रश्मि जी अपने सफ़र को कितनी खूब्सुती से बयान किया मेरा सफ़र भी बहुत रोचक है कभी जरूर साँझा करुगी आपकी तरह हाँ बहुत उत्साहित हूँ की आपसे लखनऊ में मुलाकात होगी
जवाब देंहटाएंजब प्यार की और कलम की ताकत एकसाथ मिली, तो रिश्तों का एक नवीन संसार खडा होना ही था...
जवाब देंहटाएंवाह रश्मि जी ! आप तो यथा नाम तथा गुण हैं ! सूर्य की रश्मियों की तरह आपकी पहुँच अनन्त है और विशाल धरा की तरह आपका आँचल भी असीम है जिसमें ना जाने कितना कुछ सिमट जाता है ! आपकी लम्बी सूची में अपना भी अकिंचन सा नाम देख कर कितनी हर्षित हूँ इसे शब्दों में व्यक्त करना असंभव है ! आपने इतने अच्छे-अच्छे ब्लोगर्स का परिचय दिया है कि मैंने इस आलेख को बुकमार्क कर लिया है ! आपका बहुत-बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंलगता है मैं आपको पर्याप्त इंप्रेस नहीं कर पाई :):)। लेकिन अच्छा लगा कि आप सबसे इतना जुड़ी हुई हैं और वाकई ढूंढ कर सबको पढ़ने की आपके जैसी क्षमता बिरले ही होती है... आपको साधुवाद
जवाब देंहटाएंदीपिका .... sorrryyyyyyyyyyyyyyyyy
जवाब देंहटाएंलिखना है पढ़ना है
जवाब देंहटाएंनाम और जुड़ेंगे
शब्दों के रिश्ते और जुड़ेंगे ..यक़ीनन
आभार आपका
क्या बात है! जस्ट अमेंजिंग!
जवाब देंहटाएंमुझे भी अभी इनमें से बहुतों से मिलना बाकि है ...
जवाब देंहटाएंस्मृतियों का भावपूर्ण सफरनामा ,वाह !!!!!!!!!!!!!
जवाब देंहटाएंIlu Maa...
जवाब देंहटाएंअपना नाम आपकी आत्मीय सूची में तीसरे क्रम पर देखकर खुशी हुई। यह कहने में मुझे कोई संकोच नहीं है कि आपके ब्लाग पर आकर आज तक कभी मुझे यह नहीं लगा कि भला यहां क्यों आया। जब भी आया कुछ लेकर ही गया। शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंमुझे याद रखना ही काफी है मेरे लिए
जवाब देंहटाएंआपको ह्रदय से नमन उसके लिए
दिल को छू लिया आपकी इस पोस्ट ने......आपने हमे भी शुमार किया उसका दिल शुक्रिया......खुदा आपको खूब लम्बी उम्र दे ताकि आप और लोगों के लिए भी मार्गदर्शक बनी रहें और ये रिश्ते यूँ ही बने रहे ......आमीन ।
जवाब देंहटाएंआपका यह प्यारासा आलेख कल पढ़कर गई थी
जवाब देंहटाएंपर टिप्पणी अभी कर रही हूँ ,
बहुत खास जगह है आपकी मेरे दिल में
आभार सुंदर आलेख के लिये ...
इस पोस्ट की तारीफ के लिए मेरे पास शब्द कम पड़ते हैं.. इससे भी आपकी शालीनता भरे उद्गार व्यक्त होते हैं.
जवाब देंहटाएंआपने ब्लॉग-जगत से अपने संबंधों को की बड़ी सुन्दर प्रस्तुति की है.
आभार.
कभी-कभी आभासी दुनियाँ को यूँ भी याद करने का मन करता है। वैचारिक मित्रता प्रगाढ़ होती है। अच्छी लगी पोस्ट।..आभार।
जवाब देंहटाएंरश्मि जी ,
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ याद रखती हैं आप .... इस आभासी दुनिया ने सच ही बहुत कुछ दिया है .... पढ़ने लिखने की संजीवनी के साथ साथ ऐसे रिश्ते जो कहीं से भी आभासी नहीं लगते। किन्तु फिर भी आपने ही खुद लिखा की है कोई जो यह कह सके की मैं उसे भूल गयी तो "मैं हूँ ना" आप मुझे ही भूल गयी है देख लीजिये मेरा नाम कहीं नहीं है एक पल्लवी है मगर वो पल्लवी त्रिवेदी हैं मैं नहीं ....खैर कोई बात नहीं आपने कहा तो मैंने बता दिया :)कृपया अन्यथा न लें
पल्लवी जी ... फिर से देखिये ... हाँ दीपिका जी का भूल गई थी , पर आप हैं
जवाब देंहटाएंआत्मीयता को उलीच दिया आपने..
जवाब देंहटाएंwah.....man khush ho gaya,aapke saath blog ke madhyam se judna.....mera soubhagya hai.....
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