06 अगस्त, 2012

टूटे टूटे से ख्याल ...





लिखना -
मनःस्थिति से निजात पाने की कोशिश है
और मनःस्थिति ...
सिवाए हतप्रभ शब्दों के
उसके पास कुछ नहीं !
मनःस्थिति की दोषी मैं खुद हूँ
क्योंकि अतिशय विनम्रता
सहनशीलता
ख़ामोशी
..... इनका हश्र देखकर भी
मैं इनके साथ अतिशयता में जीती रही ...
तो शब्दों के जो हथौड़े दिमाग की नसों पर पड़े हैं
उनको मैंने ही आमंत्रित किया है !
गाली , अपशब्द , तेज स्वर में चीखनेवाले
जो निरीहता अपनाते हैं
उनको देखकर मैं सीख भी तो नहीं सकती !
जब जब तूफ़ान आया
सब अपनी शिकायत
अपने प्रश्नों की गठरी
और दुःख लेकर बैठ गए
मेरी ख़ामोशी , मेरी बेचैनी
उनके पल्ले ही नहीं पड़ी
तो क्या कहूँ !
जिसको मैंने करीब बिठाकर सब कहा
पर एक बात रख ली
तो ....
उसके पीछे क्या था
इसे समझना मुश्किल कैसे हो सकता है
यदि सच में संबंधों में गहराई हो तो !
शिकायत खुद से है
किसी और से नहीं
क्योंकि समझदारी , गहराई , विश्वास
ख्याल के अतिरेक में
मैं निश्चिन्त रही ...
हर मिनट पर जो ब्लास्ट हुए हैं
हो रहे हैं
उससे बेखबर तो नहीं था कोई
जो ना समझे
हाँ - उदासीनता कह सकते हैं !
फिर भी ,
जंजीरों में मैंने खुद को बाँध दिया है
और घुटने की सज़ा दी है
क्योंकि .....
अति विनम्रता , सहनशीलता , ख्याल से
मैं मुक्त होना चाहती हूँ
हो नहीं रही !
सोच तो यह मेरी है न
कि दोस्त को डायरी होना चाहिए
तो अक्सर बन गई हूँ डायरी
पर अपनी तलाश जारी है ...

33 टिप्‍पणियां:

  1. फिर भी ,
    जंजीरों में मैंने खुद को बाँध दिया है
    और घुटने की सज़ा दी है
    क्योंकि .....
    अति विनम्रता , सहनशीलता , ख्याल से
    मैं मुक्त होना चाहती हूँ
    हो नहीं रही !
    सोच तो यह मेरी है न
    कि दोस्त को डायरी होना चाहिए
    तो अक्सर बन गई हूँ डायरी
    पर अपनी तलाश जारी है ...bahut achchha likha hai aapne .....aksar aesa ho nahi paataa ki
    ham svyam ko nisvaarth pramaanit kar paaye
    aur chikh sake ..ji

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  2. लिखना मनोस्थिति से निजात पाने की कोशिश ही नही नयी मनोस्थिति का निर्माण करना भी है..सच्चाई को दिखाती बहुत भावप्रवण कविता...

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  3. कुछ लोगों में यह गुण आ जाता है, यह समझ आ जाती है कि वह आपकी डायरी बनने योग्य हो जाता है।

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  4. बहुत ही शानदार और सराहनीय प्रस्तुति....
    बधाई

    इंडिया दर्पण
    पर भी पधारेँ।

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  5. अगर सच्चे मित्र की तलाश है ...तो एकांत को अपना साथी बना लीजिये ...उससे बेहतर मित्र नहीं हो सकता ......ट्रस्ट मी ...!!!

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  6. हर शब्‍द मन में कहीं एक चोट कर रहा है, कुछ कहा नहीं जा सकता इस लेखन पर ...
    मनःस्थिति ...
    सिवाए हतप्रभ शब्दों के
    उसके पास कुछ नहीं !
    जैसे कोई हतप्रभ है ... वैसे ही मैं नि:शब्‍द हूँ .. आपकी लेखनी को सादर नमन

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  7. दी जाने क्यूँ पढ़ कर अच्छा नहीं लगा...
    आपका आहत मन मुझे भी दर्द देता है...

    आपके आजू बाजू तो एक प्रकाश सा है..Halo....जैसे चाँद के चारों और होता है...
    सब कुछ उससे टकरा कर लौटता क्यूँ नहीं???
    सादर
    अनु

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  8. हर किसी के वश की बात नहीं है खुद डायरी बन जाना - जिस पर जो चाहे आकर लिख दे और खुद को हल्का करके चल दे और बोझ उस डायरी का बढ़ जाए. मैं सोचती हूँ कि ये एक महान कार्य है. सब कुछ आत्मसात कर उस बोझ को उठाये रहना.

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  9. सदा जी ने बिल्कुल मेरे मन की बाते कह दी है....!
    हतप्रभ है कोई और निःशब्द है हम...

    कुँवर जी,

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  10. दी , आपकी हतप्रभता मुझे तो नि:शब्द कर गयी ,क्योंकि ये शब्द नहीं भावनाओं का आलोड़न हैं ........सादर !

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  11. तट सागर का लहरें भूली,
    आज किनारों तक पंहुची।
    जाने कितना बरसा बादल,
    सीड़ दिवारों तक पंहुची।

    कुछ भाप सी उठती महसूस होती है दी रचना में... सादर।

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  12. बहुत ही प्रभावशाली रचना.. एक एक शब्द मन को छूकर पूछता है आगे क्या..?

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  13. ऐसा लगता है एक जीवन यात्रा को शब्दों में ढालकर दर्द की सुराही से आत्मविश्वास के प्याले में इस कविता की शक्ल में प्रस्तुत किया है!!
    अंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया!! सादर नमन!!

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  14. बहुत ही सुंदर ..... काश की बन पायें हम भी अपनी डायरी

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  15. सचमुच नि:शब्द कर गयी आज की रचना, खुद की तलाश, घुटने की सज़ा...?

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  16. ....
    अति विनम्रता , सहनशीलता , ख्याल से
    मैं मुक्त होना चाहती हूँ
    हो नहीं रही !

    अच्‍छा लगा

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  17. सोच तो यह मेरी है न
    कि दोस्त को डायरी होना चाहिए
    तो अक्सर बन गई हूँ डायरी
    पर अपनी तलाश जारी है ...
    बेहतरीन पंक्तियाँ ....सुंदर रचना ...

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  18. सच है डायरियां दूसरों की बेचैनी समझती हैं मगर स्वयं भावनाओं को कहाँ प्रकट करें !

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  19. जिसको मैंने करीब बिठाकर सब कहा
    पर एक बात रख ली
    तो ....
    उसके पीछे क्या था
    इसे समझना मुश्किल कैसे हो सकता है
    यदि सच में संबंधों में गहराई हो तो !
    शिकायत खुद से है
    किसी और से नहीं
    क्योंकि समझदारी , गहराई , विश्वास
    ख्याल के अतिरेक में
    मैं निश्चिन्त रही ...
    ......कितनी अपनी सी बात ....और इसके पीछे की मन:स्थिति और हतप्रभता को समझ पा रही हूं ....सही कहा दी ....अतिशयता में जीना स्वयं के लिए ऐसी स्थितियां लाता है पर फिर भी ..अह्हह्ह .../////
    सोच तो यह मेरी है न
    कि दोस्त को डायरी होना चाहिए
    तो अक्सर बन गई हूँ डायरी
    पर अपनी तलाश जारी है ...इन पंक्तियों में सारी अतिशयता ....पूरा जीवन दृष्टांत उकेर दिया ....बहुत उदास ......

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  20. फिर भी ,
    जंजीरों में मैंने खुद को बाँध दिया है
    और घुटने की सज़ा दी है
    क्योंकि .....
    अति विनम्रता , सहनशीलता , ख्याल से
    मैं मुक्त होना चाहती हूँ
    हो नहीं रही !

    ....यही आज की मजबूरी है..बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति..

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  21. यदि सच में संबंधों में गहराई हो तो !

    मौन भी आँखों से मुखरित हो जाता है...

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  22. मन के घायल भावों का सजीव चित्रण ......
    और ये चित्र लगभग हर नारी मन की दीवाल पर टंगे होते हैं ...अच्छी रचना के लिए आभार

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  23. शिकायत खुद से है
    किसी और से नहीं ....मनोस्थिति है.

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  24. यदि सच में संबंधों में गहराई हो तो !
    शिकायत खुद से है किसी और से नहीं

    बहुत ही गहन और सुन्दर पोस्ट।

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  25. आपकी हर कविता कुछ ना कुछ सन्देश देती हैं ...आभार आपका

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