लिखना -
मनःस्थिति से निजात पाने की कोशिश है
और मनःस्थिति ...
सिवाए हतप्रभ शब्दों के
उसके पास कुछ नहीं !
मनःस्थिति की दोषी मैं खुद हूँ
क्योंकि अतिशय विनम्रता
सहनशीलता
ख़ामोशी
..... इनका हश्र देखकर भी
मैं इनके साथ अतिशयता में जीती रही ...
तो शब्दों के जो हथौड़े दिमाग की नसों पर पड़े हैं
उनको मैंने ही आमंत्रित किया है !
गाली , अपशब्द , तेज स्वर में चीखनेवाले
जो निरीहता अपनाते हैं
उनको देखकर मैं सीख भी तो नहीं सकती !
जब जब तूफ़ान आया
सब अपनी शिकायत
अपने प्रश्नों की गठरी
और दुःख लेकर बैठ गए
मेरी ख़ामोशी , मेरी बेचैनी
उनके पल्ले ही नहीं पड़ी
तो क्या कहूँ !
जिसको मैंने करीब बिठाकर सब कहा
पर एक बात रख ली
तो ....
उसके पीछे क्या था
इसे समझना मुश्किल कैसे हो सकता है
यदि सच में संबंधों में गहराई हो तो !
शिकायत खुद से है
किसी और से नहीं
क्योंकि समझदारी , गहराई , विश्वास
ख्याल के अतिरेक में
मैं निश्चिन्त रही ...
हर मिनट पर जो ब्लास्ट हुए हैं
हो रहे हैं
उससे बेखबर तो नहीं था कोई
जो ना समझे
हाँ - उदासीनता कह सकते हैं !
फिर भी ,
जंजीरों में मैंने खुद को बाँध दिया है
और घुटने की सज़ा दी है
क्योंकि .....
अति विनम्रता , सहनशीलता , ख्याल से
मैं मुक्त होना चाहती हूँ
हो नहीं रही !
सोच तो यह मेरी है न
कि दोस्त को डायरी होना चाहिए
तो अक्सर बन गई हूँ डायरी
पर अपनी तलाश जारी है ...
फिर भी ,
जवाब देंहटाएंजंजीरों में मैंने खुद को बाँध दिया है
और घुटने की सज़ा दी है
क्योंकि .....
अति विनम्रता , सहनशीलता , ख्याल से
मैं मुक्त होना चाहती हूँ
हो नहीं रही !
सोच तो यह मेरी है न
कि दोस्त को डायरी होना चाहिए
तो अक्सर बन गई हूँ डायरी
पर अपनी तलाश जारी है ...bahut achchha likha hai aapne .....aksar aesa ho nahi paataa ki
ham svyam ko nisvaarth pramaanit kar paaye
aur chikh sake ..ji
लिखना मनोस्थिति से निजात पाने की कोशिश ही नही नयी मनोस्थिति का निर्माण करना भी है..सच्चाई को दिखाती बहुत भावप्रवण कविता...
जवाब देंहटाएंकुछ लोगों में यह गुण आ जाता है, यह समझ आ जाती है कि वह आपकी डायरी बनने योग्य हो जाता है।
जवाब देंहटाएंबहुत ही शानदार और सराहनीय प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंबधाई
इंडिया दर्पण पर भी पधारेँ।
अगर सच्चे मित्र की तलाश है ...तो एकांत को अपना साथी बना लीजिये ...उससे बेहतर मित्र नहीं हो सकता ......ट्रस्ट मी ...!!!
जवाब देंहटाएंहर शब्द मन में कहीं एक चोट कर रहा है, कुछ कहा नहीं जा सकता इस लेखन पर ...
जवाब देंहटाएंमनःस्थिति ...
सिवाए हतप्रभ शब्दों के
उसके पास कुछ नहीं !
जैसे कोई हतप्रभ है ... वैसे ही मैं नि:शब्द हूँ .. आपकी लेखनी को सादर नमन
पर अपनी तलाश जारी है ...
जवाब देंहटाएंकब तक ?
दी जाने क्यूँ पढ़ कर अच्छा नहीं लगा...
जवाब देंहटाएंआपका आहत मन मुझे भी दर्द देता है...
आपके आजू बाजू तो एक प्रकाश सा है..Halo....जैसे चाँद के चारों और होता है...
सब कुछ उससे टकरा कर लौटता क्यूँ नहीं???
सादर
अनु
शानदार,सराहनीय प्रस्तुति....बधाई
जवाब देंहटाएंRECENT POST...: जिन्दगी,,,,
हर किसी के वश की बात नहीं है खुद डायरी बन जाना - जिस पर जो चाहे आकर लिख दे और खुद को हल्का करके चल दे और बोझ उस डायरी का बढ़ जाए. मैं सोचती हूँ कि ये एक महान कार्य है. सब कुछ आत्मसात कर उस बोझ को उठाये रहना.
जवाब देंहटाएंसदा जी ने बिल्कुल मेरे मन की बाते कह दी है....!
जवाब देंहटाएंहतप्रभ है कोई और निःशब्द है हम...
कुँवर जी,
दी , आपकी हतप्रभता मुझे तो नि:शब्द कर गयी ,क्योंकि ये शब्द नहीं भावनाओं का आलोड़न हैं ........सादर !
जवाब देंहटाएंतट सागर का लहरें भूली,
जवाब देंहटाएंआज किनारों तक पंहुची।
जाने कितना बरसा बादल,
सीड़ दिवारों तक पंहुची।
कुछ भाप सी उठती महसूस होती है दी रचना में... सादर।
बहुत ही प्रभावशाली रचना.. एक एक शब्द मन को छूकर पूछता है आगे क्या..?
जवाब देंहटाएंऐसा लगता है एक जीवन यात्रा को शब्दों में ढालकर दर्द की सुराही से आत्मविश्वास के प्याले में इस कविता की शक्ल में प्रस्तुत किया है!!
जवाब देंहटाएंअंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया!! सादर नमन!!
बहुत ही सुंदर ..... काश की बन पायें हम भी अपनी डायरी
जवाब देंहटाएंसचमुच नि:शब्द कर गयी आज की रचना, खुद की तलाश, घुटने की सज़ा...?
जवाब देंहटाएं....
जवाब देंहटाएंअति विनम्रता , सहनशीलता , ख्याल से
मैं मुक्त होना चाहती हूँ
हो नहीं रही !
अच्छा लगा
सोच तो यह मेरी है न
जवाब देंहटाएंकि दोस्त को डायरी होना चाहिए
तो अक्सर बन गई हूँ डायरी
पर अपनी तलाश जारी है ...
बेहतरीन पंक्तियाँ ....सुंदर रचना ...
सुंदर अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंbahut sundar
जवाब देंहटाएं--- शायद आपको पसंद आये ---
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3. तख़लीक़-ए-नज़र
सच है डायरियां दूसरों की बेचैनी समझती हैं मगर स्वयं भावनाओं को कहाँ प्रकट करें !
जवाब देंहटाएंजिसको मैंने करीब बिठाकर सब कहा
जवाब देंहटाएंपर एक बात रख ली
तो ....
उसके पीछे क्या था
इसे समझना मुश्किल कैसे हो सकता है
यदि सच में संबंधों में गहराई हो तो !
शिकायत खुद से है
किसी और से नहीं
क्योंकि समझदारी , गहराई , विश्वास
ख्याल के अतिरेक में
मैं निश्चिन्त रही ...
......कितनी अपनी सी बात ....और इसके पीछे की मन:स्थिति और हतप्रभता को समझ पा रही हूं ....सही कहा दी ....अतिशयता में जीना स्वयं के लिए ऐसी स्थितियां लाता है पर फिर भी ..अह्हह्ह .../////
सोच तो यह मेरी है न
कि दोस्त को डायरी होना चाहिए
तो अक्सर बन गई हूँ डायरी
पर अपनी तलाश जारी है ...इन पंक्तियों में सारी अतिशयता ....पूरा जीवन दृष्टांत उकेर दिया ....बहुत उदास ......
apka koi jabab nahin.....
जवाब देंहटाएंफिर भी ,
जवाब देंहटाएंजंजीरों में मैंने खुद को बाँध दिया है
और घुटने की सज़ा दी है
क्योंकि .....
अति विनम्रता , सहनशीलता , ख्याल से
मैं मुक्त होना चाहती हूँ
हो नहीं रही !
....यही आज की मजबूरी है..बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति..
यदि सच में संबंधों में गहराई हो तो !
जवाब देंहटाएंमौन भी आँखों से मुखरित हो जाता है...
संवेदनशील रचना ...
जवाब देंहटाएंमन के घायल भावों का सजीव चित्रण ......
जवाब देंहटाएंऔर ये चित्र लगभग हर नारी मन की दीवाल पर टंगे होते हैं ...अच्छी रचना के लिए आभार
शिकायत खुद से है
जवाब देंहटाएंकिसी और से नहीं ....मनोस्थिति है.
यदि सच में संबंधों में गहराई हो तो !
जवाब देंहटाएंशिकायत खुद से है किसी और से नहीं
बहुत ही गहन और सुन्दर पोस्ट।
आपकी हर कविता कुछ ना कुछ सन्देश देती हैं ...आभार आपका
जवाब देंहटाएंbahut hi bhawpurn srijan sacchaai ko ukerti hui....
जवाब देंहटाएंनि:शब्द..
जवाब देंहटाएं