गलतफहमियां होती हैं
पर स्व विश्लेषण पर
दृष्टि मस्तिष्क समय अनुभव ...
ये सब ज्ञान का स्रोत होते हैं !
एक ही व्यक्ति सबके लिए एक सा नहीं होता
एक सा व्यवहार जब सब नहीं करते
तो एक सा व्यक्ति कैसे मिलेगा !
पर प्रतिस्पर्द्धा लिए
उसके निजत्व को उछालना
अपनी विकृत मंशाओं की अग्नि को शांत करना
क्या सही है ! ...
.....
पाप और पुण्य - !!!
उसके भी सांचे समय की चाक पर होते हैं
जैसे -
राम ने गर्भवती सीता को वन भेजा ...
हम आलोचना करने लगे
सोचा ही नहीं
कि हम राम होते तो क्या करते
यज्ञ में सीता की मूर्ति रखते
या - वंश का नाम दे दूसरा विवाह रचाते !
१४ वर्ष यशोदा के आँगन में बचपन जीकर
कृष्ण मथुरा चले ...
हमने कहा -
राज्य लोभ में कृष्ण माखन का स्वाद भूल चले ...
सोचा ही नहीं
माँ देवकी को मुक्त कराने के लिए
माँ यशोदा से दूर हुए
सारे आंसू जब्त किये कृष्ण
..... यूँ ही तो गीता नहीं सुना सके !...
अब इसमें अहम् सवाल ये है कि हम क्या करते -
संभवतः यशोदा और देवकी को वृद्धाश्रम रखते !!
......
हम दूसरों का आकलन करने में माहिर हैं
उसके कार्य के पीछे की नीयत तक बखूबी भांप लेते हैं
उसे क्या सजा होनी चाहिए - यह भी तय कर लेते हैं
इतनी बारीकी से हम खुद को कभी तौल नहीं पाते !
क्योंकि ....
भले ही हमने जघन्य हत्याएं की हों
अतिशय आक्रोश में अपनी बात मनवाने के लिए
माँ के चेहरे पर पाँचों उँगलियों के निशां बनाये हों
भले ही हम एक बार भी न सोच पाए हों
कि इस माँ ने नौ महीने हमें गर्भ में रखा
.....हम गलत होते ही नहीं
क्योंकि विश्लेषण हम सामनेवाले का ही करते हैं
आत्मविश्लेषण हमारे गले मुश्किल से उतरता है ...
हम दरअसल औरंगजेब की सोच रखते हैं
पंच परमेश्वर भी हमारी तराजू पर होता है
हमसे बढ़कर दूसरा कोई ज्ञानी नहीं होता
हो ही नहीं सकता ...
यह अपना कंस , शकुनी सा ' मैं '
हमेशा सही होता है !!!
हमेशा .....
यह अपना कंस , शकुनी सा ' मैं '
जवाब देंहटाएंहमेशा सही होता है !!!
हमेशा .....
आत्मविश्लेषण करना ही दुरूह है .... दूसरे का विश्लेषण तो न जाने कितनी गहराई से लोग कर लेते हैं .....
पौराणिक घटनाओं को देखने का आपका नज़रिया हमेशा से आश्चर्य में डालता है ...आज की रचना भी उसकी का एक हिस्सा है
जवाब देंहटाएंपौराणिक हो या आधुनिक - जिसे देखा नहीं , जाना नहीं - उसके साथ कथा के अनुसार न्याय कैसे कर सकते ! एक सच के लिए सौ झूठ और सिर्फ झूठ - फर्क होता है न !
जवाब देंहटाएं.....हम गलत होते ही नहीं
जवाब देंहटाएंक्योंकि विश्लेषण हम सामनेवाले का ही करते हैं
आत्मविश्लेषण हमारे गले मुश्किल से उतरता है ...
कितनी गहरी बात कही आपने इन पंक्तियों में जो अक्षरश: सच भी है ...
आभार
प्रभावशाली सोच
जवाब देंहटाएंमेरे" मैं" ने मुझ को मारा
मैं ही जीता ,मैं ही हारा
मैं ही ज्ञानी मैं ही अज्ञानी
किसी और को क्या दोष दूं
जब तक रहेगा "मैं" साथ मेरे
पल पल मारेगा मुझे
जी कर भी जी ना सकूंगा
हर पल रोता रहूँगा
कुंठाओं के जाल से
कभी ना निकल सकूंगा
आज तक समझ ना पाया
कैसे छुडाऊँ पीछा इससे
मेरे" मैं" ने मुझ को मारा
22-08-2012
बहुत आसान होता है दूसरे के मामले में जज बन जाना और उसको दोषी करार देना. जब हम अपने पौराणिक काल की घटनाओं में निर्णायक बन दूसरों को दोषी घोषित करने लगते हें तब अपने को आईने में नहीं देखा होता है. फिर अपने को तौलता कौन है? अगर दोषी हमारा अपना है तो उसको बचाने और दूसरा है तो उस पर आक्षेप लगाने की हमारी मनोवृत्ति शायद कभी ख़त्म नहीं होती और इसी लिए कहा गया है कि दाँत खाने के और दिखाने के और होते हें.
जवाब देंहटाएंसारे आंसू जब्त किये कृष्ण
जवाब देंहटाएं..... यूँ ही तो गीता नहीं सुना सके !...
अब इसमें अहम् प्रश्न ये है कि हम क्या करते -
संभवतः यशोदा और देवकी को वृद्धाश्रम रखते !!
.... Adbhut !!
सच है अपने ही आईने से दूसरों को देखने लगते हाँ हम .. उन भावनाओं को समझ ही नहीं सकते ... गहरी बात लिखी है आपने ...
जवाब देंहटाएं" मै " के आगे तो किसी की नहीं चलती..
जवाब देंहटाएंजहा मै होता है..वहा सिर्फ दूसरो का ही आत्मविश्लेषण
होता है..
बहुत सुन्दरता से मै के अहम् को
व्यक्त किया है...
:-)
एक एक लफ्ज़ सच है इस पोस्ट का.....अपना 'मैं' हमे अपनी गलतियाँ देखने ही नहीं देता ये आईने की तरह है जिसमे सिर्फ दुसरे ही दिखते है ।
जवाब देंहटाएंपौराणिक गाथा को आज के संदर्भों से तुलना करने में अड़चनें आने लगती हैं..
जवाब देंहटाएंदूसरे का विश्लेषण तो हम कर लेते है,किन्तु
जवाब देंहटाएंआत्मविश्लेषण करना बड़ा मुश्किल होता है,,,,,
RECENT POST ...: जिला अनूपपुर अपना,,,
RECENT POST ...: प्यार का सपना,,,,
इस मैं से जो पार हुआ उसका ही बेड़ा पार हुआ...
जवाब देंहटाएंक्योंकि विश्लेषण हम सामनेवाले का ही करते हैं
जवाब देंहटाएंआत्मविश्लेषण हमारे गले मुश्किल से उतरता है ...
कसैला कड़वा कुनैन ,कष्टकारक होता है ,कठिनाई से ही उतरता है .... !
एक बड़ी पुरानी कहावत है कि अपने चेहरे के दाग किसी को दिखाई नहीं देते.. और यही अहंकार को जन्म देता है.. जब हम प्रत्येक में परमात्मा को देखते हैं और अपने कर्मों को परमात्मा की इच्छा तो सब कुछ कितना सहज और सरल हो जाता है..
जवाब देंहटाएंआपके अपने अन्दाज़ में लिखी गई कविता!!
यह अपना कंस , शकुनी सा ' मैं '
जवाब देंहटाएंहमेशा सही होता है !!!
हमेशा .....
sahi kaha hai sarthak rachna ...
एक एक बातें सोचने को विवश करती हैं। सच में अगर हर जगह खुद को रखकर सोचा जाए तो हम सही रास्ते को आसानी से पा सकते हैं। आंखों से पर्दा हटाती बढिया रचना
जवाब देंहटाएंराम ने गर्भवती सीता को वन भेजा ...
हम आलोचना करने लगे
सोचा ही नहीं
कि हम राम होते तो क्या करते
यज्ञ में सीता की मूर्ति रखते
या - वंश का नाम दे दूसरा विवाह रचाते !
उम्दा चिंतन।
जवाब देंहटाएंहमसे बढ़कर दूसरा कोई ज्ञानी नहीं होता
जवाब देंहटाएंहो ही नहीं सकता ...
यह अपना कंस , शकुनी सा ' मैं '
हमेशा सही होता है !!!
हमेशा .....
सारी कविता का निचोड़ मानवीय जीवन एक एकमात्र कड़वा सच जिसे बखुबू शब्दों में ढालकर प्रस्तुत किया है आपने....
क्योंकि विश्लेषण हम सामनेवाले का ही करते हैं
जवाब देंहटाएंआत्मविश्लेषण हमारे गले मुश्किल से उतरता है ...
हम दरअसल औरंगजेब की सोच रखते हैं
पंच परमेश्वर भी हमारी तराजू पर होता है
हमसे बढ़कर दूसरा कोई ज्ञानी नहीं होता
हो ही नहीं सकता ...
यह अपना कंस , शकुनी सा ' मैं '
हमेशा सही होता है !!!
हमेशा .....
bauhat accha kataaksh....kitna satya!!
हम गलत होते ही नहीं
जवाब देंहटाएंक्योंकि विश्लेषण हम सामनेवाले का ही करते हैं
आत्मविश्लेषण हमारे गले मुश्किल से उतरता है ...
किसी भी काम को करने के पीछे किसी की कुछ मजबूरी हो सकती है...आलोचना सबसे सरल काम है|
राम ने गर्भवती सीता को वन भेजा ...
जवाब देंहटाएंहम आलोचना करने लगे
सोचा ही नहीं
कि हम राम होते तो क्या करते
यज्ञ में सीता की मूर्ति रखते
या - वंश का नाम दे दूसरा विवाह रचाते !
अद्भुत ...कई सारे लोगों को उत्तर देती हैं आपकी ये पंक्तियाँ जो जाने क्या कुछ कहते हैं ऐसे पौराणिक प्रसंगों के विषय पर ....
विश्लेषण दूसरों का ही करते हैं . अपने भीतर के कंस और शकुनी से कोई भिड़ना नहीं चाहता !
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही कहा हम दूसरों का आकलन करने में लगे रहते है उसके पीछे का कारण नहीं समझते है.
जवाब देंहटाएंक्यो कि.आलोचना सबसे सरल काम है|..हमेशा की तरह विचारणीय ...आभार.. .
लोग "मैं" की अहंकार में अपना खुद का मूल्यांकन नहीं करके दूसरों की खामियां गिनने में वक्त गुजारते है !
जवाब देंहटाएंऐसे ही लोगों पर एक जबरदस्त प्रहार करती रचना !
आभार !
तर्कयुक्त व विश्लेषण भरी,सोच को खुराक देने वाली रचना |
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली रचना ...
जवाब देंहटाएं"माँ के चेहरे पर... "
साहित्य राक्षसों के लिए नहीं होना चाहिए !
मन खिन्न हो गया !
हो सके तो इसे निकाल दें !
शुभकामनायें !
गतिमान जगत में सब कुछ बदलते हुए भी बहुत कुछ नहीं बदलता है..
जवाब देंहटाएंहम दूसरों का आकलन करने में माहिर हैं
जवाब देंहटाएंउसके कार्य के पीछे की नीयत तक बखूबी भांप लेते हैं
उसे क्या सजा होनी चाहिए - यह भी तय कर लेते हैं
इतनी बारीकी से हम खुद को कभी तौल नहीं पाते !
क्यों कि हम में अपना सच जानने की इतनी ताकत ही नहीं कि ...अपना सच सुन सके ...उस से कुछ सीख सके ...इस लिए हम इल्ज़ाम दूसरों के सर पर डाल देते हैं ...कितना आसन हैं ना ये सब करना
ekdam theek bolin.....
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