मैं हूँ ....
पर मैं क्या हूँ
यह मैं होकर भी निर्धारित नहीं कर सकती
और निःसंदेह मिलनेवालों में सबके साथ
मेरी एक ही छवि नहीं उभरती ....
मेरा व्यवहार सामान्य हो सकता है
पर सामनेवाले का नज़रिया अलग अलग हो सकता है
तो सफाई किस बात की ?
और क्यूँ ?
सफाई देना और लेना फ़िज़ूल है
क्योंकि रेखांकित वही होता है
जो सोच समझ लिया गया है !!!
विवेचना आखिर किस बात की ?
हम कहते हैं - विश्वास बड़ी चीज है
तो बगैर विश्वास सफाई क्या
और विश्वास नहीं तो कहना क्या !
एक छोटी सी बात है -
हम कहते हैं ईश्वर हमारे भीतर है
यानि शिव हमारे अन्दर है
और जब शिव हमारे अन्दर है
तो पार्वती , गंगा , रुद्राक्ष , चन्द्रमा
नागदेव , मणि , विष , त्रिशूल , .....
क्रमशः वह सब हमारे अन्दर है
जो शिव है !
तर्क से स्पष्टीकरण मिल जाता है क्या ?
तो तर्क भी समक्ष है
अब क्या यह सच निर्धारित हो गया सबके आगे
या संशय जो अपने स्वभाव का अंश है
वह बरकरार है !!
सफाई देने ना देने का कोई अर्थ नहीं
कहते हैं न
कि मानो तो गंगा माँ है
न मानो तो बहता पानी ........
मानो तो गंगा माँ है
जवाब देंहटाएंन मानो तो बहता पानी ........
एकदम खरी बात ... अब तो कुछ भी कहना शेष नहीं ... आभार इस उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिए
जी
जवाब देंहटाएंमैं पूरी तरह सहमत हूं।
वैसे लगता नहीं आपको ये आम बात होती जा रही है, लोग सामने वाले की सफाई तो चाहते हैं,लेकिन अपनी सफाई देने में असहज महसूस करते हैं।
सफाई देने ना देने का कोई अर्थ नहीं
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट प्रस्तुति
मानो तो गंगा माँ है
जवाब देंहटाएंन मानो तो बहता पानी ......
मानो तो ईश्वर है
न मानो तो सिर्फ पत्थर है ......सुन्दर भाव..
सोलह आने सही कहा दी....
जवाब देंहटाएंएक कहावत है न...
NEVER EXPLAIN...
friends don't need it and enemies won't believe it.
regards
anu
सही है.
जवाब देंहटाएंसवाल मानने ना मानने का है :)
मेरा व्यवहार सामान्य हो सकता है
जवाब देंहटाएंपर सामनेवाले का नज़रिया अलग अलग हो सकता है
तो सफाई किस बात की ?
लाजवाब करती पोस्ट है ये....हैट्स ऑफ इसके लिए ।
मैं हूँ बस इतना ही सत्य है मैं क्या हूँ इसका जवाब कुछ भी नहीं..जैसा भाव वैसा ही जगत दिखता है..
जवाब देंहटाएंसुन्दर धार्मिक तथ्यपूर्ण रचन...
जवाब देंहटाएंबधाई
इंडिया दर्पण पर भी पधारेँ।
आत्मचिंतन ही आत्मसाक्षात्कार करवाता है...
जवाब देंहटाएंमैं हूँ ....
जवाब देंहटाएंपर मैं क्या हूँ
यह मैं होकर भी निर्धारित नहीं कर सकती
और निःसंदेह मिलनेवालों में सबके साथ
मेरी एक ही छवि नहीं उभरती ....
हर व्यक्ति का मन एक दर्पण है जिसका दर्पण जितना स्वच्छ
उतनी छवि भी स्वच्छ दिखाई देगी !
सफाई देना सच में फिजूल समय व्यर्थ करना है हम कितनी ही सफाई दे
सामने वाले वही सझते है जो वे है !
मेरा होना अपने लिये है ....सार्थक रचना !
बहुत ही अच्छी कविता |
जवाब देंहटाएंमेरा व्यवहार सामान्य हो सकता है ,
जवाब देंहटाएंपर सामनेवाले का नज़रिया अलग अलग हो सकता है ....
मानो तो गंगा माँ है
न मानो तो बहता पानी ........
मानो तो देव ...न मानो तो पत्थर ....
सहमत हैं आपकी बात से ...जहाँ खुद को साबित करना पड़े ....वहाँ विश्वास और रिश्ता कैसा ?
जवाब देंहटाएंएक छोटी सी बात है -
जवाब देंहटाएंहम कहते हैं ईश्वर हमारे भीतर है
यानि शिव हमारे अन्दर है
और जब शिव हमारे अन्दर है
तो पार्वती , गंगा , रुद्राक्ष , चन्द्रमा
नागदेव , मणि , विष , त्रिशूल , .....
क्रमशः वह सब हमारे अन्दर है
जो शिव है !
सत्य को स्पष्टीकरण की जरूरत नही होती।
सुन्दर चिंतन दी...
जवाब देंहटाएंसादर.
सच लिखा है आपने , अपने को सिद्ध करने की किसी के सामने जरूरत नहीं है. हम अपने आप को सिर्फ अपनी आत्मा के सामने सिद्ध करते हैं और अगर उसकी नजर में सत्य है तो सत्य हैं और फिर दूसरे हमारे बारे में क्या सोचते हैं इसकी सफाई व्यर्थ है. दूसरों की छवि तो हम अपने भावों और विचारों के अनुरुप ही बना कर चलते हैं.
जवाब देंहटाएंआध्यात्मिक भावों से पूर्ण रचना. आभार.
shat partishat sacchi baat....
जवाब देंहटाएंसोच में पड़ गयी हूँ...मैं क्या हूँ ? जो भी हूँ मैं..., खुद से तो छुप नहीं सकती ! और जो मैं नहीं हूँ...वो सामने वाला ना समझे, तो मैं करूँ तो क्या ? सच है! जब विश्वास ही न हो किसी को...तो सफाई कितनी दे...और क्या दे...
जवाब देंहटाएं~जीवन की भूलभुलैया का उत्कृष्ट चित्रण !~
-सादर!!!
सार्थक भाव लिए रचना...
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन :-)
अपने आपको यदि अधिक व्यक्त करना पड़े तो समझने में कमी होने लगती है..
जवाब देंहटाएंजाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी,,,,
जवाब देंहटाएंमानो तो भगवान,नही तो पत्थर,,,,
मेरा एक प्रिय शे'र है बशीर बद्र साहब का:
जवाब देंहटाएंखतावार समझेगी दुनिया तुझे,
कि इतनी भी ज़्यादा सफाई न दे!!
तर्क तो वैसे भी बुद्धि से जुडी चीज़ है, जबकि विश्वास आत्मा से.. एक शब्द में कहूँ तो प्रेरक!!
बिल्कुल सही
जवाब देंहटाएं--- शायद आपको पसंद आये ---
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सही है विश्वास बड़ी चीज है ...जहाँ विश्वास नहीं वहां तर्क और सफाई का कोई महत्व नहीं... गहन चिंतन
जवाब देंहटाएंsab hamare perspective par depend karta hai...jo ki sabka alag alag hota hai....nice read :)
जवाब देंहटाएंमानो तो गंगा माँ है ना मानो तो बहता पानी !
जवाब देंहटाएंजब सब दूसरे के मानने में ही है तो फिर सफाई कैसी !
यानि शिव हमारे अन्दर है
जवाब देंहटाएंऔर जब शिव हमारे अन्दर है
तो पार्वती , गंगा , रुद्राक्ष , चन्द्रमा
नागदेव , मणि , विष , त्रिशूल , .....
क्रमशः वह सब हमारे अन्दर है
meri nazar me yah samprnth:..aksharsh: sty ..hai ,...
aapki lekhini ko namn ..
sahi bat hai sari baten hmare andar hi hai ...mere blog ko aapka intjaar hai.....
जवाब देंहटाएंहम कहते हैं ईश्वर हमारे भीतर है
जवाब देंहटाएंयानि शिव हमारे अन्दर है
और जब शिव हमारे अन्दर है
तो पार्वती , गंगा , रुद्राक्ष , चन्द्रमा
नागदेव , मणि , विष , त्रिशूल , .....
क्रमशः वह सब हमारे अन्दर है
गहन बात .... और हर इंसान दूसरे को अपने अनुसार ही चिन्हित करता है .... सुंदर प्रस्तुति
रश्मि जी नमस्कार...
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग 'मेरी भावनाएं' से कविता भास्कर भूमि में प्रकाशित किए जा रहे है। आज 9 अगस्त को 'मानों तो...' शीर्षक के कविता को प्रकाशित किया गया है। इसे पढऩे के लिए bhaskarbhumi.com में जाकर ई पेपर में पेज नं. 8 ब्लॉगरी में देख सकते है।
धन्यवाद
फीचर प्रभारी
नीति श्रीवास्तव
Nice read..
जवाब देंहटाएंहाँ यह समस्या तो सभी के साथ आती है जब कोई समझना ही नहीं चाहता तो सफाई भी किस लिए देना बहुत विचारने पोस्ट आभार जन्माष्टमी की बधाई
जवाब देंहटाएंबेवाक अंदाज़ में लिखी सुन्दर रचना.
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