प्रेम को जब भी एक शक्ल देना चाहा
तो या तो मैं दीवारों में चुन दी गई
या फिर वह शक्ल बड़ी डरावनी हो गई ...
......
ऐसे में अच्छा लगा
सहज लगा
कभी रेत पर
कभी बादलों में
कभी आँखों की पुतलियों में
एक चित्र बनाना
उसे प्रेम का नाम देना
मान मनुहार करना
फिर उसे समेट देना ...
ऐसे में -
मैं सती हुई , पार्वती बनी
सीता, राधा, मीरा हुई
हीर बनी, शीरीं बनी
चपल चंचल गौरा बनी
..... पुरवईया मेरे आँचल की लहरें बनी
धरती से आकाश तक मैं विस्तृत हुई
एक ही दिन एक ही समय
मैं कंदराओं में गई
हिमालय पर बर्फ बनी
मोम बनी,उल्का बनी
काश्मीर से कन्याकुमारी तक
उद्द्यानों में घूमी...
मैं तार बनी
संगीत हुई
पायल की झंकार बनी
...
कभी थिरक थिरक
कभी मचल मचल
मैं मेघ राग की धार बनी
मैं भागीरथी की गंगा हुई
शिव की जटा में दिव्य हुई
हहर हहर धरती पर उतरी
देव पूजन का अर्घ्य बनी
देव समर्पण लक्ष्य हुई
शांत नीरव में मैंने रंग बिखेरे प्रेम के
और बचपन की नींव रखी
न द्वेष यहाँ
न दंभ कोई
बचपन सी मासूमियत हर कहीं
.......... इस तरह प्रेम को जीया मैंने
कोई नाम नहीं, कोई शक्ल नहीं
वह एक एक रिश्ते में है
हँसी में है
दुःख में है
त्योहार में है
उल्लास में है
प्रेम है वह
बस प्रेम ही है ....
कोई नाम नहीं, कोई शक्ल नहीं
जवाब देंहटाएंवह एक एक रिश्ते में है
हँसी में है
दुःख में है
त्योहार में है
उल्लास में है
प्रेम है वह
बस प्रेम ही है ....
चारो ओर बस प्रेम ही प्रेम
बहुत सुंदर .....
शांत नीरव में मैंने रंग बिखेरे प्रेम के
जवाब देंहटाएंऔर बचपन की नींव रखी
न द्वेष यहाँ
न दंभ कोई
बचपन सी मासूमियत हर कहीं
.......... इस तरह प्रेम को जीया मैंने
कोई नाम नहीं, कोई शक्ल नहीं
वह एक एक रिश्ते में है
अक्षरश: सही कहा आपने... हर शब्द भावमय करता हुआ अनुपम भाव लिए उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ..आभार
कोई नाम नहीं, कोई शक्ल नहीं
जवाब देंहटाएंवह एक एक रिश्ते में है
हँसी में है
दुःख में है
त्योहार में है
उल्लास में है
प्रेम है वह
बस प्रेम ही है
आपने सही कहा ~~~~
प्रेम है वह
बस प्रेम ही है ~~~~ !!!!
तभी तो ल्कहते हैं प्यार को प्यार ही रहने दो ... कोई साँचा, शक्ल या धब्द न दो ... अंतस तक महसूस करो ...
जवाब देंहटाएंरश्मि जी, प्रेम से बढ़कर कुछ नहीं अगर उसके मायने सही हो....
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत कविता
चहुँ ओर जहाँ जहाँ जाये नैना
जवाब देंहटाएंमुझे तो दिखे बस तू ही मौला
पर प्रेम कभी एक तरफ़ा नहीं हो सकता ...
जवाब देंहटाएंप्रेम की सोच किसी के साथ होने से शुरू हो कर उसके साथ ही खत्म होती है....
मैं सती हुई , पार्वती बनी
सीता, राधा, मीरा हुई
हीर बनी, शीरीं बनी .........ये सब भी प्रेम में थी ...पर कोई ना कोई इनके साथ था ...तब ही ये प्रेम उपजा ....आभार
प्रेम में सराबोर करती सुंदर प्रस्तुति ....
जवाब देंहटाएंएक ही दिन एक ही समय
जवाब देंहटाएंमैं कंदराओं में गई
हिमालय पर बर्फ बनी
मोम बनी,उल्का बनी
काश्मीर से कन्याकुमारी तक
उद्द्यानों में घूमी...
मैं तार बनी
संगीत हुई
पायल की झंकार बनी
वाह इस प्रवाह का कोई जवाब नहीं. बेहतरीन कविता आपकी विद्वता को दरसाती कविता अभिवादन
सच ही कहा आपने वाकई प्रेम कि कोई शक्ल और सूरत नहीं होती वो तो केवल एक भाव है जिसे सिर्फ दिल और आत्मा से महसूस किया जा सकता। अनुपम भाव संयोजन...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ! प्रेम ही तो है..
जवाब देंहटाएंप्रेम की एक प्रेममयी अद्भुत परिभाषा...
जवाब देंहटाएंप्रेममयी .....................
जवाब देंहटाएंप्रेम करना आसान हो सकता है,
जवाब देंहटाएंपर प्रेम की भाषा को समझना,
फिर उसे शब्दों में बांधना, ये तभी
संभव है, जब आप मन और विचारों से बिल्कुल
साफ हों। बहुत अच्छी रचना..
एक ही दिन एक ही समय
मैं कंदराओं में गई
हिमालय पर बर्फ बनी
मोम बनी,उल्का बनी
काश्मीर से कन्याकुमारी तक
उद्द्यानों में घूमी...
मैं तार बनी
संगीत हुई
पायल की झंकार बनी
क्या कहूं...
"Prem" ki khubsuarat paribhasha, anukaraniya hai
जवाब देंहटाएंसच है.. प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम न दो!!
जवाब देंहटाएंप्रेम को उन्मुक्त उड़ने दिया जाये..
जवाब देंहटाएंप्रेम है वह
जवाब देंहटाएंबस प्रेम ही है ....
है तो प्रेम..न हो तब भी प्रेम.....
कहा तो प्रेम...न कहा तब भी प्रेम तो है ही ....
सादर
अनु
कभी थिरक थिरक
जवाब देंहटाएंकभी मचल मचल
मैं मेघ राग की धार बनी
मैं भागीरथी की गंगा हुई
शिव की जटा में दिव्य हुई
हहर हहर धरती पर उतरी
देव पूजन का अर्घ्य बनी
देव समर्पण लक्ष्य हुई
वाह !!!!!!!!!!!! अनूठा शब्द प्रवाह !!!
वाह !! निश्छल निःस्वार्थ प्रेम...बच्चों सी सरल...बहुत शांति है इस प्रेम में !!
जवाब देंहटाएंकोई नाम नहीं, कोई शक्ल नहीं
जवाब देंहटाएंवह एक एक रिश्ते में है
हँसी में है
दुःख में है
त्योहार में है
उल्लास में है
प्रेम है वह
बस प्रेम ही है ...
अगर हमारे ह्रदय में प्रेम है ...तो सर्वस्व प्रेम ही प्रेम है ...हर रिश्ते में ...और बिना रिश्ते के भी ....
सचमुच प्रेम तो बस प्रेम है, बिलकुल सही कहा है आपने, जिसने इसे जिया है, उसीने जाना है ... एक अहसास है जिसे सिर्फ रूह से महसूस किया जा सकता है...
जवाब देंहटाएंKhubsurat....
जवाब देंहटाएंKhubsurat....
जवाब देंहटाएंआपने अपने शब्दों में व अनुभवों में बहुत अच्छा परिभाषित व मूर्तमय किया है प्रेम को ।
जवाब देंहटाएंआप जैसे सीनीअर आर्टिस्ट को सिर्फ सूखा सूखा लिखकर चले जाना अखरता है ।
चंद शब्द्पुष्प प्रस्तुत हैं
पंछियों का समूह जब प्रभात बेली में नर्तन करता है
कोई पत्ता हवा की सरसराहट से डाली पे नाचे
घर का मनीप्लांट जाने कैसे ऊपर चढ़ जाए
अपने बच्चे के मुंह में ज़बरन चिड़िया कोई दाना डाले
खिली हुई रात को मुस्कुराता पूरा चाँद
भीनी सी सुबह में अंगडाई मिटाती ओस
देखता है जब वो
हाँ वो -प्रेम
त और निखर उठता है
beautiful depiction of love...bauhat hi accha!!
जवाब देंहटाएंprem jo dharti se aakash tak faila hai shabdon me kaise bandha ja sakta hai. aapki koshish purjor rahi aur kaamyaab bhi.
जवाब देंहटाएंहमारे ब्लॉग जज़्बात......दिल से दिल तक की नई पोस्ट आपके ज़िक्र से रोशन है.....वक़्त मिले तो ज़रूर नज़रे इनायत फरमाएं -
जवाब देंहटाएंhttp://jazbaattheemotions.blogspot.in/2012/08/10-3-100.html
प्रेम को बिना रंग- रूप- आकार के जीना हो तो ईश्वरीय ही तो हुआ !
जवाब देंहटाएंकोई नाम नहीं, कोई शक्ल नहीं
जवाब देंहटाएंवह एक एक रिश्ते में है......haan yahi sach hai.
प्रेम बिना सब सून..
जवाब देंहटाएंखूबसूरत रचना
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