कृष्ण जन्म यानि एक विराट स्वरुप ज्ञान का जन्म
नाश तो बिना देवकी के गर्भ से जन्म लिए वे कर सकते थे
राधा में प्रेम का संचार कर
पति में समाहित हो सकते थे
देवकी के बदले यशोदा के गर्भ से ही जन्म ले सकते थे
पूतना , कंस .... कोई भी संहार अपने अदृश्य स्वरुप से कर सकते थे
पर कृष्ण ने जन्म लिया
बेबसी , तूफ़ान , घनघोर अँधेरा ,
१४ वर्ष की आयु तक में -
गोवर्धन उठाना , कालिया नाग को वश में करना
............ ,
दुर्योधन की ध्रिष्ट्ता पर विराट रूप दिखाना
यह सब कृष्ण की सीख थी
गीता का उपदेश कि
जब जब धर्म का नाश ....
मैं अवतार लेता हूँ
एक आह्वान था शरीर में अन्तर्निहित आत्मा का !
एक तिनका जब डूबते का सहारा हो सकता है
तो हर विप्पति में
हम अपने अन्दर के ईश्वर के संग
जन्म ले सकते हैं
विराटता हमारे ही अन्दर है
संकल्प अवतार है
भय से परे हो जाओ तो सब संभव है
मोह से परे हो जाओ
तो हर न्याय संभव है ...
देवकी से यशोदा की गोद
फिर देवकी तक यशोदा से विछोह ...
यदि मोह से निजात न ले पाते
मन के कमज़ोर चक्रव्यूह से न निकल पाते
तो कृष्ण भी कृष्ण नहीं कहलाते !
जब जब धर्म का नाश ....
जवाब देंहटाएंमैं अवतार लेता हूँ
एक आह्वान था शरीर में अन्तर्निहित आत्मा का !
एक तिनका जब डूबते का सहारा हो सकता है
तो हर विप्पति में
हम अपने अन्दर के ईश्वर के संग
जन्म ले सकते हैं
विराटता हमारे ही अन्दर है
संकल्प अवतार है
बेहद सशक्त भाव लिए प्रेरणात्मक पंक्तियां ... आपकी लेखनी को नमन
doosri baar padhi...phir se acchi lagi...:)
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर पोस्ट..... बेहद सशक्त अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंबहुत प्रभावशाली सशक्त भाव पूर्ण रचना....आभार
जवाब देंहटाएंprernatmak lekh ...
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी रचना...
जवाब देंहटाएंआपकी सोच को नमन ...
आपकी अभिव्यक्ति को नमन ....
सादर
अनु
कृष्ण की यही तो चारित्रिक विशेषता है कि उन्हें जिसने जिस रूप में देखा उन्हें वे वैसे ही दिखाई दिए.. एक दर्पण की तरह है कृष्ण का व्यक्तित्व.. हर देखने वाले को अलग-अलग रूप दिखाई देता है.. अच्छा लगा आपका यह विश्लेषण!!
जवाब देंहटाएंयदि मोह से निजात न ले पाते
जवाब देंहटाएंमन के कमज़ोर चक्रव्यूह से न निकल पाते
तो कृष्ण भी कृष्ण नहीं कहलाते !bhaut hi utkrst... apki har post ko dil se naman karti hun main....
विराटता हमारे ही अन्दर है
जवाब देंहटाएंसंकल्प अवतार है
भय से परे हो जाओ तो सब संभव है
मोह से परे हो जाओ
तो हर न्याय संभव है ...
....गहन और शाश्वत सत्य की बहुत उत्कृष्ट अभिव्यक्ति..नमन आपकी लेखनी को..आभार
यह सब कृष्ण की सीख थी
जवाब देंहटाएंगीता का उपदेश कि
जब जब धर्म का नाश ....
मैं अवतार लेता हूँ,,,,
सशक्त भावाभिव्यक्ति,,,,,
स्वतंत्रता दिवस बहुत२ बधाई,एवं शुभकामनाए,,,,,
...वो तो मनमोहन ठहरे !
जवाब देंहटाएंदेवकी से यशोदा की गोद
जवाब देंहटाएंफिर देवकी तक यशोदा से विछोह ...
यदि मोह से निजात न ले पाते
मन के कमज़ोर चक्रव्यूह से न निकल पाते
तो कृष्ण भी कृष्ण नहीं कहलाते ! geeta kagyaan samahit hai shabdon maen
मन के कमज़ोर चक्रव्यूह से न निकल पाते
जवाब देंहटाएंतो कृष्ण भी कृष्ण नहीं कहलाते !
बिलकुल सच कहा आपने ...
बहुत सुंदर, सार्थक रचना .
सादर !
सच कहा आपने, कर के दिखाना पड़ता है..
जवाब देंहटाएंप्रेरणादायी....सशक्त रचना
जवाब देंहटाएंकृष्ण सब कर सकते थे .... पर वो लोगों तक ज्ञान देना चाहते थे .... बहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंकृष्ण होने के लिए उन्हें काली रात का सामना करना , सहन करना और नष्ट करना ही था . वे परिस्थितियां थी जिन्होंने उन्हें साबित किया !
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट अभिव्यक्ति !
मन के मंथन को विवश करती रचना।
जवाब देंहटाएंbhawnaon ki adbhud prastuti....
जवाब देंहटाएंयदि मोह से निजात न ले पाते
जवाब देंहटाएंमन के कमज़ोर चक्रव्यूह से न निकल पाते
तो कृष्ण भी कृष्ण नहीं कहलाते !
यूँ ही तो नही कहा गया ना ……मोह सकल व्याधिन कर मूला
भय से परे हो जाओ तो सब संभव है
जवाब देंहटाएंमोह से परे हो जाओ
तो हर न्याय संभव है ...
देवकी से यशोदा की गोद
फिर देवकी तक यशोदा से विछोह ...
यदि मोह से निजात न ले पाते
मन के कमज़ोर चक्रव्यूह से न निकल पाते
तो कृष्ण भी कृष्ण नहीं कहलाते !....true ...
विराटता हमारे ही अन्दर है
जवाब देंहटाएंसंकल्प अवतार है
भय से परे हो जाओ तो सब संभव है
प्रेरणादायक सुन्दर रचना... आभार आपका
विराटता हमारे ही अन्दर है ...हाँ ,बस इसे ही पहचानने की आवश्यकता है.
जवाब देंहटाएंकृष्ण समस्त कलाओं से परिपूर्ण थे...उनकी विराटता को नमन...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन और लाजवाब है ये पोस्ट.....हैट्स ऑफ इसके लिए।
जवाब देंहटाएंक्या खुबसूरत प्रेरक रचना है दी...
जवाब देंहटाएंकृष्ण जन्माष्टमी की सादर बधाईयाँ...
सादर.
क्या कहने...
जवाब देंहटाएंगहन विचारो से ओत प्रोत रचना....
बेहतरीन....
:-)
आपकी लिखी रचना सोमवार 30 ,अगस्त 2021 को साझा की गई है ,
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
मानव तन अवतार लिए तो मानवीय गुणों से अछूते कैसे रह सकते थे परंतु फिर भी मोह बाँधकर मोह त्यागकर जो बंधनहीन हुए वो कृष्ण ही हैं जो कमल के पत्तों सरीखे जग में पानी की बूँद सा तैरते रहे।
जवाब देंहटाएंप्रणाम
सादर।
जब-जब पढ़ा आपकी नज़र से श्रीकृष्ण को मन गोकुल हो गया ... जहाँ थी माँ यशोदा और कान्हा का बचपन 🙏🏻🙏🏻 सादर
जवाब देंहटाएंइसलिए तो कृष्ण ही पूर्णावतार कहलाए । अति सुन्दर कथ्य एवं भाव ।
जवाब देंहटाएंसही कहा कृष्ण को कृष्ण बनने के लिए क्या क्या न करना पड़ा कितने कष्ट सहने पड़े...।काश हम भी उनसे सीख लेकर इंसान बनने के खातिर इंसानियत निभा पाते...।
जवाब देंहटाएंलाजवाब सृजन।
आदरणीया मैम, बहुत ही सुंदर भावपूर्ण रचना जो बहुत ही सुंदर संदेश देती है। सच , भगवान राम और भगवान कृष्ण का जीवन हम सभी के लिए प्रेरणा है। यह बात मेरी नानी भी कहतीं हैं कि प्रभु ने अवतार केवल दुष्टों का संघार करने के लिए नहीं लिया पर इसी लिए लिया ताकि हमें एक अच्छा जीवन जीने की शिक्षा दे सकते हैं। बहुत- बहुत आभार इस सुंदर रचना के लिए व आपको प्रणाम ।
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