21 सितंबर, 2008

शून्य !


एक विस्फोट फिर !
आह !
क्या हो गया है !
कौन है !
सरकार क्या कर रही है !.....................
दुःख और दहशतनुमा सन्नाटे में
फर्क होता है !
सन्नाटे की भाषा नहीं होती
भाषाहीन - एक शून्य !
..........
अखबार के पन्नों पर
अपना खून नहीं होता
तो, स्थिति उतनी भयावह नहीं लगती,
सरगर्मी भरी बातचीत हो जाती है !
अपना खून !
विस्फोट मस्तिष्क में होता है
फिर-
निस्तेज आँखें !
मौन दर्द !
शब्दहीन शून्य रह जाता है !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

33 टिप्‍पणियां:


  1. अच्छी कविता लिखी है आपने, सरकार मूक बन कर सब कुछ होता हुआ देख रह है और पोटा लगाने या सिमी पर प्रतिबन्ध लगाने पर सभी राजनीतिक दल राजनीती कर रहे हैं तो ऐसे में आम जनता को खुद सोचना चाहिए की वोट के लिए जो नेता देश की कुर्बानी दे सकता है वो कैसा नेता होगा? आखिर हम और आपने ही ऐसे नेताओं को चुनकर भेजा है.. ऐसे नेताओं का बहिष्कार करिए.. कब तक सर इसलिए उनको वोट देते रहेंगे क्यों की वो नाकाबिल होने के बावजूद भी बस आपकी जाति का है? जातिवाद क्यों नहीं ख़त्म हो पा रहा? यही कारण हैं क्यूँ कि ऐसे नेता ना जाने कितने शहीदों कि चिता पर बैठ कर वोट कि रोटी सेक रहे हैं.. जब तक आप जागरूक नहीं होते कुछ नहीं होने वाला.. सबसे ताकतवर आप ही हो. आपने ही उन्हें चुन कर भेजा है और अब खुद देख रहे हो कौन क्या कर रहा है और कौन सिमी जैसी आतंकवादी संगठनों का पक्ष ले रहा है..
    ऐसे लोगो को कुर्सी से उतार कर काबिल इंसान को बैठिये.. जो देश और समाज का भला सोचे ना कि सिर्फ अपना और अपनी पार्टी का.. वरना इसी तरह से आतंकवादी बम फोड़ते रहेंगे और जांबाज पुलिस ऑफिसर शहीद होते रहेंगे..
    अब सब कुछ आपके हाथो में है..

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  2. अखबार के पन्नों पर
    अपना खून नहीं होता
    तो, स्थिति उतनी भयावह नहीं लगती,
    सरगर्मी भरी बातचीत हो जाती है !


    bilkul sahi kaha aapne,,aapki kavita vartmaan ki paristhitiyon ko bakhubhi bayan kar rahi he,,, ek sanvedanshil baat ko apni rachna me utarne ke liye bahut bahut dhanyawaad..

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  3. jab in visphoton men apana khoon nahi hota to matr sargarmi bhari baatcheet hoti hai.........kitna sahi kaha hai..aur jab kahin apana khoon ho to.......bahut achchi abhivyakti.
    saadar

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  4. is kavita ne dil ko kahan kahan chuya mahsoos to kar sakta hoon bata nahee sakta

    Anil

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  5. एकदम सटीक और प्रासंगिक बात उठाई है ,आपने..

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  6. bilkul satick aur sahi baat likhi hain didi aapne...
    sacch me "shunya" ki koi bhasha, rang , vichar nahi hota...ye to sabke saath juda unka apne hi pachayi hoti hain, jo vaykti vishesh ke shamband me alag alag maayane rakhta hain.

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  7. बहुत सार्थक रचना है।सही कहा है आपनें-


    अखबार के पन्नों पर
    अपना खून नहीं होता
    तो, स्थिति उतनी भयावह नहीं लगती,
    सरगर्मी भरी बातचीत हो जाती है !

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  8. dard bhari soch hum tak hi kyun hai kya rajneta so gaye ya humney sula diya bahut ho chuka ab jago ...aap ka dard samjh aata hai aap ko parnam

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  9. तबाही हिन्दुस्तान पाकिस्तान नहीं देखती
    तबाही हिन्दू-मुसलमान नहीं देखती

    तबाही सिर्फ़ तबाही लाती है,
    पाकिस्तान में घटित दुखद घटना पर खेद है!

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  10. आज कल के माहौल को दर्शाती सच्ची रचना है ..असर किस पर क्या होगा ? जो इस दर्द को भोगता है वही जान पाता है

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  11. बहुत ही अच्छी और सच्ची रचना। इस प्रकार के लेखन के लिए बधाई।

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  12. Di namaskaar!

    sahi racha aapkee kalam ne.....is krity par to waakyee shabd bhee maun hai....ek ghare shoony kee tarah par
    iss maun ko todna hoga....
    ab hame shantee path chhodna hoga!
    thamnee hogi talwaaren fir bhujaaon main!
    hame manavtaa-rakshak ke ek adhyaay, itihaas main fir jodna hoga!!

    ...saarthk abheevyaktee!

    ...aapka Ehsaas!

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  13. बहुत सटीक और गहरी रचना है. सार्थक रचना.

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  14. अखबार के पन्नों पर
    अपना खून नहीं होता...
    काश की इन अख्बारो पर इन निक्कमे नेताओ का ओर इनके परिवार का खुन होता तो देखते , फ़िर इन्हे केसे लगता,फ़िर करते ऎसी बाते, लेकिन देर नही जो जेसा बोता हे वेसा ही काटता भी हे ....
    धन्यवाद इन भाबुक कवितऒ के लिये

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  15. ...अति विशिष्ठ भावनात्मक अभिव्यक्ति....... अंतर्मन पर गहरा असर किया आपकी इस अनमोल कृति ने..... समर्पित रहिये.....

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  16. poetry is good and realistic.

    but m unable to understand the meaning of the display image of Hanging jesus.

    HOw is it co related wid poetry?
    plz...

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  17. हर तरफ खून, हर ओर चीखें, इतना शोर होने के बावजूद एक अजीब सा सन्नाटा, दिल को चीर देने वाला सन्नाटा...........
    आदमी सड़क पर कीडे मकोडों की तरह पड़ा हुआ है,
    कही बाढ़ ने इंसा को मारा तो कही इंसा ने इंसा को मारा.......
    कही कोई हाथ उठ रहा है उनकी मदद के लिए तो कही कोई चेहरा मुह फेर कर चुपके से निकल जा रहा है की कही कोई देख न ले.......
    अगर हम अपने हाथ उठा कर किसी की मदद नहीं कर सकते तो हमें कोई हक़ नहीं है की हम किसी और (सरकार) को दोष दे.......
    दिल को देहला देने वाली चीखें क्यों हम पर असर नहीं कर रही है.........
    क्या खुदगर्जी की चादर इतनी बड़ी हो गयी है की हमें उसमे से कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा.......
    हर ओर चीकों पुकार के बावजूद एक अजीब सा शुन्य है.........
    ये शुन्य भी न होता गर कोई अपना भी उन चीखों के बीच होता...........

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  18. kavita kavi hriday ke antarman ko bhi vyakt karti hai, saath hi ye bhi pata chalta hai kaise kab aur kaun vyathith hota hai.......sargarbhit rachna ke liye sadhuwad!!

    par jahan tak sarkar ke kya karne kee baat hai, iss vishay main ham yahi kah sakte hain ki har galti ke liye sarkar sarkar karne se nahi hoga........iske liye hame khud main bhi jhankna hoga......kyonki sarkar aur janta dono ham se hi banta hai.......aur agar hame khud ye pata chalne lage ki hame kya karna hai aur kya nahi karna hai........to dhire dhire ye saare problems durr ho sakte hain....

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  19. बहुत ही सार्थक रचना.. सब तरफ मौन दर्द ही तो होता है..

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  20. दुखती रग का वर्णन, बहुत ही संयमित और प्रभावकारी ढंग से किया है आपने।

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  21. बहुत ही सटीक रचना है ....जब तक हमारे नेता मूक दर्शकों की तरह तमाशा देखते रहेंगे तब तक ये शुन्य भी रहेगा ...

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  22. as you sow,so you reap.......कविता पढ़ते ही कमलेश्वर साहब की दो पंक्तियाँ याद गयी

    " बंद कमरे मे दम घूंट सी जाती है
    खिड़कियाँ खोलता हूँ तो,जहरीली हवा आती है "

    अब लोग हैरान है की जाए तो आखिर जाए कहाँ!अरे भाई,जैसा बोए हो वैसा ही तो काटना पड़ेगा!....अभी तो बहुत कुछ होना बाकी है,कौन हो सकता है,हमलोग के सिवा...कोई दुसरे ग्रह का तो आ नहीं सकता! सरकार है कौन? हमलोग ही तो सरकार है,क्या कर रहे है हमलोग ? एक तरफ हमलोग ही ये सबकुछ कर रहे है, और दूसरी तरफ हमलोग ही इसे दूर करना चाहते है,वाह !....इसे दूर करने का बस एक ही तरीका है..प्रेम..सही ढंग से प्रेम करना सीखो,नफरत को प्रेम से जितने की कोशिश करो,रोते हुए के आंसू पोछना सीखो,प्रेम को सबसे बढ़कर समझो..प्रेम से बढ़कर कोई दौलत नहीं है,हर तरफ प्रेम ही प्रेम बिखेर दो ताकि लोग नफरत भूल जाए,कर सकोगे ऐसा ? ....याद रखना, बारूद कभी भी खुद व खुद विस्फोट नहीं कर सकता,जबतक की उसे नफरत की चिंगारी से सुलगाया न जाए.................behad khubsurat rachna maa

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  23. अखबार के पन्नों पर
    अपना खून नहीं होता
    तो, स्थिति उतनी भयावह नहीं लगती,
    सरगर्मी भरी बातचीत हो जाती है !

    shabd nahin hain kya kahoon.

    bahut hi maarak panktiyaan hain.

    kitna dhature sa swad hai is such mein.

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  24. bilkul sahi kaha aapne jab tak apna khun na baha ho tab tak ehesaas nahi hota bas khud ko tasalli di jati hai ki hamain kuch nahi hua hum sahi hain humain kuch nahi hua hamara nasib accha.....kab tak aam aadmi in tasalliyo mai jiyega pata nahi
    pata nahi wo dard kab samjha jayega..

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  25. वर्तमान समस्या का सजीव चित्रण....

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  26. I composed this poem after operation Bluestar in 1984. How relevant is this even today, I am surprised. We have not changed a bit...not learned any lesson from our past.

    एक विस्फोट,
    जिसमें कुछ और कराहटें...
    ----खामोश हो गयीं ।
    सब कुछ शायद, अचानक ही -
    अनजाने में-
    यह बात हो गयी।
    कुछ पल बाद -
    कुछ पल बाद कुछ होगा;
    क्योंकि कुछ होना है।
    कुछ वैसा ही/ जैसा-
    कुछ पल पहले हुआ। क्योंकि.....
    पहले वोह कुछ करता है
    फिर सोचता है। समझता है।
    ऐसा वोह हमेशा करता है-
    ऐसा वह हमेशा करता है-
    वह जानता है....
    भविष्य अनिश्चित है
    वह स्वयं अनिश्चित है।
    इसीलिये उसने जो कुछ किया है/ करा है/ करेगा....
    भविष्य निश्चित करने के लिए।
    स्वयं को निश्चित करने के लिए।
    your pen confirm my feelings. Thanks for thought provoking composition.

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  27. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" गुरुवार 02 सितम्बर 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  28. भयावह परिस्थितियों पर चर्चा करना आसान है। जब अपने पर गुजरती है तभी होता है दिमाग में विस्फोट।

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  29. यथार्थ पर सीधे उतरती लेखनी ।
    सार्थक सृजन।

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दौड़ जारी है...

 कोई रेस तो है सामने !!! किसके साथ ? क्यों ? कब तक ? - पता नहीं ! पर सरपट दौड़ की तेज़, तीखी आवाज़ से बहुत घबराहट होती है ! प्रश्न डराता है,...