26 जुलाई, 2024

खुद के लिए !!!

 बौद्धिक विचारों के लिबास से लिपटे लोग 

अक्सर कहते हैं -

खुद के लिए जियो,

खुद के लिए पहले सोचो"

... खुद के लिए ही सोचना था 

तब प्यार क्यों 

रिश्ते क्यों 

मित्रता क्यों 

इन सबसे ऊपर 'मोह' क्यों !

इन सबसे ऊपर होना 

इतना ही आसान होता 

तो न महाभिनिष्क्रमण का कोई अर्थ मिलता,

न संन्यासी की रचना होती 

और ना ही आवेश में कोई कहता,

"स्वार्थी" !!!

आंतरिक बेचैनी तक नहीं पहुंच सकते 

तो मत पहुंचो,

नाहक परामर्श मत दो ।

मेरा 'खुद' 

मैं हूँ ही नहीं 

और जो हूँ,

वह तुम्हारी सोच,

तुम्हारे तर्क, कुतर्क से 

कोसों दूर है 

और दूर ही रहेगा ।


रश्मि प्रभा

6 टिप्‍पणियां:

जो गरजते हैं वे बरसते नहीं

 कितनी आसानी से हम कहते हैं  कि जो गरजते हैं वे बरसते नहीं ..." बिना बरसे ये बादल  अपने मन में उमड़ते घुमड़ते भावों को लेकर  आखिर कहां!...