पैसे से
तुम घर खरीद सकते हो
महंगी चीजें खरीद सकते हो,
लेकिन यदि तुम खुद को खर्च नहीं कर सकते,
तो घर को घर का रूप नहीं दे सकते !
पैसे से
तुम महंगे, अनगिनत
कपड़े खरीद सकते हो,
प्रसाधनों की भरमार लगा सकते हो,
लेकिन यदि तुम खुद को खर्च नहीं कर सकते,
तो उन्हें सम्भालकर नहीं रख सकते,
कमरा, आलमीरा कबाड़ बन जाएगा !
पैसे से
बच्चे के लिए तुम आया रख सकते हो
उसे महंगे खिलौने दे सकते हो
लेकिन यदि तुम खुद को खर्च नहीं कर सकते,
तो बच्चे के जीवन मे माँ और पिता की
सार्थक परिभाषा नहीं होगी,
एक खालीपन उसके अव्यक्त पलों में होगा ।
कम पैसे में
यदि तुम स्वयं को खर्च करते हो,
तो बासी रोटी ताजी रोटी से अधिक स्वादिष्ट होती है,
नमक-रोटी के आगे पकवान फीके हो जाते हैं ।
घर के हर कोने से जब तुम्हारी खुशबू उठती है,
बच्चा खुद को विशेष नहीं
स्वाभाविक प्राकृतिक महसूस करता है !
पैसा ज़रूरी है,
लेकिन ज़िन्दगी को जीने के लिए
खुद को खर्चना होता है !
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (19-06-2018) को "कैसे होंगे पार" (चर्चा अंक-3006) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 19 जून 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन बिहार विभूति डॉ. अनुग्रह नारायण सिंह जी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंसोंचने को मजबूर करती रचना !! मंगलकामनाएं !
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
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