28 अक्टूबर, 2022

गीता को खुद में आत्मसात करना है !!!


 


यदि तुम कुछ ठीक करना चाहते हो
तो सही-गलत के अन्तर को समझना होगा ! 
अहम की शिला को
ताक पर रखना होगा
खुलकर सच कहना 
और सुनना होगा ...
हर बात पर यदि अहम आड़े आए
तब कोई भी कोशिश बेकार है !!!
ना,ना
आप बेसिर पैर की वजहें नहीं खड़ी कर सकते 
जब तक चेहरे और व्यवहार में
शालीनता, मृदुता नहीं है
आपकी कोशिश सिर्फ और सिर्फ एक झूठ है . ‌. .

इससे परे _ 
यदि तुम अपनी जगह सही हो
पर बातों, चीजों को 
तुम ही सही करना चाहते हो 
_ तब तुम्हें कृष्ण से सीखना होगा
 पांच ग्राम जैसा प्रस्ताव ही सही होगा
अर्थात बीच का वह मार्ग,
जिसमें सम्मानित समझौता हो,
. ‌..
पर इसमें भी बाधा हो,
बड़ों की ग़लत ख़ामोशी उपस्थित हो
तब न्याय के लिए विराट रूप लेना होगा
सारथी बन जीवन रथ को घुमाना
और दौड़ाना होगा
... आवेश _ बिल्कुल नहीं
बल्कि सहजता से झूठ के बदले झूठ
साम दाम दण्ड भेद की तरह 
मन की प्रत्यंचा पर
बातों के शर को चढ़ाना होगा ...

प्रिय,
यहां किसी महाभारत की जरुरत नहीं
बल्कि उस समय को अनुभव की तरह लेना है
गीता को खुद में आत्मसात करना है !!!



14 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(३०-१०-२०२२ ) को 'ममता की फूटती कोंपलें'(चर्चा अंक-४५९६) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. चिंतन परक प्रेरणादायक सृजन

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  3. पर इसमें भी बाधा हो ... झूठ के बदले झूठ साम दाम दण्ड भेद की तरह मन की प्रत्यंचा पर बातों का शर चढ़ाना होगा... आपका चिन्तन कितना गहन है.

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  4. वाह रश्मि जी एक प्रेरणादाई सुंदर कविता जो चिंतन करने के लिए मजबूर कर रही है लिखने के लिए और साझा करने लिए आपका आभार❤️❤️

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  5. यहां किसी महाभारत की जरुरत नहीं
    बल्कि उस समय को अनुभव की तरह लेना है
    गीता को खुद में आत्मसात करना है !
    -- गीता को खुद में आत्मसात कर लिया तो फिर जीवन में व्यर्थ के लाख झमेले ही खत्म हो जाय, लेकिन यही तो नहीं हो पाता हम माया-मोह में डूबे इंसानों से। ...
    बहुत सुन्दर

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  6. युद्ध भूमि में आध्यात्म के साथ कर्तव्य्बोध का शंखनाद गीता की विशेषता है।प्रभावी लेखन हमेशा की तरह 🙏

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  7. बहुत सहज होकर,बिना किसी पूर्वाग्रह के,दिमाग के दरवाज़े खोल कर समझना और ग्रहण करना - गीता को आत्मस्थ करने की अनिवार्य शर्त है.

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