07 नवंबर, 2007

वो भारत देश है मेरा...



साल में दो बार,सुनते हैं -

"वो भारत देश है मेरा...."

फिर कोई डाल नहीं ,सोने की चिड़िया नहीं...

पंख - विहीन हो जाता है भारत....

शतरंज की बिसात पर,चली जाती हैं चालें...

तिथियाँ भी मनाई जाती हैं साजिश की तरह...

क्या था भारत?

क्या है भारत?

क्या होगा भारत?

इस बात का इल्म नहीं !!!

धर्म-निरपेक्षता तो भाषण तक है,

हर कदम बस वाद है...

आदमी , आदमी की पहचान,ख़त्म हो गई है...

गोलियाँ ताकतवर हो गई हैं,

कौन, कहाँ, किस गली ढेर होगा?

कहाँ टायर जलेंगे,आंसू गैस छोड जायेंगे?

ज्ञात नहीं है...

कहाँ आतंक है, कौन है आतंकवादी?

कौन जाने !!!

शान है "डॉन" होना,

छापामारी की जीती-जागती तस्वीर होना,

फिर बजाना साल में दो बार उन्ही के हाथों-

"वो भारत देश है मेरा"

1 टिप्पणी:

एहसास

 मैंने महसूस किया है  कि तुम देख रहे हो मुझे  अपनी जगह से । खासकर तब, जब मेरे मन के कुरुक्षेत्र में  मेरा ही मन कौरव और पांडव बनकर खड़ा रहता...