सतयुग बीता
हर नारी को सीता बनने की सीख मिली
जनकसुता,राम भार्या
सात फेरों के वचन लिए वन को निकली
होनी का फिर चक्र चला
सीता का अपहरण हुआ
हुई सत्य की जीत
जब रावन का संहार हुआ.
पर साथ साथ ही इसके शंका का समाधान हुआ
हुई सीता की अग्नि-परीक्षा
तब जाकर स्थान मिला !!!???
अनुगामिनी बन लौटी अयोध्या
धोबी न फिर घात किया
गर्भवती सीता का तब राम ने परित्याग किया .....
बढ़ी लेखिनी वाल्मीकि की
लव और कुश का हुआ जनम
सीता ने दी पूरी शिक्षा
क्षत्रिय कुल का मान किया.....
हुआ यज्ञ अश्वमेध का
लव-कुश ने व्यवधान दिया
सीता ने दे कर परिचय
युद्ध को एक विराम दिया.
पर फिर आई नयी कसौटी
किसके पुत्र हैं ये लव-कुश???
धरती माँ की गोद समाकर
दिया पवित्रता का परिचय.......
अब प्रश्न है ये उठता
क्या सीता ने यही किया?
या दुःख के घने साए में
खुदकुशी को आत्मसात किया???
जहाँ से आई थी सीता
वहीं गयी सब कर रीता!
सीता जैसी बने अगर सब
तो सब जग है बस रीता!
सत्य न देखा कभी किसी ने
सीता को हर पल दफनाया
किया नहीं सम्पूर्ण रामायण
माता का अपमान किया...
आप क्या समझते है की रामजी ने सीता माता से अग्निपरीक्षा ली थी. नही मैं मानता हूँ की सीतामाता ने स्वयं ही आपने आप को इसके लिए प्रस्तुत किया था ताकि सम्पूर्ण नारिजाती के सामने एक आदर्श रख सकें. क्योंकि अन्तोतागत्वा नारी से ही यह सम्पूर्ण सृष्टि चलायमान है. नारी ही पुरूष की मुक्ति का आधार है. हां ये जरूर सच है की समय समय पर नारी की यही सम्पूर्णता और सहनशीलता, पुरुषो के द्वारा ग़लत ढंग से और नारी के विरुद्ध प्रयोग की गई है.
जवाब देंहटाएंबहुत ही मार्मिक कविता, बढि़या लगी।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया कविता है ।
जवाब देंहटाएंबालकिशन जी , जय हो आपकी व आपके सोच की । कभी किसी पत्नी को मारा थोड़े ही जाता है वह स्वयं मृत्यु चुनती है ताकि
१ पति को पुत्र प्राप्ति हो सके जो वह नहीं करा पा रही है ।
२ पति को दहेज मिले जो वह अपने माता पिता से नहीं दिला पा रही है ।
३ पति को अधिक सुन्दर, अधिक युवा पत्नी मिले क्योंकि वह अब सुन्दर नहीं रह गयी है ।
४ पति को कम लड़ाकू पत्नी मिले क्योंकि वह थोड़ी चिड़चिड़ी हो गई है आदि आदि।
घुघूती बासूती