25 नवंबर, 2007

एक प्रश्न?



मैंने नहीं चाहा था कोई बन्धन
पर इस हस्ताक्षर का क्या करूँ जो दिल पर है?
मैंने इस हस्ताक्षर के फेरे लिए हैं
अपनी धडकनों के संग
एक नहीं,दो नहीं...सात नहीं
आदि,अनादि,अनंत,अखंड!
इस रिश्ते को क्या नाम दूँ?
हस्ताक्षर के नाम
समर्पित है ज़िन्दगी
विश्वास,सच,प्यार से परिपूर्ण
कोई चाहे,
ख़त्म नहीं होगा
खामोशी में भी मेरी धड़कनें जिंदा रहेंगी
लेती रहेंगी तुम्हारा नाम
फिर क्या करोगे उन हिचकियों का?
कोई पानी कोई नशा
उसे ख़त्म नहीं करेगा
तो क्या लौटोगे
अपने गंतव्य से
यशोधरा के पास?

14 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर प्रेमव्यंजना… परमानंद को पुकार लेने जैसा…।

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  2. कहाँ लौटे यशोधरा के पास ? गहन भावाभिव्यक्ति

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  3. बहुत ही अच्छे भाव हैं कविता के।

    सादर

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  4. गुजरा वक्त कब लौटा है…………सुन्दर भावाव्यक्ति।

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  5. संगीता जी की हलचल पर आपकी यह प्रस्तुति देख अच्छा लगा.

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  6. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" गुरुवार 02 सितम्बर 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  7. तो क्या लौटोगे
    अपने गंतव्य से
    यशोधरा के पास?

    मर्मस्पर्शी सृजन ,सादर नमन रश्मि जी

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  8. बहुत सुंदर गहन समर्पित भाव जहां सिर्फ आस्था हैसाथ ही एक प्रश्न ।
    पर बुद्ध लौटा नहीं करते दी, सिर्फ पथ स्थापना कर धुम्र विहिन ज्योति में लीन हो जाते हैं संसार में न आने को जो वापस आते वो न बुद्ध ने सिद्ध 🙏🏼

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