पत्तों पर छलकती ओस की बूँदें
आती हैं बनकर इमरोज़
आतुर रहती हैं हर प्रातः
एक नज़्म सुनाने को
चिड़ियों का कलरव बनकर
पायल कि रुनझुन बनकर
प्रेम राग में डूबी-सिमटी
चाँद के रथ में आती छनकर
हर रोज़ शक्ल ले नज्मों की
कोई प्यार का गीत सुनाती है
गिर कर सुर कोई न भटके
बढ़ती हूँ हथेली में भरने
छन से गिरते हर साज़ को मैं
अपनी आँखों से लगाती हूँ
फिर जीती हूँ पूरे दिन को
इमरोज़ बना कर आँखों में...
आती हैं बनकर इमरोज़
आतुर रहती हैं हर प्रातः
एक नज़्म सुनाने को
चिड़ियों का कलरव बनकर
पायल कि रुनझुन बनकर
प्रेम राग में डूबी-सिमटी
चाँद के रथ में आती छनकर
हर रोज़ शक्ल ले नज्मों की
कोई प्यार का गीत सुनाती है
गिर कर सुर कोई न भटके
बढ़ती हूँ हथेली में भरने
छन से गिरते हर साज़ को मैं
अपनी आँखों से लगाती हूँ
फिर जीती हूँ पूरे दिन को
इमरोज़ बना कर आँखों में...
very beautifully written poem...
जवाब देंहटाएंbahut khubsurat kavita hai
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" गुरुवार 02 सितम्बर 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंमनमोहक सृजन ,सादर नमन रश्मि जी
जवाब देंहटाएंवाह!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ! एहसासों का गूँचा।
भावात्मक सृजन।
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