13 अगस्त, 2012

कृष्ण भी कृष्ण नहीं कहलाते !





कृष्ण जन्म यानि एक विराट स्वरुप ज्ञान का जन्म
नाश तो बिना देवकी के गर्भ से जन्म लिए वे कर सकते थे
राधा में प्रेम का संचार कर
पति में समाहित हो सकते थे
देवकी के बदले यशोदा के गर्भ से ही जन्म ले सकते थे
पूतना , कंस .... कोई भी संहार अपने अदृश्य स्वरुप से कर सकते थे
पर कृष्ण ने जन्म लिया
बेबसी , तूफ़ान , घनघोर अँधेरा ,
१४ वर्ष की आयु तक में -
गोवर्धन उठाना , कालिया नाग को वश में करना
............ ,
दुर्योधन की ध्रिष्ट्ता पर विराट रूप दिखाना
यह सब कृष्ण की सीख थी
गीता का उपदेश कि
जब जब धर्म का नाश ....
मैं अवतार लेता हूँ
एक आह्वान था शरीर में अन्तर्निहित आत्मा का !
एक तिनका जब डूबते का सहारा हो सकता है
तो हर विप्पति में
हम अपने अन्दर के ईश्वर के संग
जन्म ले सकते हैं
विराटता हमारे ही अन्दर है
संकल्प अवतार है
भय से परे हो जाओ तो सब संभव है
मोह से परे हो जाओ
तो हर न्याय संभव है ...
देवकी से यशोदा की गोद
फिर देवकी तक यशोदा से विछोह ...
यदि मोह से निजात न ले पाते
मन के कमज़ोर चक्रव्यूह से न निकल पाते
तो कृष्ण भी कृष्ण नहीं कहलाते !

33 टिप्‍पणियां:

  1. जब जब धर्म का नाश ....
    मैं अवतार लेता हूँ
    एक आह्वान था शरीर में अन्तर्निहित आत्मा का !
    एक तिनका जब डूबते का सहारा हो सकता है
    तो हर विप्पति में
    हम अपने अन्दर के ईश्वर के संग
    जन्म ले सकते हैं
    विराटता हमारे ही अन्दर है
    संकल्प अवतार है
    बेहद सशक्‍त भाव लिए प्रेरणात्‍मक पंक्तियां ... आपकी लेखनी को नमन

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही सुन्दर पोस्ट..... बेहद सशक्त अभिव्यक्ति !

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत प्रभावशाली सशक्त भाव पूर्ण रचना....आभार

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत प्यारी रचना...
    आपकी सोच को नमन ...
    आपकी अभिव्यक्ति को नमन ....

    सादर
    अनु

    जवाब देंहटाएं
  5. कृष्ण की यही तो चारित्रिक विशेषता है कि उन्हें जिसने जिस रूप में देखा उन्हें वे वैसे ही दिखाई दिए.. एक दर्पण की तरह है कृष्ण का व्यक्तित्व.. हर देखने वाले को अलग-अलग रूप दिखाई देता है.. अच्छा लगा आपका यह विश्लेषण!!

    जवाब देंहटाएं
  6. यदि मोह से निजात न ले पाते
    मन के कमज़ोर चक्रव्यूह से न निकल पाते
    तो कृष्ण भी कृष्ण नहीं कहलाते !bhaut hi utkrst... apki har post ko dil se naman karti hun main....

    जवाब देंहटाएं
  7. विराटता हमारे ही अन्दर है
    संकल्प अवतार है
    भय से परे हो जाओ तो सब संभव है
    मोह से परे हो जाओ
    तो हर न्याय संभव है ...

    ....गहन और शाश्वत सत्य की बहुत उत्कृष्ट अभिव्यक्ति..नमन आपकी लेखनी को..आभार

    जवाब देंहटाएं
  8. यह सब कृष्ण की सीख थी
    गीता का उपदेश कि
    जब जब धर्म का नाश ....
    मैं अवतार लेता हूँ,,,,

    सशक्त भावाभिव्यक्ति,,,,,
    स्वतंत्रता दिवस बहुत२ बधाई,एवं शुभकामनाए,,,,,

    जवाब देंहटाएं
  9. देवकी से यशोदा की गोद
    फिर देवकी तक यशोदा से विछोह ...
    यदि मोह से निजात न ले पाते
    मन के कमज़ोर चक्रव्यूह से न निकल पाते
    तो कृष्ण भी कृष्ण नहीं कहलाते ! geeta kagyaan samahit hai shabdon maen

    जवाब देंहटाएं
  10. मन के कमज़ोर चक्रव्यूह से न निकल पाते
    तो कृष्ण भी कृष्ण नहीं कहलाते !

    बिलकुल सच कहा आपने ...
    बहुत सुंदर, सार्थक रचना .
    सादर !

    जवाब देंहटाएं
  11. सच कहा आपने, कर के दिखाना पड़ता है..

    जवाब देंहटाएं
  12. कृष्ण सब कर सकते थे .... पर वो लोगों तक ज्ञान देना चाहते थे .... बहुत सुंदर प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  13. कृष्ण होने के लिए उन्हें काली रात का सामना करना , सहन करना और नष्ट करना ही था . वे परिस्थितियां थी जिन्होंने उन्हें साबित किया !
    उत्कृष्ट अभिव्यक्ति !

    जवाब देंहटाएं
  14. यदि मोह से निजात न ले पाते
    मन के कमज़ोर चक्रव्यूह से न निकल पाते
    तो कृष्ण भी कृष्ण नहीं कहलाते !

    यूँ ही तो नही कहा गया ना ……मोह सकल व्याधिन कर मूला

    जवाब देंहटाएं
  15. भय से परे हो जाओ तो सब संभव है
    मोह से परे हो जाओ
    तो हर न्याय संभव है ...
    देवकी से यशोदा की गोद
    फिर देवकी तक यशोदा से विछोह ...
    यदि मोह से निजात न ले पाते
    मन के कमज़ोर चक्रव्यूह से न निकल पाते
    तो कृष्ण भी कृष्ण नहीं कहलाते !....true ...

    जवाब देंहटाएं
  16. विराटता हमारे ही अन्दर है
    संकल्प अवतार है
    भय से परे हो जाओ तो सब संभव है
    प्रेरणादायक सुन्दर रचना... आभार आपका

    जवाब देंहटाएं
  17. विराटता हमारे ही अन्दर है ...हाँ ,बस इसे ही पहचानने की आवश्यकता है.

    जवाब देंहटाएं
  18. कृष्ण समस्त कलाओं से परिपूर्ण थे...उनकी विराटता को नमन...

    जवाब देंहटाएं
  19. बेहतरीन और लाजवाब है ये पोस्ट.....हैट्स ऑफ इसके लिए।

    जवाब देंहटाएं
  20. क्या खुबसूरत प्रेरक रचना है दी...
    कृष्ण जन्माष्टमी की सादर बधाईयाँ...
    सादर.

    जवाब देंहटाएं
  21. क्या कहने...
    गहन विचारो से ओत प्रोत रचना....
    बेहतरीन....
    :-)

    जवाब देंहटाएं
  22. आपकी लिखी रचना सोमवार 30 ,अगस्त 2021 को साझा की गई है ,
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

    जवाब देंहटाएं
  23. मानव तन अवतार लिए तो मानवीय गुणों से अछूते कैसे रह सकते थे परंतु फिर भी मोह बाँधकर मोह त्यागकर जो बंधनहीन हुए वो कृष्ण ही हैं जो कमल के पत्तों सरीखे जग में पानी की बूँद सा तैरते रहे।
    प्रणाम
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  24. जब-जब पढ़ा आपकी नज़र से श्रीकृष्ण को मन गोकुल हो गया ... जहाँ थी माँ यशोदा और कान्हा का बचपन 🙏🏻🙏🏻 सादर

    जवाब देंहटाएं
  25. इसलिए तो कृष्ण ही पूर्णावतार कहलाए । अति सुन्दर कथ्य एवं भाव ।

    जवाब देंहटाएं
  26. सही कहा कृष्ण को कृष्ण बनने के लिए क्या क्या न करना पड़ा कितने कष्ट सहने पड़े...।काश हम भी उनसे सीख लेकर इंसान बनने के खातिर इंसानियत निभा पाते...।
    लाजवाब सृजन।

    जवाब देंहटाएं
  27. आदरणीया मैम, बहुत ही सुंदर भावपूर्ण रचना जो बहुत ही सुंदर संदेश देती है। सच , भगवान राम और भगवान कृष्ण का जीवन हम सभी के लिए प्रेरणा है। यह बात मेरी नानी भी कहतीं हैं कि प्रभु ने अवतार केवल दुष्टों का संघार करने के लिए नहीं लिया पर इसी लिए लिया ताकि हमें एक अच्छा जीवन जीने की शिक्षा दे सकते हैं। बहुत- बहुत आभार इस सुंदर रचना के लिए व आपको प्रणाम ।

    जवाब देंहटाएं

दौड़ जारी है...

 कोई रेस तो है सामने !!! किसके साथ ? क्यों ? कब तक ? - पता नहीं ! पर सरपट दौड़ की तेज़, तीखी आवाज़ से बहुत घबराहट होती है ! प्रश्न डराता है,...