29 अक्टूबर, 2007

कागज़ की नाव




बड़ी लम्बी, गहरी नदी है..
पार जाना है...
तुम्हे भी, मुझे भी...
नाव तुम्हारे पास भी नहीं,
नाव मेरे पास भी नहीं...
जिम्मेदारियों का सामान बहुत है...
बंधू,
बनाते हैं एक कागज़ की नाव...
अपने-अपने नाम को उसमे डालते हैं॥
देखें,
कहाँ तक लहरें ले जाती हैं...
कहाँ डगमगाती है कागज़ की नाव...
और कहाँ जा कर डूबती है!
निराशा कहाँ है?
किस बात में है?
कागज़ की नाव को तो डूबना ही है...
पर जब तक न डूबे...
देखते-देखते वक़्त तो गुज़र जायेगा...
और जब डूबे...
तो दो नाम एक साथ होंगे....

11 टिप्‍पणियां:

  1. ye daulat bhi le lo,
    ye sohrat bhi le lo,
    bhale chhin lo mujhe se meri jawani
    magar mujhko lauta do,
    bachpan ka sagar
    ye kagaj ke kashti
    wo barish ka pani..............



    di..........ye maine nahi Jagjeet singh ne likha hai............[:P]

    जवाब देंहटाएं
  2. बंधू,
    बनाते हैं एक कागज़ की नाव...
    अपने-अपने नाम को उसमे डालते हैं॥
    देखें,
    कहाँ तक लहरें ले जाती हैं...
    कहाँ डगमगाती है कागज़ की नाव...

    बहुत सुन्दर रचना

    जवाब देंहटाएं
  3. रचना में सारे सकारात्मक विकल्प खुले है.जीवन की हर घटना को इसी सकारात्मक -भाव से देखें तो............ दुःख काहे को होय

    जवाब देंहटाएं
  4. कल 13/12/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  5. ारुन जी ने सही कहा। सुन्दर रचना। शुभकामनायें।

    जवाब देंहटाएं
  6. aur jab dube..
    to do naam sath sath honge....

    in shabdon ne sabhi bhawon ko samet liya...

    जवाब देंहटाएं
  7. देखते-देखते वक़्त तो गुज़र जायेगा...
    और जब डूबे...
    तो दो नाम एक साथ होंगे....
    सहजीविता का यह भाव तो भले ही एक पल की उम्र लिए हो भव सागर पार करा सकता है

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत सुन्दर रचना दी... वाह!
    सादर...

    जवाब देंहटाएं
  9. जब जिंदगी कि विडंबनाओं से पार पाने की कोशिशें जरूरी हो जाती हैं तो किसी का साथ कुछ हद तक कोशिशों को आसान तो कर ही देता है !

    सुंदर रचना !

    जवाब देंहटाएं
  10. शुभ प्रभात दीदी
    पुराना और खुशबूदार चाँवल
    की मानिंद प्यारी और पसंदीदा रचना

    सादर

    जवाब देंहटाएं

एहसास

 मैंने महसूस किया है  कि तुम देख रहे हो मुझे  अपनी जगह से । खासकर तब, जब मेरे मन के कुरुक्षेत्र में  मेरा ही मन कौरव और पांडव बनकर खड़ा रहता...