09 दिसंबर, 2007

माँ , तुमने क्या किया !


कदम - कदम पर तुमने
अच्छी बातों की गांठ
मेरे आँचल से बाँधी .....
'उसमे और तुममे फर्क क्या रह जायेगा ?'
ऐसा कह कर ,
अच्छे व्यवहार की आदतें डाली .
मुझे संतोष है इस बात का
कि ,
मैंने गलत व्यवहार नहीं किया ,
और अपनी दहलीज़ पर
किसी का अपमान नहीं किया ,
पर गर्व नहीं है ....................
गर्व की चर्चा कहाँ ? और किसके आगे ?
हर कदम पर मुँह की खाई है !
अपनी दहलीज़ पर तो स्वागत किया ही
दूसरे की दहलीज़ पर भी खुद ही मुस्कुराहट बिखेरी है !
मुड़कर देख लिया जो उसने , तो जहे नसीब ....!!!
पीछे से तुमने मेरी पीठ सहलाई है .
खुद तो जीवन भर नरक भोगा ही
मुझे भी खौलते तेल मे डाल दिया
माँ , तुमने ये क्या किया !
मेरे बच्चे मेरी इस बात पर मुझे घूरने लगे हैं
क्या पाया ?...इसका हिसाब -किताब करने लगे हैं ,
अच्छी बातों की थाती थमा
तुमने मुझे निरुत्तर कर दिया
आँय - बाँय - शांय के सिवा कुछ नहीं रहा मेरे पास
.................हाय राम ! माँ , तुमने ये क्या किया !...............

7 टिप्‍पणियां:

  1. कविता तो अच्छी है पर ज़माने कि दुश्वारियों, गंदगियों कि लिए माँ को दोषी ठहराना उचित नहीं जान पड़ता.

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  2. जीवन की भौतिकता में आज हर व्यक्ति शामिल है चाहे वह माँ ही क्यों न हो…।
    बहुत सुंदर पंक्तियों का संगम है…।

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  3. खुद तो जीवन भर नरक भोगा ही
    मुझे भी खौलते तेल मे डाल दिया
    माँ , तुमने ये क्या किया !'
    हकीकत बयाँ कर दी।

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  4. माँ मत हो नाराज कि मैंए खुद ही मैली की न चुनरिया...(नीरज)

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