05 मई, 2010

समर्पण !


समर्पण .... कैसा?
किसको?
समर्पण का आधार
कभी भी शरीर नहीं होता
शरीर !
तो कोई भी पा लेता है
आत्मा !
- अमर है
समर्पण का स्रोत है
गंगा वहाँ से निकलती है
...
गंगा में नहाना
और गंगा को समझना
- दो अलग बातें हैं ...

गंगा में नहाकर
ना तुम पवित्र होते हो
ना गंगा मैली होती है
... मृत , तुक्ष शरीर को लेकर
तुम्हारी संतुष्टि
क्षणिक है,
वहम है

आत्मा का समर्पण
रेगिस्तान में भी
रिमझिम बारिश का एहसास देता है
जो इस बारिश से अनभिज्ञ रहा
वहाँ कैसा समर्पण?

51 टिप्‍पणियां:

  1. ganga me nha kar n tum pvitr hote ho n wo melee hotee hai ..wwah kya khoob kahee hai aapne ..in do panktiyon me jeevan mulya sthapit kar diye ..badhai..!

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  2. sahi likha hai mam shareer ko to koi bhi hasil kar sakta hai,balpurawak ya adhikar se par,aatma ko to bas prem aur samrpan se hi jeeta ja sakta hai........gahre bhav ko rakhte hain aapke sabd sabd ...

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  3. sahi likha hai mam shareer ko to koi bhi hasil kar sakta hai,balpurawak ya adhikar se par,aatma ko to bas prem aur samrpan se hi jeeta ja sakta hai........gahre bhav ko rakhte hain aapke sabd sabd ...

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  4. aah maa'm!
    kitni gahri baat avivaykt kiya hai aapne...
    aatma,sharir or jevan in sabke baare me mera gyan to uthala hi hai...pr aapki ye kavita bahut kuch sikhla gayi!
    aadar-
    #ROHIT

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  5. शरीर !
    तो कोई भी पा लेता है
    आत्मा !
    -अमर है
    समर्पण का स्रोत है
    गंगा वहाँ से निकलती है
    अत्यंत सादगी से कही लाजवाब बातें
    बेहतरीन

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  6. गंगा को लेकर कितनी गहरी बात की है आपने! ये शब्दों की गहराई जैसे सब कह जाती है . गंगा में नहाना और समझना दो अलग बातें है...सच में ,लेकिन नहाने का वहम ही तो हमें क्षणिक सुख जरूर देता है.. ..

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  7. बहुत सुन्दर लिखा है आपने ... ये सच है कि शारीरिक समर्पण तो बस एक बाहरी क्रिया है ... असली समर्पण तो भावनात्मक समर्पण है ... एक मन का दुसरे मन से जुडना है ...

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  8. शब्द व्यंजना की बात करेँ तो स्पष्ट है ; समर्पण अत्यन्त पवित्र शब्द है।परस्पर समभाव वाञ्छित है। आत्म का परम्आत्म के प्रति समर्पण सरीखी वांछना।मन और अत्मा कहीँ भी नहाने से निर्मल नहीँ होते।सत्य का योग ही इन्हे निर्मल करता है। इसी लिए आदिकाल से सत्य की खोज जारी है।हमारा अपना सत्य तो दैहिक ही है ना!हर संसारी का अपना सत्य है जिस मेँ दंभ,कपट,ईर्ष्या,छल, प्रपंच,आडम्बर और न जाने क्या क्या अपसंस्कार हैँ।खैर! कविता अच्छी है। बधाई हो!

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  9. दैहिक स्तर पर समर्पण है तो क्या समर्पण है
    और दैहिक स्तर पर शील है तो क्या शील है

    शरीर तो केवल कुछ दिन ही पराक्रम दिखा सकता है

    सच्चा पराक्रम तो आत्मिक स्तर पर होता है

    हमें यही सिखाया गया है

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  10. आत्मा-अमर है समर्पण का स्त्रोत है,गंगा वहां से निकलती है..
    काश सब ये समझ लेते..
    बहुत बढ़िया दीदी..!

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  11. gazab ke bhav bhar diye hain...........sachcha samarpan to wo hi hai magar itna koi samajh nahi pata sirf tan ke samarpan ko hi yahan samarpan mana jata hai aatma tak to koi pahuch hi nahi pata.

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  12. आत्मा का समर्पण रेगिस्तान में भी रिमझिम बारिश का एहसास देता है !
    *****************************************************
    अत्यंत खूब माँ !
    बहुत सुन्दर रचना !
    धन्यवाद !

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  13. आत्मा को नही छू पाए तो शरीर की छुअन का कोई अर्थ नही ।
    रचना गहन प्रेम को अभिव्यक्त करती है ।

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  14. जीवन का महत्व तभी है जब वह किसी महान ध्येय के लिये समर्पित हो । यह समर्पण ज्ञान और न्याययुक्त हो ।

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  15. रशिम जी बहुत ऊंची बात कह दी आप ने आज अपनी इस कविता मै, बहुत खुब, मेरे पास इअतने शव्द ही नही की इस रचना की तारीफ़ भी कर सकूं.बॊने पडते है हमारी तारीफ़ के शव्द भी.
    धन्यवाद

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  16. आत्मा
    अमर है
    समर्पण का स्रोत है
    गंगा वहाँ से निकलती है ....

    बहुत खूब !!

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  17. कितनी सुन्दर भावना है समर्पण की ....रेगिस्तान में भी बारिश का अहसास....बहुत बढ़िया..सच ये शरीर तो तुच्छ है..

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  18. prem, rishto ko samajhne ke sahi star ko aapne kitni sahajta se abhivyakt kiya hai... kitni sadharan lekin bhavpoorn, arthpurn panktiya hain...."ganga ko samajhna aur ganga me nahana.. do alag baate hain"... behad samvedansheel kavita...

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  19. मम्मी .... आखिरी पंक्तियों ने दिल को छू लिया...

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  20. कविता का अंतिम खंड सर्वश्रेष्ठ लगा मुझे , समर्पण में
    आभ्यंतर की महिमा को रेखांकित करता हुआ ! आभार !

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  21. गंगा में नहाना और गंगा को समझना दोनों अलग अलग बातें हैं ! भावनाओं की कार्य शाला है आपका ब्लॉग ! बड़ी सार्थक है आपकी खोज ! बधाई स्वीकारें !

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  22. जो इस बारिश से अनभिज्ञ रहा
    वहाँ कैसा समर्पण
    इस बारिश के बिना समर्पण कोरा ढोंग ही हो सकता है.
    सुंदर भावाभिव्यन्जना

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  23. Ye rachna Spritual lagi...ganga ko samajhna aur nahana jaisi baat dil ko bhaai....Practically samarpan ki dikhawa aur vyapaar jaari hain...aisi samajh yada-kada paai jaati hain

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  24. समर्पण
    जहाँ मन नहीं होता
    विचार नहीं होते
    होता है मौन
    सिर्फ मौन .............

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  25. रश्मि जी
    आपने ब्लोग की नई छवि अच्छी लगी परंतु पहले वाली ज्यादा अच्छी लगती थी आपके एहसास के मन्दिर के दियों से सुकून मिलता था .........

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  26. आत्मा का समर्पण
    रेगिस्तान में भी
    रिमझिम बारिश का एहसास देता है
    जो इस बारिश से अनभिज्ञ रहा
    वहाँ कैसा समर्पण?

    Sach ko prabhavi shabd diya hai aapne. Bahut sundar.

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  27. rashmi ji,
    bahut gahri soch, ''gangaa mein nahana aur gangaa ko samajhna, do alag baaten hain'' jiwan ka satya hai aur is satya ko samajhna jitna zaroori hai mahsoos karna bhi utna hin. uttam prastooti, badhaai sweekaren.

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  28. Hi..

    Agar aatma sang nahi ho,
    to wo kahan 'samarpan' hai..
    Tan-man aur Aatma ka arpan hi sahi 'Smarpan' hai..

    Sahi kahti hain aap.. Tan aur aatma dono ka arpan hi purn samarpan hai..

    DEEPAK..

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  29. कविता ..पूरो पढ़ी भी ना थी ...की मुह से ..वाह निकली ....गज़ब की रचना है ......बहुत गहरा सर्जन है .......कुछ सीखने को भी मिला ....धन्यबाद

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  30. आत्मा का समर्पण रेगिस्तान में भी बारिश का आनंद देता है ...जो इससे अनभिज्ञ रहा ...वहां कैसा समर्पण ...

    उससे कैसा समर्पण ...

    निःशब्द ...

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  31. Manik jee ke baat se sahmat hoon..:) kavita kuchh jayda gahree hai.........:) mere jaise aam pathak k samajh se thora upar!!.......

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  32. Manik jee ke baat se sahmat hoon..:) kavita kuchh jayda gahree hai.........:) mere jaise aam pathak k samajh se thora upar!!.......

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  33. समर्पण का आनंद बस समर्पित हो कर ही लिया जा सकता है!बहुत ही बढ़िया प्रस्तुति आपकी!

    कुंवर जी,

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  34. रश्मि प्रभा जी,
    आपकी अभिव्यक्तियाँ लाजवाब हैं. जितनी भी बड़ाई करें काम है. 'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर हम प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटती रचनाओं को प्रस्तुत कर रहे हैं. आपकी रचनाओं का भी हमें इंतजार है. hindi.literature@yahoo.com

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  35. समर्पण ही पूर्णता देता है, एक गहरी तृप्ति, एक अनकहा एहसास महसूस होता है ...
    सही बात है - समर्पण का आनंद बस समर्पित हो कर ही लिया जा सकता है...ILu...!

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  36. didi pranam is kavita me aap ka alag hi roop nazar aaya, vakai ek bodh karane wali rachna hai ;; samapran '' ek line prabhav wali hai.sadhwad
    saadar

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  37. आपके ब्लॉग का नया रूप काफी प्रभावशाली
    है ,रचना का तो जवाब नहीं ,सब कुछ sundar.

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  38. समर्पण ... सच में कहने और समर्पित होने में बहुत फ़र्क होता है ... बहुत गहरी बात लिखी है आपने ...

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  39. वाह, समर्पण सिखलाती कविता..
    गंगा मे नहाकर,
    न तुम पवित्र होते हो
    न गंगा मैली होती है...

    वाह, बहुत खूब...

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  40. आत्मा का समर्पण रेगिस्तान में भी रिमझिम बारिश का एहसास देता है !

    बहुत सार्थक बात कही आपने !
    समर्पण विचारों में है .....वास्तव में गंगा को समझ पाने वाले कम ही होते हैं ...बाकी तो बस डुबकी भर लगा लेते हैं ...:)

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  41. "THY BODY IS A TEMPLE IN WHICH THY GOD RESIDES AS THY SOUL ;
    THY MIND IS A PRIEST WHO IS THERE TO SERVE YOUR BODY & SOUL ;
    THY
    JUST A VIEWER.."
    see clearly-without distiguishing one with the other..Are they not but varios forms of the supreme one..???

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  42. रचना पूर्णतः समर्थ है ये बताने में कि समर्पण आत्मिक होता है, ये संभव हुआ है आपके शब्द कौशल से ....

    प्रणाम के साथ शुभकामनाएं.....

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  43. आत्मा का समर्पण
    रेगिस्तान में भी
    रिमझिम बारिश का एहसास देता है
    जो इस बारिश से अनभिज्ञ रहा
    वहाँ कैसा समर्पण?
    ...Aatmik samparpan ko gahre arth aur chitran ke saath gambhirtapurvak aapne paribhasit kiya hai...
    Behtreen rachne ke liye bahut dhanyavaad.

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  44. saadaa saadaa, aatmik kathya, adbhut shabdon me....ye jaadoo sirf aap kar sakti hain:)

    Pranam

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  45. wah.... right defination of samarpan

    really amazing]

    " gurukary sarvopari he "

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दौड़ जारी है...

 कोई रेस तो है सामने !!! किसके साथ ? क्यों ? कब तक ? - पता नहीं ! पर सरपट दौड़ की तेज़, तीखी आवाज़ से बहुत घबराहट होती है ! प्रश्न डराता है,...