30 नवंबर, 2010

गुटुक !



ये बनाया मैंने बांहों का घेरा
दुआओं का घेरा
खिलखिलाती नदियों की कलकल का घेरा
मींच ली हैं मैंने अपनी आँखें
कुछ नहीं दिख रहा
कौन आया कौन आया
अले ये तो मेली ज़िन्दगी है ...

ये है रोटी , ये है दाल
ये है सब्जी और मुर्गे की टांग
साथ में मस्त गाजर का हलवा
बन गया कौर
मींच ली हैं आँखें
कौन खाया कौन खाया
बोलो बोलो

नहीं आई हँसी
तो करते हैं अट्टा पट्टा
हाथ बढ़ाओ .....
ये रही गुदगुदी
कौन हंसा कौन हंसा
बोलो बोलो बोलो बोलो
जल्दी बोलो
मींच ली हैं आँखें मैंने
गले लग जाओ मेरे
और ये कौर हुआ - गुटुक !

32 टिप्‍पणियां:

  1. मींच ली हैं आँखें मैंने
    गले लग जाओ मेरे
    और ये कौर हुआ - गुटुक !

    कोमल अहसासों को जीवंत करते शब्‍द अनमोल प्रस्‍तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह वाह !
    इनसे निर्मल कोई नहीं , इस रचना से बढ़ कर कोई नहीं ! हार्दिक शुभकामनायें रश्मि जी

    जवाब देंहटाएं
  3. "मींच ली हैं आँखें मैंने
    गले लग जाओ मेरे
    और ये कौर हुआ - गुटुक !
    मीच ली हैं आँखें मैंने
    गले लग जाओ मेरे
    और ये कौर हुआ - गुटुक !"
    चाची को देखा था छोटे भाई को खिलाते हुए.आत्मीयता से भरपूर है और आम जीवन से उठाकर इस बिम्ब को आपने गजब का विस्तार दिया है.अच्छी रचना से रूबरू कराने के लिए आभार.

    जवाब देंहटाएं
  4. didi prnam !
    kavita padhte padhte chehre pe swahtah hi muskaan aa gayi , behad pyaari , masoom kavita ke liye aabhar
    sadhuwad .

    जवाब देंहटाएं
  5. इस रचना को पढकर फिर से जी करता है बन जाऊं एक छोटा सा बच्चा :)

    जवाब देंहटाएं
  6. आ हा मीठी मीठी………………बहुत ही सुन्दर्।

    जवाब देंहटाएं
  7. वाह ! क्या पारदर्शिता, निर्मलता है... अभिनन्दन

    जवाब देंहटाएं
  8. सुन्दर एह्साओं की रचना... बाल मन को खूब समझा है आपने.. जीवन का सबसे सुखद क्षण ...

    जवाब देंहटाएं
  9. :) :) :) :) :)
    - ऐसा ही मुस्कान बना रहा पूरी कविता पढ़ते समय...बहुत बहुत प्यारी सी कविता..
    और बच्चे का फोटो भी कितनी क्यूट है :) :)

    कुछ और स्माइली ले लीजिए - :) :) :)

    जवाब देंहटाएं
  10. हा हा हा...नटखट सी कविता..खो गया कहीं बचपन में....
    कितने जतन और उसमे छुपा कितना प्यार...


    मुट्ठी भर आसमान...

    जवाब देंहटाएं
  11. आपकी रचना ने तो अपना बचपन और अपने बच्चों का बचपन याद दिला दिया .....मैं बच्चों को खिलाती थी यह कह कर की ये चिड़िया का ..ये बन्दर का ..ये शेर का ....हा हा ....और बच्चे चिड़िया बन्दर बन कर खा लेते थे ...

    सुन्दर और मन को प्रफ्फुलित करने वाली अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  12. Bahut pyari, nirmal, maasoom, sunder, rachna! mazaa aa gaya pad kar... din ban gay!!!!

    जवाब देंहटाएं
  13. alle....shona ne itta sara kha liya....abhi bua ka hissa baaki hai....na pahle akkad..bakkad :-) I want to growup once again :-)

    जवाब देंहटाएं
  14. ह्म्म्म...लगता है कल मां ने खिला दिया है गुटक ...:)
    और हम अपने बच्चों को भी ऐसे ही खिला दिया करते हैं ...
    पीढ़ी दर पीढ़ी नहीं बदलती माँ और माँ का खाना खिलाना ...
    बच्चों के बचपन और मां का वात्सल्य एक साथ है कविता में ...!

    जवाब देंहटाएं
  15. बहुत प्यारी रचना ... सच ऐसा ही करना पड़ता है ..

    जवाब देंहटाएं
  16. seedhi ,saral aur sunder bhawon se bhari hui kavita,bahut achchi lagi .

    जवाब देंहटाएं
  17. बस ऐसे ही उतरी कविता मन के अन्दर…… जैसे अम्मा के हाथों का एक कौर हो…… गुटुक !

    टिप्पणी के लिये मेरा शब्दकोष बहुत निर्धन है। बस नमन प्रेषित है।

    जवाब देंहटाएं
  18. गुटक ने सारे विषाद क्षण भर में दूर कर दिए...बहुत प्यारी राजदुलारी सी रचना...

    नीरज

    जवाब देंहटाएं
  19. वाह पढ़ कर कुछ पुरानी याद ताजा हो गई पर काश रश्मि जी की आज के बच्चे ऐसे करने से खाना खा लेते

    जवाब देंहटाएं
  20. रश्मि जी बहुत ही प्यारी कविता. सुंदर जज्बात.

    .

    उपेन्द्र

    सृजन - शिखर पर ( राजीव दीक्षित जी का जाना )

    जवाब देंहटाएं
  21. छोटे बच्चों की प्यारी -प्यारी बातों को बड़े सुन्दर ढंग से पिरोया है ,दोनों कविताओं में.पढ़ कर अच्छा लगा.

    जवाब देंहटाएं

दौड़ जारी है...

 कोई रेस तो है सामने !!! किसके साथ ? क्यों ? कब तक ? - पता नहीं ! पर सरपट दौड़ की तेज़, तीखी आवाज़ से बहुत घबराहट होती है ! प्रश्न डराता है,...