08 मई, 2012

क्रम जारी है ...


'तब तो बना दे तू भोले को हाथी ....'
खेल से परे एक काल्पनिक काबुलीवाला
हींग टिंग झट बोल में बस गया ...
जब कोई नहीं होता था पास
अपनी नन्हीं सी पोटली खोलती
काबुलीवाले को मंतर पढके बाहर निकालती
और पिस्ता बादाम मेरी झोली में
सच्ची मेरी चाल बदल जाती !
फिर मेरे खेल में मेरे सपनों का साथी बना अलीबाबा
और शून्य में देखती मैं 40 चोर
'खुल जा सिम सिम ' का गुरुमंत्र लेते
बन जाती अलीबाबा
और ..... कासिम सी दुनिया
रानी की तरह मुझे देख
रश्क करती !
कभी कभी आत्मा कहती -
यह चोरी का माल है
पर चोरों से हासिल करना हिम्मत की बात है
आत्मा को गवाही दे निश्चिन्त हो जाती ...
पर कासिम पीछा करता
चोर मुझे ढूंढते ...
जब बचना मुश्किल लगता
तो शून्य से लौट आती !
फिर फिल्मों में प्रभु का करिश्मा देखा
कड़ाही खुद चूल्हे पर
सब्जी कट कट कट कट कटकर
कड़ाही में ....
आटा जादू से गूँथ जाता
फिर लोइयां , फिर पुरियां
इतना अच्छा लगता
कि मैं रोज भगवान् को मिसरी देकर कहती
ऐसा समय आए तो ज़रा ध्यान रखना
और सोचती ...
ऐसा होगा तब सब मुझे ही काम देंगे
और मैं कमरे की सांकल लगा प्रभु के जादू से
बिना थके
मुस्कुराती बाहर निकलूंगी
सबकी हैरानी सोचकर बड़ा मज़ा आता था ....
फिर आई लाल परी
और मैं बन गई सिंड्रेला
चमचमाते जूते
बग्घी ... और राजकुमार !
घड़ी की सुइयों पर रहता था ध्यान
१२ बजने से पहले लौटना है ...
मेरी जूती भी रह जाती सीढियों पर
फिर ...
राजकुमार का ऐलान
और मेरा पैर जूते में फिट !
....
ज़िन्दगी के असली रास्ते बुद्ध की तरह नागवार थे
महाभिनिष्क्रमण मुमकिन न था
तो मुंगेरी लाल से सपने जोड़ लिए
पर एक बात है
मुंगेरी लाल की तरह मैं नहीं हुई
मेरे हर सपने मुझे जो बनाते थे
वे उतनी देर का सच होते थे
मेरे चेहरे पर होती थी मुस्कान
और भरोसा -
कि मैं कुछ भी कर सकती हूँ !
...
सपनों का घर इतना सुन्दर रहा ...
इतना सुन्दर है
इतना ------- कि ...
काँटों पर फूल सा एहसास नहीं हुआ
बल्कि कांटे फूल बन जाते रहे
और मैं शहजादी ...
मुझे मिली मिस्टर इंडिया की घड़ी
जिसे पहन मैं गायब होकर मसीहा बन गई
मैं जिनी बनी , मैं जिन्न बनी
पूरी दुनिया की सैर की
सच कहूँ - करवाई भी ....
सबूत चाहिए ?
... हाहाहा , अब तक आप मेरे साथ सैर ही तो कर रहे थे !
क्रम जारी है ...









35 टिप्‍पणियां:

  1. शब्दो की दुनिया मे दीदी के साथ सैर करना ...........:) एक खूबसूरत दुनिया दिख रही है, और खुशी का आलम मिलेगा वो अलग.........

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  2. हा हा हा...!!! सैर करके हमें भी बहुत मजा आया !!!

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  3. ज़िन्दगी के असली रास्ते बुद्ध की तरह नागवार थे
    महाभिनिष्क्रमण मुमकिन न था
    और भरोसा(मेरा) -
    कि मैं(आप) कुछ भी कर सकती हूँ(हैं) !
    अब तक आप(मैं) मेरे(आपके) साथ सैर ही तो कर रहे(रही) थे(थी)
    सब कृत्रिम नहीं हकीकत लग रहा था .... जीने का सहारा ,यही तो सच है .... है न .... ??

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  4. ज़िन्दगी के असली रास्ते बुद्ध की तरह नागवार थे
    महाभिनिष्क्रमण मुमकिन न था
    और भरोसा(मेरा) -
    कि मैं(आप) कुछ भी कर सकती हूँ(हैं) !
    अब तक आप(मैं) मेरे(आपके) साथ सैर ही तो कर रहे(रही) थे(थी)
    सब कृत्रिम नहीं हकीकत लग रहा था .... जीने का सहारा ,यही तो सच है .... है न .... ??

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  5. :-)

    बड़ा सुख है.....इस सैर में...बच्चा बन जाने में......

    अब आगे कहाँ?????

    सादर.

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  6. आपका यह रंग पसंद आया ....
    अभिवादन !

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  7. मेरे हर सपने मुझे जो बनाते थे
    वे उतनी देर का सच होते थे
    मेरे चेहरे पर होती थी मुस्कान
    और भरोसा -
    कि मैं कुछ भी कर सकती हूँ !

    बड़े अच्छे से कही मन कि बात दी ... ...
    रोचक भी और शिक्षाप्रद भी ...!!

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  8. ख़्वाबों की दुनियां की सैर....बहुत रोचक...आभार

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  9. फिर फिल्मों में प्रभु का करिश्मा देखा
    कड़ाही खुद चूल्हे पर
    सब्जी कट कट कट कट कटकर
    कड़ाही में ....
    आटा जादू से गूँथ जाता
    फिर लोइयां , फिर पुरियां
    इतना अच्छा लगता ,....

    रचना पढ़ कर आनंद आया,....

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  10. सचमुच बहुत अच्छा लगा आपके साथ सैर करके....

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  11. अरे वाह ! आपके साथ जादू की दुनिया की सैर अलग अलग किरदारों के रूप में करना कितना खुशगवार था ! काश यह सफर चलता ही रहता और हम अलादीन के मैजिक कारपेट पर बैठ हर पल नये नये मंज़र देखते रहते ! बहुत आनंद आया इस रचना को पढ़ कर ! बधाई स्वीकार करें !

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  12. दीदी,
    अल्टीमेट!! आज बस चरण स्पर्श की अनुमति दीजिए.. एक ऎसी दुनिया में पहुंचा दिया आपने जो हमारी दुनिया की बदसूरती से बिलकुल अलग है.. लौटने का जी नहीं चाहता!!
    समय की सवारी करते हुए समय से आगे निकल जाने का ये सफर... बस आँखें बंदकर अनुभव करने योग्य!!

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  13. वाकई शानदार रही सैर...एक जादुई दुनिया सी चाँद तारों के आंचल सी सुमधुर संगीतमय सैर और वो भी दीदीजी के साथ....!
    ये तिलस्म से क्या कम है कि मै चलता रहा उम्र भर
    ...और लोग ठहरते गये जगह-जगह...!

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  14. सच ही स्वप्नलोक की सैर करा दी आपने :)

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  15. अंतिम पंक्तियाँ पढते ही मुस्कान तैर गयी……इस सैर का अपना ही मज़ा था।

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  16. बचपन के गलियारे से होते हुये मुंगेरीलाल के सपनों तक की सैर ...बहुत सुंदर प्रस्तुति ...

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  17. आपके साथ सैर करने में मज़ा आया .

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  18. करे जा रहे हैं सैर आसमानी :)

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  19. वाह क्या खूब रही सैर .........

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  20. 'मेरे हर सपने मुझे जो बनाते थे
    वे उतनी देर का सच होते थे'
    पढ़ते हुए लगा भी कि सचमुच सच होते होंगे वे सपने:)
    क्रमवत कराते रहिये सैर!
    सादर!

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  21. आप के साथ आप के ही शब्दों और भावों की दुनिया में सैर करना बहुत अच्छा लगा...मजा़ आया ..आभार..रश्मि जी..

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  22. क्‍या बात है !!! ये जादू से शब्‍द और सैर जादुई संसार की .. लाज़वाब है आपकी कलम का जादू ..

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  23. बहुत बेहतरीन रचना....
    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।

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  24. आपका लेखन...अद्भुत है...सैर करवाते रहिये...

    नीरज

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  25. आप तो हर बार एक नयी दुनिया की सैर कराती है..... हम जिसे देख नही पाते.. आप वो सब अपने शब्दों से दिखाती है....

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  26. वाह - एक्सेलेंट | हाँ - सच में - यह सैर शायद हम में से हर एक ने की है - पहले अकेले भी, और आज आपके साथ भी |

    इस परिस्तान की खूसूरत सैर के लिए आभार रश्मि जी :)

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  27. आपके साथ एक बार फिर सैर कर ली बचपन की ...आभार

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  28. सैर ने सब कुछ भुला दिया है...

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