04 अगस्त, 2012

इतना आसान नहीं !!!





कभी आप कभी हम
सब अपने अपने अनुभवों की खाद से
अपने पौधों को सुन्दर बनाने की धुन में होते हैं
इस बात से बेखबर
कि प्राकृतिक और कृत्रिम हवाओं का भी
अपना एक असर होता है
और पौधों का एक अपना अनुभव
जहाँ हम कहते रहते हैं - कि
तुम्हारे भले के लिए यह खाद दे रहे
.....
जबकि पौधों के संग प्रकृति और कृत्रिम की
अपनी अलग सांठ गाँठ होती है
जिसे न हम देख पाते हैं
न समझ पाते हैं !
...
प्रकृति की चीख , कृत्रिम उजबुजाहट
इसके मध्य -
पौधों के रंग ही नहीं
ढंग भी बदल गए हैं ...
उनका अनुभव उनसे कुछ और कहता है
जिसे हमें समझना होगा
और समझकर पानी और खाद देना होगा !
बेज़रूरत , बेसमय हमारा ख्याल
उनको मुरझा ही देता है
सम्मान के लिए
किये के प्राप्य के लिए
उनकी असामयिक माँग
और सामयिक माँग -
दोनों के बीच संतुलन बनाना होगा ...
और निःसंदेह
यह इतना आसान नहीं !!!

38 टिप्‍पणियां:

  1. सही कहा आपने दीदी ....संतुलन बनाना आसन नहीं हैं ..ये एक ऐसा मार्ग हैं जिस पर हम सब अपनी अपनी समझ के अनुरूप चलते हैं

    जवाब देंहटाएं
  2. बेज़रूरत , बेसमय हमारा ख्याल
    उनको मुरझा ही देता है
    सम्मान के लिए
    किये के प्राप्य के लिए
    उनकी असामयिक माँग
    और सामयिक माँग -
    दोनों के बीच संतुलन बनाना होगा ...
    और निःसंदेह
    यह इतना आसान नहीं !!!
    बिलकुल सही ...बही गहन भाव ..बहुत सुन्दर

    जवाब देंहटाएं
  3. बेज़रूरत , बेसमय हमारा ख्याल
    उनको मुरझा ही देता है
    बहुत ही गहन भाव इन पंक्तियों के ...
    यह इतना आसान नहीं ... जैसा आपने कहा आपकी बात से सहमत हूँ ... आभार

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुंदर ढंग से बात कही है पौधों को उदाहरण बना कर बात किसी दूसरी ओर भी इंगित करती है ये मेरी अपनी सोच है या फिर जो मैं समझ रही हूँ वह भी इसमें निहित है.

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर ढंग से बात कही है पौधों को उदाहरण बना कर बात किसी दूसरी ओर भी इंगित करती है ये मेरी अपनी सोच है या फिर जो मैं समझ रही हूँ वह भी इसमें निहित है.

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुंदर ढंग से बात कही है पौधों को उदाहरण बना कर बात किसी दूसरी ओर भी इंगित करती है ये मेरी अपनी सोच है या फिर जो मैं समझ रही हूँ वह भी इसमें निहित है.

    जवाब देंहटाएं
  7. बिल्कुल. पौधे छोटे हैं तो क्या, उनका भी अपना वजूद है.

    जवाब देंहटाएं
  8. प्रकृति की चीख , कृत्रिम उजबुजाहट
    इसके मध्य -
    पौधों के रंग ही नहीं
    ढंग भी बदल गए हैं ...


    अच्छी कविता,गहन भाव, संबंधों में संतुलन निश्चित रूप से कठिन, मगर जरूरत भी. आपकी सोच को नमन

    जवाब देंहटाएं
  9. मेरी समझ में यही आया कि हमे नई पीढ़ी पर अपनी मानसिकता नहीं थोपनी चाहिए...समय के अनुसार सब कुछ बदल चुका है...उनके अपने अनुभव हैं और उनकी सामयिक और असामयिक माँग के बीच संतुलन आवश्यक है जो सचमुच कठिन है|
    एक बार बता दीजिएगा सही अर्थ समझ पाई या नहीं?

    जवाब देंहटाएं
  10. पौध नयी हो या पुरानी संतुलन तो जरूरी होता है तभी जीवन आसान हो सकता है ।

    जवाब देंहटाएं
  11. Rashmi ji...

    Apne anubhav ki khaad se kyon...
    Paudhon ko vraksh banate sab..
    Jo hua, hua kyon, kab, kaise..
    Prashno ka gyaan karate sab...

    Paudhon ko sahaj panapne den...
    Lahlahane de prakriti ke sang...
    Jeevan ke visham dharatal main..
    Badte jaayen patjhad-vasant...

    Sundar bhavnayen...

    Deepak shukla...

    जवाब देंहटाएं
  12. माँ हूँ.....समझ रही हूँ आपके छिपे अर्थों को....
    जूझती हूँ खुद भी अकसर...

    सादर
    अनु

    जवाब देंहटाएं
  13. सम्मान के लिए
    किये के प्राप्य के लिए
    उनकी असामयिक माँग
    और सामयिक माँग -
    दोनों के बीच संतुलन बनाना होगा ...

    सही कहा

    जवाब देंहटाएं
  14. इन्हीं दोनों के बीच तो जीवन बहा जा रहा है।

    जवाब देंहटाएं
  15. सही कहा आपने
    समय के साथ बहुत कुछ बदलता है
    हर पीढ़ी के साथ उसी हिसाब से पेश आना चाहिए जो उनके समय के हिसाब से उपयुक्त और सही हो
    सुंदर सोच !

    जवाब देंहटाएं
  16. पौधों के माध्यम से सुन्दर बात कही है अपने...

    जवाब देंहटाएं
  17. पौधे को बढ़ाने के लिए संतुलित खाद पानी की ज़रूरत होती है उसी तरह संतान पर भी हमेशा अपने विचार नहीं थोप देने चाहिए उचित बढ़ाव के लिए संतुलन ज़रूरी है ... सुंदर प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  18. दोनों के बीच संतुलन होना चाहिए,लेकिन ये इतना आसान कार्य नही,,,,,,

    RECENT POST ...: रक्षा का बंधन,,,,

    जवाब देंहटाएं
  19. बेज़रूरत , बेसमय हमारा ख्याल
    उनको मुरझा ही देता है ....
    बहुत सुन्दर दी...
    सादर.

    जवाब देंहटाएं
  20. समझ सकती हूँ बहुत कठिन है इस संतुलन को बनाये रखना, लेकिन समय के साथ तो चलना ही होगा, बनाना ही होगा इसे... गहन भाव... आभार

    जवाब देंहटाएं
  21. खाद-पानी नहीं थोड़ी सावधानी और निगरानी के साथ सहज भाव से संतान को पलने-बढ़ने दें.

    जवाब देंहटाएं
  22. मत देना उपदेश
    ऐसे बनो वैसे बनो
    देना स्नेह का खाद पानी
    हम अपना फूल खिलायेंगे
    सारी दुनियामे हम अपनी खुशबू
    बिखरायेंगे....
    सुंदर रचना !

    जवाब देंहटाएं
  23. प्रकृति से सामंजस्य आवश्यक है.

    अच्छी कविता, गहन भाव.

    जवाब देंहटाएं
  24. प्राकृति के माध्यम से जीवन के कुछ रहस्य खोले हैं आपने ... बहुत ही लाजवाब रचना ...

    जवाब देंहटाएं
  25. समझकर पानी और खाद देना होगा !
    बेज़रूरत , बेसमय हमारा ख्याल
    उनको मुरझा ही देता है

    यह तो सही है...अपनी सोच को परिष्कृत करते रहना जरूरी है.

    जवाब देंहटाएं
  26. उनकी असामयिक माँग
    और सामयिक माँग -
    दोनों के बीच संतुलन बनाना होगा ...
    और निःसंदेह
    यह इतना आसान नहीं !!!
    SAHI BAAT

    जवाब देंहटाएं
  27. केयरिंग माँ की तरह देखभाल करनी पड़ती है...तभी पौधों को असमय मुरझाने से बचाया जा सकता है...गहन विश्लेषण...

    जवाब देंहटाएं
  28. प्रकृति की चीख , कृत्रिम उजबुजाहट
    इसके मध्य -
    पौधों के रंग ही नहीं
    ढंग भी बदल गए हैं ...
    उनका अनुभव उनसे कुछ और कहता है
    जिसे हमें समझना होगा
    और समझकर पानी और खाद देना होगा !
    बेज़रूरत , बेसमय हमारा ख्याल
    उनको मुरझा ही देता है
    सम्मान के लिए
    किये के प्राप्य के लिए
    उनकी असामयिक माँग
    और सामयिक माँग -
    दोनों के बीच संतुलन बनाना होगा ...
    और निःसंदेह
    यह इतना आसान नहीं !!!..ha sachmuch bahut dhiraj ka kaam hai yah .....
    बेज़रूरत , बेसमय हमारा ख्याल
    उनको मुरझा ही देता है..sahi kahaa aapne ...

    जवाब देंहटाएं
  29. pata nahi meri yah kavita kahaa tak
    aapke is lekh ke anukul hai mujhe nahi maaluum ..fir bhi prstut hai

    ..
    मेरे आँगन में एक हैं गमला

    जिसमे गुलाब का एक पौधा हैं ऊगा

    उसकी जड़ो में मै

    रोज पानी डाला करता हूँ

    जब भी आता हूँ मै लौटकर घर

    झुक झुककर उसकी टहनियां

    मेरे स्वागत में मुझे छूती हैं

    और खिली हुई पंखुरिया

    जाती हैं मेरा मन बहला

    लेकिन यह भी सच हैं

    जब मै काम से चला जाता हूँ बाहर

    वियोग के उस एक दिन में ही

    उसके पत्ते सूखने लगते हैं भीतर भीतर

    बिलकूल उसी तरह तुम्हारे मुख से

    सुने नहीं जब मैंने

    अपने प्रति मृदु वचन

    तन ..मन ..रूह

    सभी निष्प्राण हो गये उसी क्षण

    नहीं कर पाया मै

    तुम्हारी उपेक्षाओं कों सहन

    जड़ सहित उखड़े हुए मुझ वृक्ष के लिये

    दो मिनट के मौन धारण का

    पूरे जंगल के एकांत ने

    आज किया हैं ....आयोजन

    किशोर

    जवाब देंहटाएं
  30. पौधों के माध्यम से दसब कुछ कह दिया आपने
    आभार

    जवाब देंहटाएं
  31. बहुत ही सुन्दर है पोस्ट।

    जवाब देंहटाएं

दौड़ जारी है...

 कोई रेस तो है सामने !!! किसके साथ ? क्यों ? कब तक ? - पता नहीं ! पर सरपट दौड़ की तेज़, तीखी आवाज़ से बहुत घबराहट होती है ! प्रश्न डराता है,...