22 जनवरी, 2013

उसके बाद ?



मैं .... और मैं 
वार्तालाप,प्रलाप 
प्रश्न,प्रश्नोत्तर,निरुत्तर ....
सत्य-असत्य 
पाप-पुण्य 
स्वाभिमान,अभिमान 
सुकर्म,कुकर्म 
.... सबकी दिशाएं मैं के बिंदु से आरम्भ होती हैं !
पेड़,पहाड़,धरती,आकाश,वायु,जल ...
एक विस्तार है 
एक विषय है 
चयन मैं का ....
मैं से निर्धारण न हो 
तो सफलता की गुंजाइश 'ना' के बराबर . 
........
गुंजाइश हो भी तो भी 
आत्मिक,मानसिक,दिमागी उथल-पुथल 
कंक्रीट बिछाते रहते हैं 
तोड़-फोड़,निर्माण का क्रम अनवरत 
.... जब तक जीवन - तब तक दृश्य प्रश्न 
परोक्ष-अपरोक्ष उभरते हैं,मिटते हैं 
सही-गलत समय की परिभाषा है 
जिसे किसी भी हाल में हम तय नहीं कर सकते 
मैं ......... समय के हाथ में है 
तुम कह सकते हो 
'जहाँ हो - वहीँ रहो'
पर समय मैं के साथ खड़ा 
कूद जाने को बाध्य कर सकता है 
अन्याय का विरोध मान्य है 
सही भी है 
पर विरोध करने पर मृत्यु का पुरस्कार मिले 
तो मैं 
हम को क्या सलाह देगा 
यह मैं ही समझ सकता न !
..........................
...............................
......................................
यह प्रक्रिया आम है 
दिनचर्या है 
थकान है 
परिणाम - मूक सोच !
सह जाना सही है 
चिल्लाना सही है 
या कानून की मदद ?
....
50 की उम्र रेखा पार करके 
मैं सच में नहीं समझ सकी 
फैसला कौन लेगा -
मैं,मैं,मैं या ............हम ?
चुप्पी सही या चीख ?
खुद पर कुछ सह लेना असहज होकर भी 
सहज है 
पर बच्चे और अपने ?
उस आंधी में तय नहीं होता 
कि तेज हवाएं खामोश हो जाएँगी 
या खामोश कर देंगी 
..........
उसके बाद ?

35 टिप्‍पणियां:

  1. फैसला कौन लेगा -
    मैं,मैं,मैं या ............हम ?
    चुप्पी सही या चीख ?
    खुद पर कुछ सह लेना असहज होकर भी
    सहज है
    पर बच्चे और अपने ?
    उस आंधी में तय नहीं होता
    कि तेज हवाएं खामोश हो जाएँगी
    या खामोश कर देंगी
    ..........
    उसके बाद ?

    जवाब देंहटाएं
  2. पर बच्चे और अपने ?
    उस आंधी में तय नहीं होता
    कि तेज हवाएं खामोश हो जाएँगी
    या खामोश कर देंगी
    ..........
    उसके बाद ?


    उसके बाद
    मैं विराम की अवस्था से
    वापस आयेगा
    अपने स्वरूप में
    जहाँ "मै" अहम का
    सूचक नही होगा
    समग्रता का सूचक बन
    सब अपना ही
    निज स्वरूप महसूसेगा
    और ये होगी
    "मै" की "मैं " विलीनता
    मगर यहाँ तक पहुँचने के लिये
    "मै" के कंटकाकीर्ण जंगलों से
    गुजरना भी जरूरी होता है
    इसलिये
    बहने दो नियति को
    विराम से पहले

    जवाब देंहटाएं
  3. उस आंधी में तय नहीं होता
    कि तेज हवाएं खामोश हो जाएँगी
    या खामोश कर देंगी
    ..........
    उसके बाद ?
    मैं भी निरुत्तर हूँ ...
    प्रतीक्षा कर लें .......
    शायद ,समय दे जबाब !!

    जवाब देंहटाएं
  4. खुद पर कुछ सह लेना असहज होकर भी
    सहज है
    पर बच्चे और अपने ?
    उस आंधी में तय नहीं होता
    कि तेज हवाएं खामोश हो जाएँगी
    या खामोश कर देंगी
    ..........
    उसके बाद ?
    भी 'मैं'
    ............
    .................
    ..........................
    सब कुछ नियति पे छोड़ ससम्‍मान आगे ब‍ढ़ेगा
    और विजयी होगा
    ....

    जवाब देंहटाएं
  5. जीवन तो कशमकश है ... जीना जरूरी है ...

    जवाब देंहटाएं
  6. . जब तक जीवन - तब तक दृश्य प्रश्न
    परोक्ष-अपरोक्ष उभरते हैं,मिटते हैं
    सही-गलत समय की परिभाषा है
    जिसे किसी भी हाल में हम तय नहीं कर सकते

    बहुत सुन्दर !

    जवाब देंहटाएं
  7. कुछ प्रश्नों के उत्तर नहीं दिए जा सकते..भीतर से ही आते हैं..हरेक के..प्रभावशाली रचना !

    जवाब देंहटाएं
  8. इस मैं और हम में निहित हैं सारे प्रश्न और उत्तर भी. कभी हम मैं..... होते है, कभी हम..... इस मैं और हम में भी एक बारीक सी रेखा ही होती है जिसे कौन कब लांघ जाये पता ही नहीं होता.

    बेहतरीन प्रश्न और उसका बेहतरीन उत्तर भी बधाई रश्मि जी .

    जवाब देंहटाएं
  9. उसके बाद ...... सोच शून्य में विलीन हो जाएगी और जीवन बढ़ता रहेगा निर्बाध गति से ....

    जवाब देंहटाएं
  10. फैसला कौन लेगा -
    मैं,मैं,मैं या ............हम ?
    चुप्पी सही या चीख ?
    खुद पर कुछ सह लेना असहज होकर भी
    सहज है
    पर बच्चे और अपने ?
    उस आंधी में तय नहीं होता
    कि तेज हवाएं खामोश हो जाएँगी
    या खामोश कर देंगी
    ..........
    उसके बाद ?
    समय की खमोशी
    New post कुछ पता नहीं !!! ( तृतीय और अंतिम भाग )
    New post : शहीद की मज़ार से

    जवाब देंहटाएं
  11. वाद विवाद स्वयं से. फैसला पता नहीं कौन देगा.

    जवाब देंहटाएं
  12. हृदय के अंतर्द्वंद्व को उकेरती प्रभावपूर्ण रचना ....

    जवाब देंहटाएं
  13. इस मैं और हम में मस्तिष्क सही में सुन्न हो गया ..

    जवाब देंहटाएं
  14. सुन्दर रचना...हमेशा की तरह।।।

    जवाब देंहटाएं
  15. मन के अंदर उठे अंतर्द्वंद्व क बहुत सुन्दर चितरण..आभार

    जवाब देंहटाएं
  16. गहरी बात ....... ये प्रश्न तो बनते हैं

    जवाब देंहटाएं
  17. हाहाकार , मन के बाहर भीतर एक सा !

    जवाब देंहटाएं
  18. सारे 'मैं' मिलके जो 'हम' बनाते हैं, उन्ही को जागना है, फैसला करना है।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  19. अक्सर ऐसी उहापोह की स्तिथि से ही घबराकर हम सब उपरवाले पर छोड़ देते हैं...यह सोचकर कि जो होगा अच्छा ही होगा ...क्योंकि उसकी मर्ज़ी से होगा ....बस इसी से संतोष कर लेते हैं...और करना भी चाहिए

    जवाब देंहटाएं
  20. उसके बाद......

    न तो पहले ही 'मैं' था और न बाद रहेगा
    सिर्फ 'मिथक' था मेरा या तेरा 'मैं'
    टूटेगा ये तभी 'हम' से जुड़ेगा..........

    जवाब देंहटाएं
  21. उसके बाद ?

    ये ही प्रश्न तो मन में हजारों सवाल पैदा करता है

    जवाब देंहटाएं
  22. संसार का होना मैं पर प्रारम्भ अवश्य होता है पर मैं पर समाप्त नहीं होता, जाते जाते न जाने कितने लोग जुड़ जाते हैं।

    जवाब देंहटाएं
  23. आपकी पोस्ट की चर्चा 24- 01- 2013 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें ।

    जवाब देंहटाएं
  24. खुद पर कुछ सह लेना असहज होकर भी
    सहज है
    पर बच्चे और अपने ?
    उस आंधी में तय नहीं होता
    कि तेज हवाएं खामोश हो जाएँगी
    या खामोश कर देंगी
    ..........
    उसके बाद ?

    ....आज इसी कशमकस में निकल रही है ज़िंदगी..

    जवाब देंहटाएं
  25. येही हैं ,,,जिन्दगी के टेड़े-मेढे रस्ते ...???
    शुभकामनायें!

    जवाब देंहटाएं
  26. सशक्त प्रस्तुति.

    ६४ वें गणतंत्र दिवस पर बधाइयाँ और शुभकामनायें.

    जवाब देंहटाएं
  27. उम्दा प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत बधाई...६४वें गणतंत्र दिवस पर शुभकामनाएं...

    जवाब देंहटाएं
  28. मैं से शुरू , हम पर खत्म

    सादर

    जवाब देंहटाएं
  29. ''उसके बाद?'' यह प्रश्न मन में उथलपुथल मचाने वाला है... कौन तय करेगा... मैं या हम... सार्थक रचना, शुभकामनाएँ.

    जवाब देंहटाएं

दौड़ जारी है...

 कोई रेस तो है सामने !!! किसके साथ ? क्यों ? कब तक ? - पता नहीं ! पर सरपट दौड़ की तेज़, तीखी आवाज़ से बहुत घबराहट होती है ! प्रश्न डराता है,...