08 दिसंबर, 2018

कुछ ख्वाबों का अधूरा रह जाना ही अच्छा होता है




कई बार कुछ ख्वाब
प्रत्यक्षतः
रह जाते हैं अधूरे !
लेकिन ख्वाबों के उपजाऊ बीजों को सिंचना
मेरे रोज का उपक्रम है ।
हर दिन,
मिट्टी को हल्का और नम करती हूँ
बीज रखती हूँ,
और अंकुरित होती हूँ मैं ...
पौधा,
फिर वृक्ष,
उसकी शाखें
जाने कौन कौन सी चिड़िया
मेरे रोम रोम में चहचहा उठती है ।
कलरव मुझमें प्राण संचार करते हैं,
फिर से मिट्टी को हल्का
और नम करने के लिए ।
कुछ ख्वाबों का अधूरा रह जाना ही अच्छा होता है,
ताकि उनकी पूर्णता की पुनरावृत्ति
इस तरह हो,
और जीवंतता बनी रहे ।



3 टिप्‍पणियां:

  1. वाह ख्वाबों के बीच ख्वाब फलें फूलें अधूरे ना रह जायें बस यही कामनाएं बनी रहें।

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  2. अधूरे ख्वाब जुस्तजू बनाये रखते हैं जीने की आरज़ू जीती रहती है उनसे ...
    बहुत खूब ... हमेशा की तरह ...

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  3. रश्मि प्रभा जी आपके विपरीत में हमेशा मैंने रीत देखी है आपके अधूरे ख्वाब कौन कहता है की वो अधूरे हैं आपका उन्हें पूरा करने का प्रयास नित आपका अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए परिश्रम, इन्हें फलीभूत कर वृक्ष में परिवर्तित कर पाना कितना प्रेरणा स्फूर्त है। आपकी कविता स्वांतः सुखाय न हो कर वसुधैव कुटुम्बकम् की उपनिषदीय भावना से पूरित है जिसमें आपने अपने परिश्रम से सींच कर तैयार वृक्ष को केवल अपने उपभोग के लिए नहीं रखा अपितु पथिक के विश्राम के साथ ही साथ इसकी टहनियों पर पक्षियों को आश्रय भी दिया है।....आपकी कविता आपके निःस्वार्थ परोपकारी व्यक्तित्व का प्रतिबिंब है।
    एक सुंदर रचना से साक्षात्कार के लिए आपका आभार.

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