09 जुलाई, 2019

राजनीति थी





राजनीति थी,
श्री राम ने रावण से युद्ध किया,
सीता को मुक्त कराया,
फिर अग्नि परीक्षा ली
और प्रजा की सही गलत बात को
प्राथमिकता देते हुए वन भेज दिया !
फिर कोई खबर नहीं ली
कि सीता जीवित हैं
या पशु उनको खा गए,
या जब तक जिंदा रहीं,
निर्वाह के लिए,
उनको कुछ मिला या नहीं ।
क्या सीता सिर्फ पत्नी थीं ?
और राजा के न्याय के आगे सब विवश थे ?
...
राजनीति थी,
श्री कृष्ण ने पाँच ग्राम के विरोध में,
महाभारत का दृश्य दिखाया ।
द्रौपदी की लाज रखी,
लेकिन जिन मुख्य अभियुक्तों ने,
द्रौपदी को दाव पर लगाया,
उनको कोई सज़ा नहीं दी !
(बात समय की नहीं, प्रत्यक्षतः कृष्ण की है)
सत्य को पहले से जानते हुए,
युद्ध के पूर्व कर्ण को सत्य बताया,
प्रलोभन दिया ...
सूर्यग्रहण एक ईश्वर की राजनीति थी,
महाभारत की जीत,
एक कुशल राजनीति थी !
हर युग,हर शासन काल में
कुशल,कुटिल राजनैतिक दावपेंच रहे हैं,
कोई राजनेता दूध का धुला नहीं होता,
हो ही नहीं सकता,
विशेषकर विरोधी पक्ष के लिए,
हत्या,अपहरण, अन्याय ,अधर्म
हर काल में हुए हैं,
होते रहेंगे,
क्योंकि कभी प्रजा बाध्य करती है,
कभी खुद राजा बाध्य होता है !
इसीके मध्य कोई उंगली उठाता है,
कोई उंगली तोड़ देता है,
कहने को तो हर कार्य का
कोई न कोई प्रयोजन है ही,
और जो होना है,
वह होता ही है ...
सम्भवतः यही हो होनी की राजनीति !!!

10 टिप्‍पणियां:

  1. कहते हैं न युद्ध और प्रेम में हर चीज जायज है..इसमें राजनीति और जोड़ सकते हैं..वैसे सब राम की लीला है कृष्ण की भी..इससे बढ़कर हमारी और आपकी भी..

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  2. बिलकुल राजनीति है लेकिन भगवान् मान कर उस दृष्टि से सारी घटना को नहीं देखते . सुलझा हुआ विश्लेषण .

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (10-07-2019) को "नदी-गधेरे-गाड़" (चर्चा अंक- 3392) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. बिल्कुल, राजा की नीति तो है ही जो प्रजा के कहे पर चलता है। उसमें भी मर्यादा स्थापना काल!

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  5. सटीक प्रश्न पुछती विश्लेषणात्मक प्रस्तुति।

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  6. होई है सोई राम रचि राखा। कभी राम की राजनीति कभी राम पर जैस कभी नाव घोडो‌ पर कभी घोड़े नाव पर। सुन्दर ।

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