एक बार सभी देवी देवता अपने बच्चों के साथ महादेव के घर पहुँचे । विविध पकवानों की खुशबू से पूरा कैलाश सुवासित हो उठा था । अन्नपूर्णा अपने हाथों सारे व्यंजन बना रही थी ! मिष्टान्न में खीर,रसगुल्ला,गुलाबजामुन,लड्डू... इत्यादि के साथ अति स्वादिष्ट मोदक बन रहा था ।
भोजन शुरू हुआ, सभी देवी-देवता मन से सबकुछ ग्रहण कर रहे थे । बच्चों के बीच मीठे पकवान की होड़ लगी थी, अचानक माँ पार्वती अपनी जगह से उठीं, रसोई में जाकर एक डब्बे में मोदक भरकर छुपा दिया कि कहीं खत्म न हो जाए और मेरा गन्नू उदास न हो जाये !
यह माँ की आम विशेषता है, अपने बच्चे के लिए इतनी बेईमानी हो ही जाती है ।
माँ को माँ ही समझ सकती है
जवाब देंहटाएं:) :)
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 04 सितंबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
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जवाब देंहटाएंयह माँ की आम विशेषता है, अपने बच्चे के लिए इतनी बेईमानी हो ही जाती है ।
सचमुच कितना सुंदर लिखा आपने , माँ की याद दिला गयी। इसे बेईमानी नहीं स्नेह कहते हैं। प्रणाम।
अहा माँ तो माँ होती है न फिर वो खुद भगवान् की ही माँ क्यों न हों
जवाब देंहटाएंसच मां बच्चे को लेकर सदा स्वार्थी हो जाती है ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लघुकथा।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 5.9.19 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3449 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
वाह!!बहुत सुंदर !सच ही है ,माँ जैसा कोई नहीं ।
जवाब देंहटाएं😊😊💐
जवाब देंहटाएंये बेइमानी हर माँ बार-बार करती है...
जवाब देंहटाएंवाह!!!
बहुत लाजवाब...
बिल्कुल सही मां ऐसी ही होती है
जवाब देंहटाएंसुंदर लघुकथा
जवाब देंहटाएंनिश्चित ही माँ ऐसी ही होती है ।
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