09 जनवरी, 2020

एक चुप्पी हलक में बेचैनी से टहलती है !




मेसेज करते हुए
गीत गाते हुए
कुछ लिखते पढ़ते हुए
दिनचर्या को
बखूबी निभाते हुए
मुझे खुद यह भ्रम होता है
कि मैं ठीक हूँ !
लेकिन ध्यान से देखो,
मेरे गले में कुछ अटका है,
दिमाग और मन के
बहुत से हिस्सों में
रक्त का थक्का जमा है ।
. ..
सोचने लगी हूँ अनवरत
कि खामोशी की थोड़ी लम्बी चादर ले लूँ,
जब कभी पुरानी बातों की सर्दी असहनीय हो,
ओढ़ लूँ उसे,
कुछ कहने से
बात और मनःस्थिति
बड़ी हल्की हो जाती है ।
बेदम खांसी बढ़ जाती है,
खुद पर का भरोसा
बर्फ की तरह पिघलने लगता है
और बोलते हुए भी एक चुप्पी
हलक में बेचैनी से टहलती है !

7 टिप्‍पणियां:

  1. और बोलते हुए भी एक चुप्पी
    हलक में बेचैनी से टहलती है !

    बहुत सुन्दर। यही जीवन की निशानी है।

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  2. चुप रहकर भी मन बोलता है.
    बोलकर भी बहुत कुछ बोला नहीं जाता. जीवन का यह अजब किस्सा है.

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  3. और बोलते हुए भी एक चुप्पी
    हलक में बेचैनी से टहलती है

    बहुत खूब ,लाज़बाब सृजन सादर नमस्कार

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  4. ये एक चुप्पी कितना कुछ बोलती है कि ... सब कुछ अनसुना सा हो जाता है ...

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  5. ये एक चुप्पी कितना कुछ बोलती है कि ... सब कुछ अनसुना सा हो जाता है ...

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  6. ख़ामोशी की चादर ओढ़े बिना किसी को शायद चैन न आज तक मिला है न मिल सकता है, उस ख़ामोशी की जो अनन्त काल से बिखरी है हर जगह, हर समय, जिसकी ओर जिस किसी की नजर पड़ जाती है वही उसे ओढ़ सकता है

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