12 मार्च, 2023

सिलसिला जारी ही रहेगा ...


 

तानसेन के अद्भुत संगीत से शिक्षा लेकर
दर्द ने ऐसे ऐसे राग बनाए
कि कांच से बना मेरा मन
चकनाचूर होता रहा !

मैंने भी कभी हार नहीं मानी, 
लहूलुहान होकर भी किरचों को समेटती गई
मन को जोड़ती रही ...

एक तरफ़ दर्द बहूरुपिया बनकर 
अपना असर दिखाने की कोशिश में लगा रहा
दूसरी तरफ़ मैंने मन को 
अनगिनत सूराखों के संग
एक रुप दे दिया ...

दर्द आज भी गरजता है
बरसता है
तिरछी नजरों से देखता है
फिर धीरे धीरे सब स्थिर हो जाता है
मन अपनी आंखें मूंद लेता है
कुछ थककर
कुछ नई उम्मीद लिए !

जब तक सांसें हैं
सिलसिला जारी ही रहेगा ... ।

रश्मि प्रभा

9 टिप्‍पणियां:

  1. जुड़ते जोड़ते मन काँच से पत्थर सा हो जाता है ...उम्मीदें उसे हारने नहीं देती ।
    बहुत ही चिंतनपूर्ण लाजवाब सृजन ।

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  2. दर्द की हार होती है बार-बार, मुस्कुराहट जीत ही जाती है हर बार

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  3. दर्द को आत्मसात कर जीना जीवन की बहुत बड़ी जीत है ।चिन्तन परक सृजन ।

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  4. संवेदनाओं से सिंचित अप्रतिम सृजन।

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  5. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना सोमवार २० मार्च २०२३ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  6. दर्द से ही जीवन का अमर संगीत प्रकट हुआ है।कदाचित आनंद में आकंठ लीन व्यक्ति आनंद के स्त्रोत को कभी पहचान नहीं पाता।🙏

    जवाब देंहटाएं

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