30 नवंबर, 2007

सीख लोगे...




सत्य का रास्ता बहुत कठिन होता है ,
बहुत तकलीफें,
अनगिनत कठिनाईयाँ .
सरल कुछ भी नहीं होता है.
पर यूँ ही तो नहीं कहते सब
'सत्यमेव जयते'?
जीत आसानी से कभी नहीं मिलती.
अक्षरों का ज्ञान तक
अभ्यास-दर-अभ्यास होता है,
बच्चों की ज़ुबान पर शब्द लाने के लिए
अभिभावकों को भी फिर से पढना होता है
रटाने के लिए रटना पड़ता है......
जूते पहनकर कब तक चलोगे?
कांटे चुभे नहीं,
तो निकालना कैसे सीखोगे?
पहले मकसद तो बनाओ जीत की
रास्ते आसान बनाना सीख लोगे...

25 नवंबर, 2007

एक प्रश्न?



मैंने नहीं चाहा था कोई बन्धन
पर इस हस्ताक्षर का क्या करूँ जो दिल पर है?
मैंने इस हस्ताक्षर के फेरे लिए हैं
अपनी धडकनों के संग
एक नहीं,दो नहीं...सात नहीं
आदि,अनादि,अनंत,अखंड!
इस रिश्ते को क्या नाम दूँ?
हस्ताक्षर के नाम
समर्पित है ज़िन्दगी
विश्वास,सच,प्यार से परिपूर्ण
कोई चाहे,
ख़त्म नहीं होगा
खामोशी में भी मेरी धड़कनें जिंदा रहेंगी
लेती रहेंगी तुम्हारा नाम
फिर क्या करोगे उन हिचकियों का?
कोई पानी कोई नशा
उसे ख़त्म नहीं करेगा
तो क्या लौटोगे
अपने गंतव्य से
यशोधरा के पास?

22 नवंबर, 2007

आदमी वही है


आसान है अपने दर्द को समझना

पर आदमी वही निखरता है

जो दूसरे के दर्द को समझता है

और एक ऐसे मुकाम पर आता है

जब दूसरे का दर्द मरहम का काम करता है

फिर अपना दर्द कम लगने लगता है.

आसान है हर बात पे रोना

पर आदमी वही निखरता है

जो आँसू पीकर हँसता है,हँसाता है

अपने दर्द को भुलाकर

दूसरे के दर्द में साथ देता है

आसान है नसीहतें देना

स्नेह का हवाला देकर उलझनें बढ़ाना

पर आदमी वही निखरता है

जो अपनी नसीहतों पर चलता है

स्नेह की ताकत से उलझनों को राह देता है...

19 नवंबर, 2007

इमरोज़ (आज का दिन)




पत्तों पर छलकती ओस की बूँदें
आती हैं बनकर इमरोज़
आतुर रहती हैं हर प्रातः
एक नज़्म सुनाने को
चिड़ियों का कलरव बनकर
पायल कि रुनझुन बनकर
प्रेम राग में डूबी-सिमटी
चाँद के रथ में आती छनकर
हर रोज़ शक्ल ले नज्मों की
कोई प्यार का गीत सुनाती है
गिर कर सुर कोई न भटके
बढ़ती हूँ हथेली में भरने
छन से गिरते हर साज़ को मैं
अपनी आँखों से लगाती हूँ
फिर जीती हूँ पूरे दिन को
इमरोज़ बना कर आँखों में...

18 नवंबर, 2007

हरि का जन्म...




जो क्रम चला सतयुग,द्वापर,कलयुग का
तो क्रम जारी है
फिर सतयुग की बारी है.
सत्य कभी मरता नहीं
अतीत के गह्वर में टिकता नहीं...
मही डोलेगी,गगन डोलेगा
काल विनाश के लिए
हरि का जन्म होगा...
आत्मा का नाश नहीं
आत्मा अमर है
कहा था श्री कृष्ण ने...
तो कृष्ण की आत्मा हमारे पास ही है
सृष्टि के आरंभ से आज तक
प्रभु हमारे साथ ही हैं
हवाओं में उनका स्पर्श है
मौन में आशीष है
गर है यह सत्य
"जब जब धर्म का नाश होता है मैं अवतार लेता हूँ"
तो निश्चय ही
प्रभु का जन्म होगा
हमें डूबने से बचाने को
अन्याय के विरोध में
साई मार्ग बताने को
हरि का जन्म होगा
मही डोलेगी गगन डोलेगा
हरि का जन्म होगा

17 नवंबर, 2007

एकलव्य का अंगूठा




बचपन का सपना


सच के बीज लेकर चलता रहा


मिटटी की ओर


अपने को रूप देने के लिए.


सुझावों का सिलसिला चला-


मिटटी की पहचान,


सही बीज की समझ


और एक निश्चित जगह होनी चाहिए


और अचानक


सपना रुका


सच कहीं और चला


गुरु की मूर्ती पर हुआ अधिकार अर्जुन का


एकलव्य का अंगूठा गया.

16 नवंबर, 2007

ज़रूरी है



तुम बीमार हो,
इसके लिए बीमार दिखाई देना ज़रूरी है.
तुम्हारी सारी खुशियाँ ख़त्म हो गयी,
इसके लिए निरंतर आँसू बहाना ज़रूरी है
तुम बिना सब्जी के रोटी- चावल खा रहे हो,
तो तुम्हे अपने चेहरे की चमक को खोना पड़ेगा
तुम आर्थिक कठिनाइयों के दौर से गुज़र रहे हो
तो तुम्हे अपनी फटेहाली तो दिखानी ही होगी.
अगर - तुम अपनी बीमारी में भी सारे काम निपटा सकते हो
पूरी तत्परता एवं लगन से चल सकते हो
तो ये भी क्या बीमारी हुई!
तुम्हारे पास खुशी नही
और तुम मुस्कुरा सकते हो
अपने निकट आये व्यक्ति को खुशी दे सकते हो
हँसा सकते हो
फिर तो,उंगलियाँ उठेंगी ही!
तुम खा रहे हो रोटी-चावल
और चमक है मेवे और अंगूर की
तो क्यों समझेगा कोई कि तुम हर हाल में खुश हो?
बहुत ज़रूरी है,
फटेहाल दिखना,
निरंतर आँसू बहाना,
चेहरे की चमक को खोना...
उन लोगों के लिए- जो बेचैन हैं,
तुम्हे इस हाल में देखने के लिए!

समझौता...


ईश्वर जब देता है-छप्पर फाड़ के देता है
निःसंदेह,ईश्वर ने मेरे होठों पर हंसी कुछ ऐसे ही दी
हादसों को मैंने आत्मसात किया
सामान्य दिखने के लिए
हँसती रही,बस हँसती रही.
पिता की कमी,आर्थिक कमी
और सम्मान पर कीचड
क्या करती निरंतर रोकर?
पिता मेरे सर पर हाथ रखने नहीं आते
मानना था यही - "आत्मा अमर है"
आर्थिक कमी दूर नहीं हो सकती चुटकियों में
मानना है -
"जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये"
और सम्मान पर कीचड...
माना - "कीचड में ही कमल खिलता है"
और हँसती रही
ईश्वर ने मेरे होठों पर हँसी कुछ इस तरह ही दी...

मुश्किल है


सिद्धांत , आदर्श , भक्तियुक्त पाखंडी उपदेश
नरभक्षी शेर, गली के लिजलिजे कुत्ते -
मुश्किल है मन के मनकों में सिर्फ प्यार भरना .
हर पग पर घृणा,आँखों के अंगारे
आखिर कितने आंसू बहाएँगे?
ममता की प्रतिमूर्ति स्त्री- एक माँ
जब अपने बच्चे को आँचल की लोरी नहीं सुना पाती
तो फिर ममता की देवी नहीं रह जाती
कोई फर्क नहीं पड़ता तुम्हारी गालियों से
लोरी छीन कर,
तुमने ही उसे काली का रूप दिया है
और इस रूप में वह संहार ही करेगी!
सिर्फ संहार!
फिर रचना का सिद्धांत क्या?
आदर्श क्या?
भक्तियुक्त उपदेश क्या?
मुश्किल है मन के मनकों में सिर्फ प्यार भरना....

13 नवंबर, 2007

माता का अपमान...


सतयुग बीता

हर नारी को सीता बनने की सीख मिली

जनकसुता,राम भार्या

सात फेरों के वचन लिए वन को निकली

होनी का फिर चक्र चला

सीता का अपहरण हुआ

हुई सत्य की जीत

जब रावन का संहार हुआ.

पर साथ साथ ही इसके शंका का समाधान हुआ

हुई सीता की अग्नि-परीक्षा

तब जाकर स्थान मिला !!!???

अनुगामिनी बन लौटी अयोध्या

धोबी न फिर घात किया

गर्भवती सीता का तब राम ने परित्याग किया .....

बढ़ी लेखिनी वाल्मीकि की

लव और कुश का हुआ जनम

सीता ने दी पूरी शिक्षा

क्षत्रिय कुल का मान किया.....

हुआ यज्ञ अश्वमेध का

लव-कुश ने व्यवधान दिया

सीता ने दे कर परिचय

युद्ध को एक विराम दिया.

पर फिर आई नयी कसौटी

किसके पुत्र हैं ये लव-कुश???

धरती माँ की गोद समाकर

दिया पवित्रता का परिचय.......

अब प्रश्न है ये उठता

क्या सीता ने यही किया?

या दुःख के घने साए में

खुदकुशी को आत्मसात किया???

जहाँ से आई थी सीता

वहीं गयी सब कर रीता!

सीता जैसी बने अगर सब

तो सब जग है बस रीता!

सत्य न देखा कभी किसी ने

सीता को हर पल दफनाया

किया नहीं सम्पूर्ण रामायण

माता का अपमान किया...

07 नवंबर, 2007

वो भारत देश है मेरा...



साल में दो बार,सुनते हैं -

"वो भारत देश है मेरा...."

फिर कोई डाल नहीं ,सोने की चिड़िया नहीं...

पंख - विहीन हो जाता है भारत....

शतरंज की बिसात पर,चली जाती हैं चालें...

तिथियाँ भी मनाई जाती हैं साजिश की तरह...

क्या था भारत?

क्या है भारत?

क्या होगा भारत?

इस बात का इल्म नहीं !!!

धर्म-निरपेक्षता तो भाषण तक है,

हर कदम बस वाद है...

आदमी , आदमी की पहचान,ख़त्म हो गई है...

गोलियाँ ताकतवर हो गई हैं,

कौन, कहाँ, किस गली ढेर होगा?

कहाँ टायर जलेंगे,आंसू गैस छोड जायेंगे?

ज्ञात नहीं है...

कहाँ आतंक है, कौन है आतंकवादी?

कौन जाने !!!

शान है "डॉन" होना,

छापामारी की जीती-जागती तस्वीर होना,

फिर बजाना साल में दो बार उन्ही के हाथों-

"वो भारत देश है मेरा"

03 नवंबर, 2007

ये याद आयेंगे...



अब तो पुराने हर कदम ,
जाने की तैयारी में हैं ...
{सच है , यूँ किसी की ज़िन्दगी का कोई ठिकाना नहीं }
पर ,
पुराने पेड़ गिरेंगे ...
रोने में वक़्त बर्बाद मत करना ...
वैसे ये मेरे जज़बात हैं ...
तुम क्या करोगे ,
इसे दावे से कहना ...
मुमकिन नहीं ...
हाँ एक बात होगी ,
तुम भी होगे अकेले ...
वक़्त मौन जगह घेरे खडा होगा ...
तब ,
ये सारे वृक्ष एक बार याद आयेंगे ...

02 नवंबर, 2007

मुजरिम...



मित्र,

हवा में भटकते पत्ते की तरह

तू मेरे पास आया...

बिखरे बाल , पसीने से लथपथ,

घबराहट और भय से तुम्हारी आँखें फैली हुई थीं...

तार तार होती तुम्हारी कमीज़ पर,

खून के छींटे थे ,

उफ़!

तुमने लाशों से ज़मीन भर दी थी,

मैंने कांपते हाथों उन्हें दफना दिया...

तुम थरथर काँप रहे थे,

बिना कुछ पूछे,

मैंने तुम्हें बिठाया,

तुम्हे आश्वस्त करने को॥

तुम्हारी पीठ सहलाई,

ठंडे पानी का भरा ग्लास तुम्हारे होठों से लगाया,

- " कठिन घडी में ही मित्र की पहचान होती है"

इस कथन के नाम पर सब कुछ झेला,

तुम विछिप्त होते होते बच गए!

तुम्हारी मरी चेतना ने करवट ली,

तुम्हारा साहस लौट आया,

लोगों की जुबां पर मेरा नाम आया,

मुकदमा चला..................

गवाहों के आधार पर

मुजरिम मैं करार दिया गया,

एक बार आँखें उठाकर तुमको देखा था,

भावहीन , सपाट दृष्टि से

तुम मुझे देख रहे थे!

आश्चर्य,

जघन्य कर्म के बाद भी तुम बरी हो गए,

और अदालत ने मुझे फांसी की सजा सुना दी...

एहसास

 मैंने महसूस किया है  कि तुम देख रहे हो मुझे  अपनी जगह से । खासकर तब, जब मेरे मन के कुरुक्षेत्र में  मेरा ही मन कौरव और पांडव बनकर खड़ा रहता...