06 अप्रैल, 2008

एक दर्द...


शब्द कमरे में भरे पड़े हैं,
कुछ ज़मीन पर,
कुछ दीवारों पर,
कुछ चादर की सलवटों में,
कुछ सिरहाने,
पर,
सन्नाटा बड़ा गहरा है............
पास पड़ी कलम उठाने की इक्षा नहीं होती,
न शब्दों को पिरोने का मन होता है!
शब्द भी तो कराह रहे हैं,
स्याही आंसू की तरह कागज़ पर टपक रहे हैं!
आँखें कुछ ढूँढती हैं.........
दृश्य सारे बदल चुके हैं,
रिश्ते ठंडे हो चुके हैं......
कहने को मैं हूँ,
पर दिखायी नहीं देती हूँ,
जाने कैसे?
-अपने ही अन्दर सिमट गई हूँ!!!!!!!!!!1

8 टिप्‍पणियां:

  1. har shabdh se dard bikhera hai,bahut hi marmik sundar rachana hai.

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  2. कभी कभी इन्सान कुछ एहसास, कुछ दर्द महसूस करता है, उसे व्यक्त कर मन को हल्का भी करना चाहता है, परन्तु ना परिस्थितिया साथ देती है ना शब्द और वो एक विशेष प्रकार का अकेलापन महसूस करता है | अच्छा लिखा है आपने |

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  3. शब्द कमरे में भरे पड़े हैं,
    कुछ ज़मीन पर..कुछ दीवारों पर,
    सिरहाने भी...
    पर जब समेटने बैठो.. तो सब लड़ पड़ती है..
    सच कहा है.. के तकलीफ में हैं सब.. कराह रहे हैं, उन्हें कागज़ की बिस्तर दी है.. आपने
    आराम मिला है उन्हें...

    उन्मुक्त है आपकी रचनाएं.. सच्ची भी.. और बहुत अच्छी भी !

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  4. शब्द कमरे में भरे पड़े हैं,......haan sach main.... mej, kurshi, computer, glass..aur iss tarah ke bahut kuch, ye shabd hi to hain, par samvedna nahi hai na...........jo tum main hai, jo meri 'di' main hai......tum tum ho........great bhai ki simple di!!( sayad maine ulta kah diya), aree koi nahi, apne miya mithhu to bana hi ja sakta hai..........well done di!!

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  5. dil ki baat ke liye dil main jagah nahin...
    kya khoje wo rishte, jinme ab apne pan ke nishan nahin...
    charo tarh na jaane failee ye kaisee chitkaar hain...
    par shhant man se jo nikal bahe un do shabdon ko jagah nahin...
    shayad yahi bebasi aapke khare khare shabdon main chalak rahi hai.....ek aur marmasparshi kavita di....
    EHSAAS!

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  6. "सन्नाटा बड़ा गहरा है............
    पास पड़ी कलम उठाने की इक्षा नहीं होती,
    न शब्दों को पिरोने का मन होता है!"

    कई बार रचनाधर्मिता इस तरह के स्याह पलों से गुजरती है,पर तपकर फिर कुन्दन ही निकलता है.

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