जिन प्रश्नों के उत्तर ज्ञात हों,
उन प्रश्नों को दुहराने से क्या होगा ?
क्या कोई और उत्तर चाहिए ?
या ज्ञात उत्तर को ही सुनना है ?
फिर उसके बाद ?
एक चुप्पी ही होगी न ?
कोई हल जब पहले नहीं निकाला गया
तो अब क्या ?
....
सच को झूठ कह देने से
क्या सच में वह झूठ हो जाएगा ?
और तुम सच की तरफ मुड़कर सवाल करोगे ?
क्या कहेगा सच ?
सारे चश्मदीद गवाह ही थे
हैं ...
न्याय जो समय रहते नहीं हुआ
उसका अब औचित्य क्या !
मन के कितने मौसम बदल गए
... अब तो किसी सच के लिए
कुछ कहने का भी मन नहीं होता
हम साथ चल रहे हैं
स्पष्टता गहरी हो गई है
क्या इतना काफी नहीं है ?
हाँ, इतना स्पष्ट कह दूँ
कि,
आत्मा की सुनना
जिस बात में सुकून मिले
वही करना
और वह जो भी हो
उसकी सफाई मत देना
!!!
बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरूवार 5 अप्रैल 2018 को प्रकाशनार्थ 993 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन पंडित माखनलाल चतुर्वेदी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना ...।
जवाब देंहटाएंवाह!!!
सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
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सधन्यवाद।