27 मार्च, 2018

कहो यशोधरा




कहो यशोधरा
सिद्धार्थ के महाभिनिष्क्रमण के बाद
वह सुबह
तुम्हारे अंदर कैसे उतरी थी ?
क्या वह गौरैया उस दिन तुम्हें दिखी थी
जो हर दिन नियम से
तुम्हारी खिड़की पे आ बैठती थी
चीं चीं पुकार कर तुम्हें
तुम्हारी नर्म हथेलियों पर दाना चुगती थी
सुनाई पड़ी थी उसकी मीठी चीं चीं ?
या लोगों के सवालों के शोर में
उस शोर की तंग गलियों में
तुम स्तब्ध राहुल को देखे जा रही थी
और शिव जटा सी तुम्हारी आँखों से
बह रही थी गंगा !
कहाँ है तुम्हारी वह निजी डायरी ?
जिसमें कुछ तो लिखा ही होगा तुमने
या खींचती गई होगी बेतरतीब लकीरें !!!
उन लकीरों में
भीड़ की नसीहतें होंगी
होंगे कुछ उलाहने
और जले पर नमक छिड़कते ये वाक्य
अब ऐश करो पैसे से ...
उन लकीरों में
दीवारों पर सर पटकती
होगी तुम्हारी चुप्पियों की ज्वालामुखी !
कुछ अनुमान तुम्हारे भी तो होंगे उन लकीरों में ?
राहुल के सवालों पर
कभी हुई होगी झुंझलाहट
फिर कोसा होगा खुद को
घुट्टी में पिलाई गई स्त्री की परिभाषा को
उकेरा होगा लकीरों में
विरोध किया होगा रात के सन्नाटे में !
राहुल के सो जाने के बाद
खड़ी हो गई होगी आईने के आगे
कितने अल्हड़ प्रश्न उठे होंगे आंखों में
समय से पहले,
बहुत पहले
एक समाप्ति की अघोषित घोषणा को
स्वीकार करते हुए
कितनी लकीरें काँप गई होंगी !
ऊंघते हुए
चौंककर उठते हुए
तकिये पर बेखबर सोया
सिद्धार्थ नज़र आया होगा
आश्वस्त होने के लिए
आंखें विस्फारित हुई होंगी
और सत्य ने कई बार निर्मम हत्या की होगी !
कहो यशोधरा
क्या एक बार भी
भागने का ख्याल नहीं आया ?
आया तो होगा ही !!!
लेकिन नियति ने
राहुल को जिजीविषा बनाया था
और तुम लकीरों के बाद
लिखने लगी होगी क्षत्रिय धर्म
परम्परा की बाती को
निष्ठा के घृत से सराबोर किया होगा
दिल दिमाग के शोर से
खुद को बाहर निकाला होगा
और मातृत्व धर्म में
ध्यानावस्थित हो गई होगी
डायरी को पूजा के स्थान पर रख दिया होगा
...
कहो यशोधरा,
मैंने पढ़ लिया है न बखूबी
उन लकीरों को ?



9 टिप्‍पणियां:

  1. मार्मिक कविता..किसी टीस से कम नहीं चुभता होगा यशोधरा का दुःख उसके दिल को..लेकिन जल्दी ही सम्भल गयी होगी..क्षत्राणी थी न वह..और एक राजकुमारी भी..

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  2. .....और आज पूरा दिन मैं यशोधरा थी

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  3. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक २९/०३/२०१८ की बुलेटिन, महावीर जयंती की शुभकामनायें और ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  4. कुछ अनुमान तुम्हारे भी तो होंगे उन लकीरों में ?...रश्‍मि जी ने इस रचना से भीतर तक झंकृत कर दिया, यशोधरा की मनोस्‍थिति को हमारे मन तक पहुंचाने का शुक्रिया रश्‍मि जी, कितने प्रश्‍न और कितनी अनुभूतियों केे संग हम इस एक रचना के एकएक वाक्‍य में ....ढूबते उतराते ....

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  5. काहू के मन की कोउ ना जाने
    लोगन के मन हांसी ...

    किसी की तपस्या जानी गई
    किसी की मौन समर्पण रही

    यशोधरा

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  6. आदरणीय रश्मि जी --- आपकी प्रखर लेखनी की मैं शब्दनगरी से ही प्रशंसक हूँ | बुद्ध के प्रति मेरा कौतुहल भी हमेशा से रहा है और यशोधरा बुद्धप्रसंग में सबसे करुण पात्र है और उसकी मनोदशा को भांप अपने इतनी सार्थक रचना लिखी है जो बेहद मर्मस्पर्शी है |मैंने भी यशोधरा पर एक रचना लिखी है जो निकट भविष्य में मेरे ब्लॉग पर आयेगी | बहुत गूढ़ भावों से भरी रचना के लिए आपको बधाई देती हूँ |

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